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मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में

गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक जातियों के वर्चस्व को मजबूत करना। जो धन ब्राह्मणवाद को कमजोर करने के लिए आया, वह उसे मजबूत करने में लगाया जा रहा है। बता रहे हैं डॉ. सिद्धार्थ

मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव सरकार ने ‘गऊ माता’ के कल्याण के लिए 252 करोड़ रुपए खर्च करने का निर्णय लिया है। अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इसे ‘गौ संवर्धन एवं पशुओं का संवर्धन योजना’ नाम दिया गया है। ‘गऊ माता’ के कल्याण के लिए खर्च किए जाने वाले इस धन का करीब 40 प्रतिशत (95.76 करोड़ रुपए) अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) समुदाय के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए केंद्र सरकार से मिले धन में से हड़पा गया है। स्पष्ट है कि एससी-एसटी समुदाय के लोगों की गरीबी-बदहाली को दूर करने की तुलना में गऊ माता का गरीबी-बदहाली दूर करना सूबे की भाजपा सरकार की पहली प्राथमिकता है।

इस क्रम में एससी-एसटी के हक का पैसा तो मारा ही गया है, इसके साथ ही ‘गऊ माता’ के कल्याण के लिए खर्च को दुगुना से अधिक कर दिया गया है। पिछले वर्ष इसके लिए 90 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था। इस वर्ष के बजट में डॉ. मोहन यादव की सरकार ने इसे बढ़ाकर 252 करोड़ रुपए कर दिया है। इस बढ़े बजट को पूरा करने के लिए अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति विशेष उपयोजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा आवंटित धन में से 95.76 करोड़ रुपए इन समुदायों से छीन लिये गए हैं।

साफ है कि दलित-आदिवासियों की कल्याण की तुलना में गऊ माता का कल्याण मोहन यादव की सरकार की पहली प्राथमिकता है, और इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की जिस स्कूल के स्वयंसेवक डॉ. मोहन यादव हैं और जिस पार्टी के वे मुख्यमंत्री हैं, उनके सर्वश्रेष्ठ नायक दशरथ पुत्र राम ने ब्राह्मण और गायों के हित के लिए ही अवतार (जन्म) लिया था। ‘रामचरितमानस’ में तुलसीदास ने साफ शब्दों में इसके बारे में लिखा है–

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥192॥

भावार्थ यह कि ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया।

दरअसल, दलितों और आदिवासियों के हक के सिर्फ 95.76 करोड़ रुपए ‘गऊ माता’ के लिए ही नहीं हड़पे गए हैं, बल्कि उनके हक का एक और बड़ा हिस्सा हिंदू मंदिर और संग्रहालय बनाने के लिए उनसे छीन लिया गया है। मसलन, 6 धार्मिक स्थलों को विकसित करने के लिए भी दलितों-आदिवासियों के हिस्से का धन हड़प लिया गया है। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर ग्वालियर में बनने वाले मेमोरियल के लिए भी अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति विशेष उपयोजना के तहत दलितों व आदिवासियों के कल्याण और सशक्तिकरण हेतु आवंटित धन को हड़पा गया है। इसके लिए 109 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना है। इसका बड़ा हिस्सा दलित-आदिवासियों के हिस्से का है।

उज्जैन के एक गौशाला में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

आप कल्पना कीजिए कि सिर्फ गाय पर इस मद में जो धन खर्च किया जा रहा है, यदि उसे दलितों-आदिवासियों के जमीन खरीद कर देने, उन्हें कोई छोटा-मोटा उद्योग लगाने, उनके बच्चों के लिए विशेष स्कूल और हास्टल बनाने के लिए खर्च किया जाता तो क्या होता? यह केवल कल्पना नहीं है। ऐसा तेलंगाना में इससे पहले की सरकार (बीआरएस सरकार) ने किया था। उस सरकार ने दलितों-आदिवासियों के लिए आवंटित इस विशेष धन का इस्तेमाल भूमिहीन दलितों को खेती योग्य जमीन खरीद कर देने के लिए किया था। इस योजना के तहत जमीन के साथ ही पूर्ववर्ती बीआरएस सरकार ने उन्हें इस खेती की जमीन पर खेती करने के लिए अन्य संसाधन उपलब्ध कराने के लिए भी इस धन का इस्तेमाल किया था।

दलितों-आदिवासियों के जिस पैसे (95.76 करोड़ रुपए) को मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव की सरकार ने ‘गऊ माता’ के लिए खर्च करने का निर्णय लिया है, उस पैसे से सैकड़ों नहीं, हजारों भूमिहीन दलितों-आदिवासियों को खेती के मालिक किसानों में बदला जा सकता था।

इस तरह देखें तो कुल मिलाकर मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव की भाजपा सरकार ने 361 करोड़ रुपए गाय व मंदिर पर खर्च करने का निर्णय लिया है। इस धन का बड़ा हिस्सा दलित-आदिवासी समुदायों के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक कल्याण और सशक्तिकरण के लिए खर्च किया जाना था, जो अब गाय और मंदिर के लिए खर्च कर दिया जाएगा।

आदिवासियों और दलितों के हक की हकमारी का एक और नमूना। उनके हिस्से की धनराशि से मंदिर आदि निर्माण के लिए आवंटित राशि का उल्लेख। स्रोत : अनुूसूचित जनजाति / अनुसूचित जाति बजट, 2024-25, मध्य प्रदेश सरकार

बताते चलें कि दलितों व आदिवासियों के लिए केंद्र सरकार विशेष उपयोजनाओं का प्रावधान करती है। इन्हें अनुसूचित जाति विशेष उपयोजना (एससी सबप्लान) व अनुसूचित जनजाति विशेष उपयोजना (ट्राइबल सबप्लान) के नाम से जाना जाता है। ये दोनों विशेष उपयोजनाएं क्रमश: 1979-80 व 1974 में बनाई गई थीं। यह संविधान के अनुच्छेद 46 के प्रावधानों के तहत बनाई गई थीं, जिसमें कमजोर वर्गों के आर्थिक और शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए विशेष प्रावधान करने की बात कही गई है। लेकिन अब इसके स्वरूप में कई तरह के बदलाव किए जा चुके हैं। मसलन मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इस वर्ष जारी ‘अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति बजट’ के अनुसार, “भारत सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के अनुक्रम में राज्य शासन द्वारा वित्तीय वर्ष 2017-18 से आयोजना एवं आयोजनेतर मद के विभेदीकरण को समाप्त करने का निर्णय लिया गया।” 

हालांकि इसके कायदे पूर्ववत ही हैं। मसलन, इन योजनाओं के तहत एससी-एसटी के लिए केंद्र के बजट और राज्यों के बजट का एक हिस्सा दलितों व आदिवासियों के लिए अलग से निकाला जाएगा, जो सिर्फ उनके लिए खर्च किया जाएगा। यह उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगा। जिस राज्य में जितनी प्रतिशत आबादी एससी-एसटी की होगी, उतना प्रतिशत बजट उनके लिए अलग से आवंटित किया जाएगा। ऐसा ही केंद्र सरकार भी अपने बजट में करेगी।

लेकिन मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव की सरकार ने इन योजनाओं के तहत केंद्र से प्राप्त धन का 95.76 करोड़ रुपए ‘गऊ माता’ को दे दिया। अनुसूचित जनजाति विशेष उपयोजना और अनुसूचित जाति विशेष उपयोजना का उद्देश्य सिर्फ दलितों-आदिवासियों का सशक्तिकरण नहीं था, बल्कि इसका दूसरा बड़ा उद्देश्य था कि आदिवासियों-दलितों और समाज के अन्य तबकों के बीच असमानता की खाई को कम किया जाए। हो सके तो उसे पाटा जाए।

बहरहाल, डॉ. मोहन यादव सरकार द्वारा अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति विशेष उपयोजना के इस धन को गाय और मंदिर के लिए खर्च करना सिर्फ आर्थिक मामला नहीं है। यह उतना ही बड़ा वैचारिक मामला भी है। यदि इस धन को इन दोनों समुदायों पर खर्च किया जाता तो, यह दोनों समुदाय आर्थिक और शैक्षिक तौर पर सशक्त होते। इसके परिणामस्वरुप सामाजिक-राजनीतिक तौर भी सशक्त होते। इसके अंतिम नतीजे के तौर समाज पर सवर्णों और अन्य शासक जातियों का वर्चस्व टूटता। जो वर्ण-जाति आधारित व्यवस्था यानी ब्राह्मणवाद को कमजोर करता। इसके उलट उनके हिस्से का यह धन उनसे हड़प कर गाय और मंदिर पर खर्च किया जा रहा है। गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। वर्ण-जाति आधारित व्यवस्था को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक जातियों के वर्चस्व को मजबूत करना। कुल मिलाकर ब्राह्मणवाद को मजबूत करना। इस प्रकार जो धन ब्राह्मणवाद को कमजोर करने के लिए आया, वह ब्राह्मणवाद को मजबूत करने में लगाया जा रहा है।

वैसे आरएसएस के स्वयंसेवक और भाजपा के मुख्यमंत्री से इससे ज्यादा क्या उम्मीद भी की जा सकती है। इसीलिए भाजपा ऐसे लोगों को ही वंचित तबकों (एससी-एसटी और ओबीसी) के प्रतिनिधिनित्व देने के नाम पर चुनती है। यही है, भाजपा के सामाजिक न्याय का असली चरित्र।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सिद्धार्थ

डॉ. सिद्धार्थ लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

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