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बिहार : दलितों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एससी की सूची से तांती-तंतवा बाहर

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि वर्तमान मामले में राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और सांविधानिक प्रावधानों के विरुद्ध पायी गई है। राज्य को इस शरारत के लिए माफ नहीं किया जा सकता। बता रहे हैं हेमंत कुमार

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का बढ़ा हुआ कोटा (50 से 65 प्रतिशत) पटना हाई कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने से पहले से मुश्किल में फंसी बिहार की नीतीश सरकार को अब दूसरा बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने तांती-तंतवा जाति को अनुसूचित जाति की सूची से बाहर कर दिया है। यह इसलिए भी कि तांती-तंतवा जैसी जातियों को राजनीतिक लाभ के लिए अनुसूचित जाति की सूची शामिल करने की कोशिशों पर सवाल है। इस संबंध में डॉ. भीमराव आंबेडकर विचार मंच, बिहार और आशीष रजक ने पटना हाईकोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। गत 15 जुलाई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग एक बार फिर दरक गई।

ध्यातव्य है कि सोशल इंजीनियरिंग के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले नीतीश कुमार ने करीब नौ साल पहले 2015 में तांती-तंतवा जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का निर्णय लिया था। तब नीतीश सरकार के इस फैसले का अनूसूचित जाति के विभिन्न संगठनों ने तीखा विरोध किया था।

इससे पहले पटना हाइकोर्ट ने गत 20 जून, 2024 को अपने फैसले में आरक्षण का बढ़ाया गया कोटा (एससी, एसटी, अत्यंत पिछड़ा एवं अन्य पिछड़ी जातियां) रद्द कर दिया था। गौरतलब है कि राज्य में अगले साल 2025 में विधानसभा चुनाव है। यह मामला बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। खासकर बढ़ा हुआ आरक्षण कोटा समाप्त करने का मामला सरकार के गले की फांस बन सकता है, क्योंकि इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग केंद्र की मोदी सरकार ने अनसुनी कर दी थी‌।

बहरहाल तांती-तंतवा जाति पर सुप्रीम कोर्ट का जो ताजा फैसला आया है, उसने तो सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने अनुसूचित जाति की सूची में फेर-बदल किये जाने को शरारतपूर्ण कहा है। साथ ही, कोर्ट ने एससी कोटा में तांती-तंतवा को मिली नौकरी से संबंधित पदों को वापस करने का आदेश दिया है। इसका असर एससी सीट से चुने गये विधायक, मुखिया आदि पर क्या होगा, यह स्पष्ट नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से 1 जुलाई, 2015 को पारित उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अत्यंत पिछड़ी जाति तांती-तंतवा को अनुसूचित जातियों की सूची में पान/सवासी जाति के साथ शामिल किया जाए।

कोर्ट ने कहा कि संसद के बनाए कानून के अलावा राज्यों या केंद्र सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता, अधिकार या शक्ति नहीं है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि यह स्पष्ट रूप से अवैध और गलत है।

सुप्रीम कोर्ट व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि वर्तमान मामले में राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और सांविधानिक प्रावधानों के विरुद्ध पायी गई है। राज्य को इस शरारत के लिए माफ नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत सूची में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है। अनुच्छेद 341 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि अनुच्छेद और विशेष रूप से उप-खंड 2 को सरलता से पढ़ने से दो बातें स्पष्ट हैं। पहली, खंड-1 के अंतर्गत अधिसूचना के अंतर्गत निर्दिष्ट सूची को केवल संसद से बनाए गए कानून के जरिए ही संशोधित या परिवर्तित किया जा सकता है। दूसरी बात, यह इस पर रोक लगाता है कि संसद से बने कानून के अलावा उप-खंड-1 के अंतर्गत जारी अधिसूचना को किसी भी बाद की अधिसूचना के जरिए बदला नहीं जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि न तो केंद्र सरकार और न ही राष्ट्रपति, राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में जातियों को निर्दिष्ट करने वाली खंड-1 के अंतर्गत जारी अधिसूचना में कोई संशोधन या परिवर्तन कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अनुच्छेद केवल जातियों, नस्लों या जनजातियों से संबंधित नहीं है, बल्कि जातियों, नस्लों या जनजातियों के हिस्से या समूहों से भी संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी जाति, नस्ल या जनजाति को शामिल करने या बाहर करने के लिए संसद से बनाए गये कानून के तहत ही काम करना होगा।

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर लगा दी थी मुहर

अदालत ने पटना हाईकोर्ट के 3 अप्रैल, 2017 के उस आदेश के खिलाफ डॉ. भीमराव आंबेडकर विचार मंच, बिहार और आशीष रजक की ओर से दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें 2015 में राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा, कोई भी व्यक्ति जो इस सूची के अंतर्गत नहीं आता है और इसके योग्य नहीं है, अगर राज्य द्वारा जानबूझकर और शरारती कारणों से उसे इस तरह का लाभ दिया जाता है, तो वह अनुसूचित जातियों के सदस्यों के लाभ को नहीं छीन सकता है। इस आधार पर हुई नियुक्तियां कानून के तहत रद्द की जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया कि वह एससी कोटे के उन पदों को वापस करे, जिन पर तांती-तांतवा समुदाय की नियुक्तियां की गई हैं और उन्हें अत्यंत पिछड़ा वर्ग में वापस किया जाना चाहिए।

वहीं बिहार सरकार ने अपने कदम को उचित ठहराने का प्रयास करते हुए तर्क दिया था कि राज्य ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 2 फरवरी, 2015 के राज्य आयोग की अनुशंसा पर ही कार्य किया है। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि राज्य भली-भांति जानता था कि उसके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

हेमंत कुमार

लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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