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अनुज लुगुन को ‘मलखान सिंह सिसौदिया सम्मान’ व बजरंग बिहारी तिवारी को ‘सत्राची सम्मान’ देने की घोषणा

डॉ. अनुज लुगुन को आदिवासी कविताओं में प्रतिरोध के कवि के रूप में प्रसिद्धि हासिल है। वहीं डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी पिछले करीब 20-22 वर्षों से लगातार दलित आंदोलन और साहित्य का गंभीर अध्ययन-विश्लेषण करते हुए भारतीय समाज के जातिवादी चरित्र के यथास्थितिवाद से टकराते रहे हैं। पढ़ें, यह खबर

दलित-बहुजन साहित्य के लिहाज से महत्वपूर्ण खबर यह है कि युवा आदिवासी कवि डॉ. अनुज लुगुन को वर्ष 2023 का ‘मलखान सिंह सिसौदिया पुरस्कार’ दिया जाएगा। यह पुरस्कार उन्हें उनके काव्य संग्रह ‘अघोषित उलगुलान’ के लिए दिया जा रहा है। वहीं दूसरी दलित साहित्य के समालोचक व यायावरी पत्रकार बजरंग बिहारी तिवारी को ‘सत्राची सम्मान-2024’ के लिए चयनित किया गया है।

आदिवासियों के प्रतिरोध को धार देती हैं डॉ. अनुज लुगुन की कविताएं

बताते चलें कि दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय गया में सहायक प्रोफेसर के रूप में पदस्थापित डॉ. अनुज लुगुन को ‘मलखान सिंह सिसौदिया पुरस्कार’ देने की घोषणा केपी सिंह मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्ष नमिता सिंह और जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय संयुक्त महासचिव नलिन रंजन सिंह ने हाल में विज्ञप्ति जारी कर की। विज्ञप्ति के मुताबिक उन्हें यह सम्मान आगामी 6 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दिया जाएगा।

वर्ष 2007 में सुप्रसिद्ध कवि मलखान सिंह सिसौदिया की स्मृति में स्थापित यह सम्मान हिंदी साहित्य खासकर काव्य विधा में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए दिया जाता है। इसके पहले इस सम्मान से सम्मानित होनेवाले कवियों में दिनेश कुशवाह, एकांत श्रीवास्तव, श्रीप्रकाश शुक्ल, शैलेय, अशोक तिवारी, भरत प्रसाद, संजीव कौशल, निशांत, संतोष चतुर्वेदी, रमेश प्रजापति, प्रदीप मिश्र, विशाल श्रीवास्तव, ज्ञान प्रकाश चौबे, बच्चा लाल ‘उन्मेष’ और शंकरानंद आदि शामिल हैं।

डॉ. अनुज लुगुन को आदिवासी कविताओं में प्रतिरोध के कवि के रूप में प्रसिद्धि हासिल है। उनके तीन काव्य संग्रहों में ‘अघोषित उलगुलान’ शामिल है, जिसमें संकलित कविताएं आदिवासी जीवन को वर्तमान के संदर्भ में प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी कविताओं में एक तरफ जल, जंगल और जमीन के खिलाफ खड़ी शक्तियों के विरुद्ध विद्रोह का स्वर सामने आता है तो दूसरी ओर उनकी कविताएं पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण का आह्वान करती हैं।

बकौल डॉ. अनुज लुगुन, ‘उलगुलान’ हमारी सामूहिक चेतना की बुनियाद है। यह आदिवासियत की जमीन पर खड़े मनुष्य की गरिमा, उसकी मुक्ति और सहजीवियों के साथ सह-अस्तित्व का दर्शन है। यह हमारी प्रेरणा है और मार्गदर्शक भी। उनके मुताबिक, ‘अघोषित उलगुलान’ सांस्कृतिक वर्चस्व और ऐतिहासिक अन्याय का काव्यात्मक प्रतिरोध है।

डॉ. अनुज लुगुन व डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी

प्रेमकुमार मणि, चौथीराम यादव और सच्चिदानंद सिन्हा के बाद बजरंग बिहारी तिवारी को सत्राची सम्मान

दलित-बहुजन साहित्य को अपनी समालोचनाओं के माध्यम से समृद्ध करने वाले डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी को सत्राची फाउंडेशन, पटना के द्वारा ‘सत्राची सम्मान-2024’ देने की घोषणा की गई है। इस सम्मान की शुरुआत 2021 में की गई। इसके तहत न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन को रेखांकित और प्रोत्साहित करना है। इस सम्मान से अब तक प्रेमकुमार मणि (2021), प्रो. चौथीराम यादव (2022) और सच्चिदानंद सिन्हा (2023) को सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. तिवारी को यह सम्मान आगामी 20 सितम्बर, 2024 को प्रदान किया जाएगा।

डॉ. तिवारी का चयन डॉ. वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में गठित चयन समिति द्वारा की गई। इस समिति के सदस्य पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के डॉ. तरुण कुमार और ‘सत्राची’ के प्रधान संपादक कमलेश वर्मा रहे।

सत्राची फाउंडेशन द्वारा जारी विज्ञप्ति के मुताबिक प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी बिना किसी शोर-शराबे के पिछले करीब 20-22 वर्षों से लगातार दलित आंदोलन और साहित्य का गंभीर अध्ययन-विश्लेषण करते हुए भारतीय समाज के जातिवादी चरित्र के यथास्थितिवाद से टकराते रहे हैं। लेखन और चिंतन के लिए ऐसे विषय का चुनाव और लगातार इस मोर्चे पर उनकी सक्रियता से न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का पता चलता है।

बताते चलें कि डॉ. बजरंग बिहारी तिवारी का जन्म पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले के नियायां गांव में हुआ। शुरुआती शिक्षा अपने गांव में रहकर पूरी करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद और दिल्ली से प्राप्त की। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी में एम.ए., एम.फिल. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पिछले सत्ताईस वर्षों से वे दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज में अध्यापन कर रहे हैं। भक्तिकाव्य, समकालीन संस्कृत साहित्य, भारतीय दलित आंदोलन और अस्मितामूलक साहित्य उनके अध्ययन-चिंतन के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।

दलित साहित्य और उसके बहाने जाति का सवाल डॉ. तिवारी की आलोचना के केंद्र में रहा है। वर्ष 2003 से ही इन्होंने ‘दलित प्रश्न’ शीर्षक स्तंभ ‘कथादेश’ पत्रिका में लिखना शुरू किया। वे दलित आंदोलन को ‘जातिवादी हिंसा से जूझने वाले संघर्षों के नवीनतम पड़ाव’ के रूप में देखते हैं। जातिवाद के विरुद्ध संघर्षों की परंपरा में दलित विमर्श की ऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित करने के साथ-साथ वे उसके अंतर्विरोधों और दलित विमर्श की विभिन्न धाराओं के आपसी मतभेदों की भी बारीकी से पहचान करते हैं। दलित स्त्रीवाद के हवाले से दलित स्त्रियों के संघर्ष को भी इन्होंने अपने लेखन में रेखांकित किया है। इनकी प्रकाशित किताबें भारतीय समाज की सबसे ज्वलंत समस्या- जाति के सवाल को पूरी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ उठाती हैं। इनमें “दलित कविता : प्रश्न और परिप्रेक्ष्य”, “हिंसा की जाति : जातिवादी हिंसा का सिलसिला”, “दलित साहित्य : एक अंतर्यात्रा”, “केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य”, “बांग्ला दलित साहित्य : सम्यक अनुशीलन”, “जाति और जनतंत्र : दलित उत्पीड़न पर केंद्रित”, “भारतीय दलित साहित्य : आंदोलन और चिंतन”, “भक्ति कविता, किसानी और किसान आंदोलन”, “किसान आंदोलन और दलित कविता” आदि शामिल हैं।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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