जब मराठों के लिए फड़णवीस सरकार ने त्याग दी सारी नैतिकताएं
तीसरे भाग से आगे
जब लाखों की संख्या में मराठा मोर्चे निकाल रहे थे, उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फड़णवीस मराठा जाति के लिए स्थायी आरक्षण देने की वकालत कर रहे थे। फड़णवीस ने उस दिशा में एक-एक कदम आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। उन्हें भरोसा था कि अगर वे 2014 में मराठों को आरक्षण देते समय मुख्यमंत्री चव्हाण द्वारा की गई गलतियों से बचेंगे, तभी मराठों को स्थायी आरक्षण देने में सफल होंगे।
इस दिशा में फड़णवीस द्वारा उठाया गया पहला कदम राज्य पिछड़ा आयोग का गठन करना था। उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने 2014 में मौजूद राज्य पिछड़ा आयोग को किनारे रखकर राणे समिति का गठन करके मराठा आरक्षण देने का प्रयत्न किया था, इसीलिए वह प्रयास हाईकोर्ट में अटक गया था। देवेंद्र फड़णवीस ने भी सत्ता में आने के बाद मराठा जाति को आरक्षण देने के लिए राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का पुनर्गठन किया। आयोग का गठन करते समय फड़णवीस ने इस बात का ध्यान रखा कि अधिकतम सदस्य वे लोग हों, जो मराठा जाति को ओबीसी कोटे से आरक्षण देने के पक्षधर हों। इसलिए 11 सदस्यीय आयोग में जस्टिस एम.जी. गायकवाड़ तो मराठा समुदाय के थे ही, उनके अलावा अनेक सदस्य कुणबी समाज के थे, जो कागजी तौर पर तो स्वयं को ओबीसी मानते हैं, लेकिन सामाजिक स्तर पर खुद को मराठा मानते हैं।
क्रम | नाम | समुदाय |
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1 | सेवानिवृत्त जस्टिस एम.जी. गायकवाड़ (अध्यक्ष) | मराठा |
2 | डॉ. सरजेराव बाबूराव निमसे (विशेषज्ञ सदस्य) | कुणबी मराठा |
3 | प्रो. चंद्रशेखर भगवंतराव देशपांडे, अमरावती डिवीजन (सदस्य) | ब्राह्मण |
4 | प्रो. राजाभाऊ नारायण करपे, औरंगाबाद डिवीजन (सदस्य) | कुणबी मराठा |
5 | डॉ. भूषण वसंतराव कार्डिल, नासिक डिवीजन (सदस्य) | तेली, ओबीसी |
6 | डॉ. दत्तात्रेय दगाडू बलसराफ, पुणे डिवीजन (सदस्य) | माली, ओबीसी |
7 | डॉ. सुवर्णा तुकाराम रावल, मुंबई डिवीजन (सदस्य) | अर्द्ध-घूमंतु व अर्द्धसूचित जाति (ओबीसी) |
8 | डॉ. प्रमोद गोविंदराव येवले, नागपुर डिवीजन (सदस्य) | कुणबी मराठा |
9 | सुधीर देवमनराव ठाकरे, नागपुर डिवीजन (सदस्य) | कुणबी मराठा |
10 | रोहितास विट्ठल जाधव, औरंगाबाद डिवीजन (सदस्य) | कैकाडी, अर्द्ध-घूमंतु व अर्द्धसूचित जाति (ओबीसी) |
11 | डी.डी. देशमुख (सदस्य सचिव) | कुणबी मराठा |
इस आयोग की कार्यशैली पर सवाल इसलिए भी उठे क्योंकि इसने मराठा जाति का सर्वेक्षण करने का काम दो निजी संस्थाओं को दिया गया। उनमें एक संस्था ब्राह्मणों की थी और दूसरी मराठों की।
जाहिर तौर पर इस पूरी प्रक्रिया में फड़णवीस ने संविधान, सुप्रीम कोर्ट, लोकतंत्र और नैतिकता को ताक पर रख दिया। यह इसलिए कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का उद्देश्य ओबीसी की समस्याओं का समाधान करना और राज्य सरकार को उससे संबंधित सिफारिशें करना है। यदि कोई गैर-पिछड़ी जाति ‘पिछड़ा’ होने का दावा करती है, तो आयोग एक सर्वेक्षण करता है और तदुपरांत समुचित पाए जाने पर सरकार से सिफारिश करता है। लेकिन यहां मसला दूसरा था। मसला यह था कि मराठों को बगैर ओबीसी में शामिल किए उन्हें ओबीसी कोटे में से आरक्षण दिया जाय।
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 1992 में मंडल आयोग से संबंधित फैसले में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कैसे किया जाए, इस बारे में कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इसके अनुसार, आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को निष्पक्ष होना चाहिए। लेकिन फड़णवीस द्वारा गठित उपरोक्त आयोग गठन के समय से ही एकपक्षीय थी। उसका एजेंडा तय था कि मराठों को ओबीसी कोटे से आरक्षण देना ही है।
कहना अतिरेक नहीं कि फड़णवीस सरकार जिद पर उतारू थी कि कुछ भी हो जाय, लेकिन मराठों को आरक्षण देना ही है।
“महाराष्ट्र की सारी समस्याएं खत्म हो चुकी हैं और सभी का विकास हो गया है। एकमात्र मराठा जाति के लोग ही भीख मांग रहे हैं और वह किसी तरह झुग्गी-झोपड़ियों में बहुत कष्ट में दिन गुजार रहे हैं। अगर इस जाति को आरक्षण नहीं दिया गया तो यह किसी भी क्षण मर जाएगी।” ऐसा झूठा नॅरेटिव फैलाने के लिए फड़णवीस और सर्वदलीय मराठा विधायक, सांसद व मंत्री सुबह-शाम न्यूज चैनलों पर इंटरव्यू दे रहे थे।
मूल बात यह है कि मराठाओं को आरक्षण देने का विचार एक लोकतंत्रवादी, संविधानवादी समझदार व्यक्ति के दिमाग में आ ही नहीं सकता। सुशील कुमार शिंदे (2004), पृथ्वीराज चव्हाण (2014), देवेंद्र फड़णवीस (2018) और एकनाथ शिंदे (2024), इन सभी मुख्यमंत्रियों ने नैतिकता को ताक पर रखकर मराठों को आरक्षण दिया।
यह बहुत पुरानी घटना नहीं है। अजित पवार छगन भुजबल को वरिष्ठ नेता के तौर पर अपने बगल में बिठाते हैं। लेकिन भुजबल के लिए जब जरांगे ने आपत्तिजनक शब्दों का उपयोग किया तब न तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को और न ही उसके नेता अजीत पवार को कोई फर्क पड़ा। वजह यह रही कि गाली देने वाला अजीत पवार की जाति का है।
वहीं अपने मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ मंत्री को गाली दी जा रही है तो यह अपने मंत्रिमंडल का अपमान है। लेकिन मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को ऐसा कभी लगा ही नहीं, क्योंकि गाली देने वाला शिंदे की मराठा जाति का है।
क्रमश: जारी
(मराठी से हिंदी अनुवाद : चंद्रभान पाल, संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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