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संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सुनी दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों की फरियाद

संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार परिषद ने भारत में अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के साथ होने वाले भेदभाव पर भी चिंता जताई है। परिषद ने भारत से क़ानून बनाकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में होनेवाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव पर नकेल कसने को भी कहा है। बता रहे हैं सैयद ज़ैग़म मुर्तजा

संयुक्त राष्ट्र ने भारत के अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समूहों के खिलाफ जारी भेदभाव और हिंसा के बारे में चिंता ज़ाहिर की है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत की तरफ से दाख़िल चौथी आवधिक रिपोर्ट पर अपने विचार व्यक्त करते हुए परिषद ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम और आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के प्रावधानों को लेकर भी अपनी राय ज़ाहिर की है। परिषद ने भारत से आग्रह किया है कि वह अशांत क्षेत्रों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में सच्चाई का पता लगाने के लिए एक तंत्र की स्थापना करे, ताकि किसी बेगुनाह के साथ नाइंसाफी न हो।

हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को भेदभाव ख़त्म करने, लोगों के बीच कमज़ोर तबक़ों के अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। इस रिपोर्ट में भारत को सलाह दी गई है कि वह पुलिस बलों और प्रशासनिक कर्मियों के अलावा न्यायिक अधिकारियों और सामुदायिक कर्मियों को भी प्रशिक्षित करने पर ध्यान दे ताकि वे भारत की विविधता का सम्मान करना सीखें। हालांकि इस रिपोर्ट में भारत के कई प्रयासों की सराहना भी की गई है, लेकिन जिस तरह की घटनाएं हाल के दिनों में मणिपुर समेत देश के दूसरे राज्यों में हुई हैं, उनको लेकर चिंता भी जताई गई है।

दरअसल पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की 4134वीं और 4135वीं बैठक संपन्न हुई थी। इसमें भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर भारत की तरफ से चौथी आवधिक रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट पर चर्चा के बाद 22 जुलाई को मानवाधिकार परिषद ने अपनी 4144वीं बैठक में इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया। इसके बाद परिषद की तरफ से इस रिपोर्ट पर निष्कर्ष जारी किए गए हैं। इसमें परिषद ने भारत सरकार के अनुसूचित जाति, जनजाति (हिंसा निवारण) संशोधन अधिनियिम-2015, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम-2013, दिव्यांग जनों के अधिकार अधिनियम-2016, और संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम-2023 (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) जैसे प्रयासों की सराहना की गई है। इसके अलावा मज़दूरों, बच्चों और महिलाओं पर अंतर्राष्ट्रीय संधियों और क़ानूनों के पालन की तारीफ भी की गई है। लेकिन परिषद ने दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गहरी चिंता ज़ाहिर की है।

परिषद के मुताबिक़ भारत का सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम मानवाधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि और नियमों के अनुरूप नहीं है। परिषद ने कहा कि इस क़ानून को मणिपुर, जम्मू और कश्मीर के अलावा असम के ‘अशांत इलाक़ों’ में जिस तरह दशकों तक इस्तेमाल किया गया है, वह सही नहीं है। इसकी वजह से इन इलाक़ों में मानवाधिकारों से संबंधित कई नई समस्याएं पैदा हुई हैं। इस क़ानून का इस्तेमाल बिना वजह लोगों को लंबे समय तक हिरासत में रखने, ग़ैर-न्यायिक हत्याएं करने, लोगों को जबरन विस्थापित करने और महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा के मामलों को छिपाने के लिए किया गया है। इसका शिकार आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिलाएं अधिक हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इस संदर्भ में भारत से कहा है कि “मानवाधिकारों पर अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का पालन करते हुए भारत को सुनिश्चित करना चाहिए कि अशांत क्षेत्रों में उसकी कार्रवाई अस्थायी, तर्कसंगत, और न्यायिक विवेचना के दायरे से बाहर न हो। भारत एक ऐसे तंत्र की स्थापना करे, जिससे अशांत इलाक़ों में मानवाधिकार हनन से जुड़े मामलों का सच छिप न सके और अपराध करनेवालों की ज़िम्मेदारी सुनिश्चित हो सके।”

संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार परिषद ने जारी किया निर्देश

परिषद ने भारत में अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के साथ होने वाले भेदभाव पर भी चिंता जताई है। परिषद ने भारत से क़ानून बनाकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में होनेवाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव पर नकेल कसने को भी कहा है। परिषद ने कहा है कि भारत इस तरह के मामलों में पीड़ितों को न्याय दिलाने और न्यायिक तंत्र तक पीड़ितों की सुगम पहुंच सुनिश्चित करने के लिए वचनबद्ध है और उसे अपने वचन का सम्मान करना चाहिए। इसके लिए भारत को त्वरित जांच, शिकायत पर तुरंत कार्रवाई और पीड़ित को त्वरित न्याय दिलाने के तरीक़ों पर काम करने की ज़रूरत है। न सिर्फ पीड़ित को न्याय सुनिश्चित करना इस संधि का मक़सद है बल्कि हर तरह के भेदभाव को ख़त्म करने के प्रयास किए जाने चाहिए। इसके लिए प्रशासनिक अफसरों, क़ानून का पालन कराने वाली एजेंसियों और न्यायिक तंत्र में काम करने वालों के बीच समन्वय और प्रशिक्षण की बेहद कमी है। इस दिशा में भी भारत को क़दम उठाने चाहिए।

परिषद ने प्रशासनिक संस्थाओं के अलावा धार्मिक संगठनों, और संस्थाओं से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण पर भी बल दिया है। परिषद के मुताबिक़ “अधिकार देने वाली संस्थाओं और मज़बूत समूहों के बीच कमज़ोरों के अधिकारों को लेकर संवेदनशीलता का प्रसार ज़रूरी है।” परिषद ने कहा है कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों, अति पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और दूसरे कमज़ोर समूहों से जुड़े आपराधिक मामलों में समयबद्ध कार्रवाई की ज़रूरत है। इसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) होने के बाद पुलिस जांच और न्यायिक कार्रवाई पूरा होने के बीच का समय कम करने की ज़रूरत है। ऐसे मामलों में विवेचना और अदालती सुनवाई 60 दिन के भीतर निबट जानी चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने भारत सरकार से सुनिश्चित करने को कहा है कि दलित, मुसलमान, और ईसाइयों को पर्याप्त सुरक्षा मिले और उनके ख़िलाफ किसी तरह का भेदभाव न हो। परिषद ने मुसलमान और ईसाई धर्म अपना चुके दलितों को भी पर्याप्त संरक्षण देने के लिए कहा है। साथ ही कहा है कि इन समूहों के ख़िलाफ हिंसा फैलाने वालों, भेदभाव करने वालों या अमानवीय व्यवहार करने वालों को न सिर्फ समय रहते सज़ा मिले, बल्कि पीड़ितों के लिए उचित मुआवज़े का भी प्रावधान किया जाए।

बताते चलें कि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद विशेषज्ञों की स्वतंत्र निकाय है। इसका काम सदस्य देशों में नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों का कार्यान्वयन की निगरानी करना है। परिषद नागरिक और राजनीतिक अधिकारों को बढ़ावा देने के अलावा अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों पर हस्ताक्षर करने वालें देशों में क़ानून, नीति और व्यवहार से जुड़े बदलावों पर न सिर्फ नज़र रखती है, बल्कि अपने सुझाव भी देती है। परिषद ने भारत के साथ-साथ माल्टा, सूरीनाम, मालदीव, सीरिया, क्रोएशिया और होंडुरास पर भी अपनी निष्कर्ष रिपोर्ट जारी की है। इनमें अंतर्राष्ट्रीय नियमों, प्रतिबद्धताओं और संधियों पर क्रियान्वयन के अलावा इस बीच हुए सकारात्मक बदलावों का भी ज़िक्र है। इस पूरी रिपोर्ट में भारत के लिए साठ से ज़्यादा सलाह और निर्देश हैं।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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