“सहरिया समुदाय के लोग गंदगी में रहते हैं, इसलिए मर रहे हैं।” यह असंवेदनशील बोल है उत्तर प्रदेश के ललितपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर इम्तियाज़ ख़ान का। दरअसल ललितपुर जिले के अलग-अलग गांवों में पिछले कुछ दिनों में डायरिया से आधा दर्ज़न से अधिक लोगों की मौत हुई है, जबकि सैकड़ों लोग इस संक्रामक बीमारी से जूझ रहे हैं। प्रशासन द्वारा किए जा रहे उपायों के बारे में जब पत्रकारों ने प्रेस कान्फ्रेंस में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) से पूछा तब जवाब में उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य व्यवस्थाएं एकदम ठीक हैं। अब अगर कोई गंदग़ी में रहे तो कोई क्या करे। अधिकारी ने यहां तक कहा कि सहरिया लोगों को छोड़कर और कोई मरा हो तो बताइए। वे लोग गंदगी में रहते हैं।
उल्लेखनीय है कि सहरिया उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं। ये मुख्यत: दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ललितपुर, छतरपुर और झांसी आदि जिलों में रहते हैं। शाब्दिक रूप से सहरिया शब्द ‘सहरा’ से बना है, जिसका अर्थ है– जंगल। सहरिया वे लोग हैं, जो जंगलों से शहरों में आए हैं। सूबे में इस जनजाति की आबादी साल 2011 की जनगणना में 23,644 थी।
खैर, ललितपुर में अब तक डायरिया के 163 मरीज मिल चुके हैं। इनमें 5 बच्चों समेत कुल 9 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। सरकारी तंत्र द्वारा सात गांवों के 17 चापाकल के पानी का नमूना लिया गया था। इनमें से पांच गांवों के 12 चापाकल के दूषित पानी पीने से डायरिया फैलने की पुष्टि हुई है।
अखिल भारतीय किसान मज़दूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव और पेशे से चिकित्सक डॉ. आशीष मित्तल ललितपुर जिले के सीएमओ के बयान पर रोष जताते हुए कहते हैं कि लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। जिसके पास साफ पानी उपलब्ध नहीं होगा, वह गंदा पानी ही पिएगा। जिसके पास साफ है, वह चाहे कितना ही कम क्यों न पढ़ा लिखा हो, साफ पानी ही पिएगा। अगर सीएमओ ऐसी घृणास्पद बात कह रहे हैं तो यह केवल और केवल दुष्टता है। उनका यह भी कहना है कि सरकारी तंत्र का रवैया भी नकरात्मक है। यह हास्यास्पद नहीं तो और क्या है कि सरकार शुद्ध पानी पीने के इश्तेहार पर पैसे खर्च करती है, लेकिन शुद्ध पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पैसा ख़र्च नहीं करती है।
ललितपुर में डायरिया से मौत के मामले
हिंदी दैनिक ‘दैनिक भास्कर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 अगस्त, 2024 को भैरा गांव के सहरिया बस्ती में पप्पू सहरिया के दो बेटों देवकीनंदन (4 वर्ष) साहिल (8) और शिब्बू सहरिया के बेटे सौरभ (8) की उल्टी-दस्त के बाद अचानक तबीयत बिगड़ गई। परिजन तुरंत महरौनी सीएचसी लेकर भागे, जहां चिकित्सकों ने साहिल और देवकीनंदन को मृत घोषित कर दिया और सौरभ की हालत गंभीर होने के कारण उसे ललितपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया जहां अगले दिन उसकी भी मौत हो गई।
ऐसे ही महरौनी के ग्राम समोगर की नन्नीबाई को 19 अगस्त की शाम अचानक उल्टी-दस्त होने लगी। परिजन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महरौनी लेकर गये। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वहां आराम न मिलने पर 22 अगस्त को ललितपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया गया। रास्ते में उसकी मौत हो गई। इसके पहले 21 अगस्त को मृतका के नाती अनुज (15 वर्ष) को उल्टी-दस्त होने के बाद सीएचसी में भर्ती करवाया गया।
14 अगस्त की रात 12 बजे के बाद जिले के ग्राम पंचायत भारौंन के मज़रा भड़वायरा निवासी प्रियंका (12 वर्ष) को उल्टी दस्त शुरू हुई। परिजनों ने सुबह एंबुलेंस को सूचित किया। एंबुलेंस उसे घर से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य बिरधा के लिए निकली रास्ते में अमऊखेड़ा के पास रेलवे क्रॉसिंग के दोनों ओर उफनते नाले के चलते एंबुलेंस बहुत समय तक वहीं खड़ी रही। अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक़ बहुत देर इंतज़ार के बाद परिजन किसी तरह मरीज़ को लेकर धौर्रा स्थित नए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने जांच के बाद बताया कि मरीज़ की मौत हो चुकी है।
इससे पहले 3 अगस्त को मड़ावरा ब्लॉक के जलंधर ग्राम पंचायत के प्रधान सत्येद्र कुमार सहरिया (33 वर्ष) की डायरिया से मौत हो गई थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्हें रात में उल्टी-दस्त शुरू होने के बाद प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, फिर वहां से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रेफर कर दिया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनकी मौत के बाद परिवार और पड़ोस के 5 लोगों को डायरिया ग्रस्त पाए जाने पर अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।
इससे पहले 19 जुलाई को जिले की ग्राम पंचायत वर्मा बिहार में डेढ़ साल के एक मासूम और राजकुमारी सहरिया (60 वर्ष) की डायरिया से मौत हुई थी। स्वास्थ्य टीम की जांच के बाद गांव में 12 लोग डायरिया ग्रस्त पाए गये थे।
सिर्फ़ सहरिया में नहीं है डायरिया का प्रकोप
ललितपुर जिले के सीएमओ के घृणास्पद बयान की वास्तविकता यह है कि डायरिया का प्रकोप न केवल ललितपुर तक सीमित है और न ही सहरिया जनजाति तक। गत 26 जुलाई, 2024 को सूबे की राजधानी लखनऊ के इंदिरानगर तकरोही स्थित डूडा कॉलोनी निवासी विश्वराम (42 वर्ष) की डायरिया से मौत हो गई। मरहूम की जीवनसाथी मंजू देवी के मुताबिक, इलाके में कई दिनों से गंदे पानी की सप्लाई हो रही थी, जिसे पीकर परिवार के सभी सदस्य बीमार थे। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मज़दूरी करके गुज़ारा करने वाले विश्वराम के परिवारजनों के पास उनका अंतिम संस्कार करने का भी पैसा नहीं था। पड़ोसियों ने चंदा जुटाकर उनका अंतिम संस्कार करवाया। इसी कॉलोनी की कलावती (50 वर्ष) की दो दिन पहले डायरिया से ही मौत हुई थी। ऐसे ही तकरोही के मायावती कॉलोनी की छात्रा क़ायनात (12 वर्ष) की डायरिया से उल्टी-दस्त के बाद लोहिया अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां 24 जुलाई को उसकी मौत हो गई।
बाद में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जांच की तो पूरे मोहल्ले में डायरिया के 50 मरीज मिले। डूडा कॉलोनी में डायरिया से हुई दो मौतों के लिए लखनऊ पूर्व के स्थानीय विधायक ओ.पी. श्रीवास्तव ने नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग जैसे संबंधित विभागों को ज़िम्मेदार ठहराया है।
प्रयागराज में भी मुसहर बस्ती के 5 लोगों की डायरिया से मौत
अगस्त के पहले सप्ताह में डायरिया ने प्रयागराज जिले के हंड़िया तहसील में क़हर ढाया। उतरांव थाना के भदवा गांव में एक सप्ताह के अंदर ही संजना (3 वर्ष) पुत्री रविशंकर, दिवाकर (10 वर्ष) पुत्र रोहित, नीता (55 वर्ष) पत्नी चन्नर मुसहर, मटूरी देवी (70 वर्ष) पत्नी पुरुषोत्तम और वीरेंद्र मुसहर की मौत डायरिया से हो गई। 6 अगस्त को इसी गांव के वीरेंद्र मुसहर (35 वर्ष) को उल्टी-दस्त होने के बाद परिजन सीएचसी सैदाबाज़ लेकर भागे अस्पताल के गेट पर ही उनकी मौत हो गई। वीरेंद्र मुसहर के बेटे चंचल (3) और बेटी नंदिनी की हालत बिगड़ने पर उन्हें स्वरूप रानी जिला अस्पताल प्रयागराज रेफर कर दिया गया।
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक इलाके में डायरिया से पांच मौत होने के बाद सैदाबाद सीएचसी और मुख्यालय की स्वास्थ्य विभाग और राजस्व की टीमें गांव के लोगों की जांच करने पहुंची। गांव के लोगों का कहना है कि बीमार लोग एक कुंए का दूषित पानी पी रहे थे। गांव के प्रधान ने चापाकल नहीं लगवाया। पूर्व क्षेत्र पंचायत संदस्य अमरेंद्र सिंह का आरोप है कि संक्रमण की कई बार उच्च अधिकारियों को जानकारी दी गई, लेकिन कोई असर नहीं हुआ।
इसी तरह हिंदी दैनिक ‘हिंदुस्तान’ की रिपोर्ट के अनुसार प्रयागराज जिले के मेजा तहसील के हरडीहा गांव की दलित बस्ती की अन्नू (16 वर्ष) पुत्री राम जी की 25 जुलाई को डायारिया से मौत हो गई। इसके पहले 5 जुलाई को इसी गांव के करियऊ (48) की डायरिया से मौत हुई थी।
डायरिया के प्रसार और जाति-व्यवस्था को जोड़कर भी देखा जाना चाहिए। बरसात के मौसम में विषेशकर बारिश के बाद इस बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा और तेजी से होता है। चूंकि बारिश के पानी का भराव निचले, तराई क्षेत्रों में होता है, इसलिए इन इलाकों में निवास करने वाली दलित व आदिवासी समुदायों के लोग सबसे ज़्यादा इस बीमारी की चपेट में आते हैं। इन लोगों के पास स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं होता है।
पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के लिए तीसरा सबसे बड़ा कारण डायरिया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट-5 बताती है कि भारत में हर साल 0 – 5 आयु वर्ग के 1.2 लाख बच्चों की मौत डायरिया के कारण होती है। यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में डायरिया के कारण होने वाली लगभग 60 प्रतिशत मौतें असुरक्षित पेयजल और खराब सफाई व्यवस्था के कारण होती हैं।
बहरहाल, यह तो साफ है कि डायरिया जैसी संक्रामक बीमारी उन इलाकों में फैलती है, जहां गंदगी होती है। यह भी सत्य है कि इन इलाकों में अधिकांश दलित व आदिवासी समुदायों के लोग रहते हैं। लेकिन ऐसी बस्तियों में उनका रहना उनकी मजबूरी है और उन्हें पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं करा पाना सरकारी तंत्र की विफलता है। ऐसे में ललितपुर के सीएमओ का बयान न केवल सरकारी तंत्र के पल्ला झाड़ने के समान है, बल्कि एक खास समुदाय के खिलाफ उनकी घृणास्पद सोच का प्रमाण भी। हालांकि इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने उनसे दूरभाष पर बातचीत करने का प्रयास किया तो जानकारी दी गई कि वे उच्च स्तरीय बैठक में व्यस्त हैं।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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