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जेएनयू में जगदेव प्रसाद स्मृति कार्यक्रम में सामंती शिक्षक ने किया बखेड़ा

जगदेव प्रसाद की राजनीतिक प्रासंगिकता को याद करते हुए डॉ. लक्ष्मण यादव ने धन, धरती और राजपाट में बहुजनों की बराबर हिस्सेदारी पर अपनी बातें रखीं। बीच-बीच में भाजपा सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए शैक्षणिक संस्थाओं में बढ़ते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुष्प्रभाव को भी उजागर किया। इसी क्रम में यह वाकया सामने आया। बता रहे हैं डॉ. धर्मराज कुमार

गत 5 सितंबर, 2024 को शाम करीब साढ़े सात बजे प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के साबरमती छात्रावास के लॉन में यह वाकया हुआ। समाजवादी छात्र सभा द्वारा अमर शहीद जगदेव प्रसाद की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम के अंतिम वक्ता डॉ. लक्ष्मण यादव अपना भाषण ख़त्म करने ही वाले थे कि साबरमती हॉस्टल की तरफ भीड़ इकठ्ठा होने लगी। एक आदमी के चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी– “लाइन काटो, लाइन काटो”। मतलब लॉन की बिजली काट दो, ताकि कार्यक्रम बंद हो।

साबरमती हॉस्टल के गेट पर जमा हुए जेएनयू के सुरक्षा प्रहरियों से पता चला कि चिल्लाने वाला व्यक्ति कोई असामाजिक तत्त्व नहीं, बल्कि उसी हॉस्टल के वार्डन स्वयं थे। छात्रों के बीच चल रही कानाफूसी से पता चला कि साबरमती के वार्डन को बाबू जगदेव प्रसाद की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में सामंतवाद और संघ की आलोचना से समस्या थी, जिसे वह अराजक और तानाशाही तरीके से बलपूर्वक ख़त्म कराने पहुंचे थे। इस कार्यक्रम में तीन वक्तागण थे – डॉ. नवल किशोर शाक्य, डॉ. लक्ष्मण यादव, नवल किशोर कुमार। इस कार्यक्रम के शुरुआत होने का समय 5 बजे रखा गया था।

ऐसा लगता है किसी भी कार्यक्रम के दिए गए समय के मामले में जेएनयू में छात्रों के बीच आईएसटी यानि इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का मज़ाक दशकों पुराना है। यह अलग बात है कि 5 बजे तक भले ही वक्तागण पहुंच कर छात्रों से संवाद कर रहे थे, लेकिन उमस भरी गर्मी के मौसम के कारण आयोजक ने कार्यक्रम की शुरुआत लगभग साढ़े पांच बजे की।

इस कार्यक्रम की शुरुआत जगदेव प्रसाद की तस्वीर पर माल्यार्पण के बाद हुई। इस कार्यक्रम की निज़ामत शशांक समीर ने की। शशांक समीर जेएनयू के स्कूल और आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स विभाग में पीएचडी के छात्र हैं। अपनी निज़ामत के दौरान भावुक परिचय देते हुए शशांक समीर ने बताया कि उनका संबंध बिहार के उसी जिले जहानाबाद से है, जो बिहार लेनिन जगदेव प्रसाद की जन्मभूमि रही। शशांक ने खुलकर वामपंथियों का गढ़ माने जाने वाले जेएनयू की राजनीतिक निष्ठा पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया और कहा कि जाति जैसे गंभीर मसले को जहां बाबू जगदेव प्रसाद ने सत्तर के दशक में ही जोर-शोर उठाया और समतावादी विमर्श को स्थापित कर दिया, वहीं जेएनयू में वामपंथी राजनीति की आड़ में न केवल जाति के प्रश्न को बल्कि वंचित समाज और जाति से आने वाले लोगों के आवाजों को भी कुचलते रहे। शशांक समीर के परिचयात्मक भाषण के दरम्यान साबरमती लॉन के इस कार्यक्रम में छात्रों की बड़ी संख्या पहुंच चुकी थी।

पहले वक्ता के रूप में फॉरवर्ड प्रेस, नई दिल्ली के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किये गए। उन्होंने जगदेव प्रसाद पर अपनी बात रखते हुए कहा कि जगदेव प्रसाद को भले ही कुछ लोग शहीद बाबू जगदेव प्रसाद कहकर गौरवान्वित महसूस करते हैं, लेकिन यह ऐतिहासिक कटु सत्य है कि उनकी नृशंस हत्या की गई थी। जबकि उस नृशंस हत्या का कोई दोषी आजतक गिरफ़्तार नहीं हुआ। बिहार में लगभग पैंतीस साल से चले आ रहे सामाजिक न्याय के नाम पर राजनीति करनेवाले नेताओं की राजनीति को कटघरे में रखा और पूछा कि बाबू जगदेव प्रसाद की सामाजिक समता की राजनीति ‘अबकी सावन-भादों में, गोरी कलइया कादों में’ और सामाजिक न्याय के बुलंद नारे ‘धन, धरती और राजपाट में , नब्बे भाग हमारा है’ का क्या हुआ? भूमि सुधार के मुद्दे को याद दिलाते हुए उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और बिहार के वर्तमान और सबसे लंबे समय से बने हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति पर गहरे सवाल खड़े किये। उन्होंने साफ़-साफ़ प्रश्न उठाया कि बिहार में भूमि सुधार के नाम पर लालू प्रसाद ने एक समिति और नीतीश कुमार ने आयोग गठित किया था। नीतीश कुमार की सरकार में भूमि सुधार के लिए बंद्योपाध्याय आयोग ने तो अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंप दी थी। आख़िर क्या हुआ इस मुद्दे का, आयोग के इन रिपोर्ट का और जगदेव प्रसाद की राजनीतिक वारिस बनकर घूमने वाले नेताओं द्वारा वादा किये गए भूमि सुधार और न्यायोचित आवंटन के मुद्दे का?

समाजवादी छात्र सभा के मंच से बिहार ही नहीं पूरे देश में सामाजिक न्याय के नाम पर चल रहे राजनीति पर उन्होंने सवाल खड़े किये और कहा कि तेजी से बढ़ती आर्थिक विषमता के बीच जगदेव प्रसाद की राजनीति की प्रासंगिकता बढ़ती चली जाएगी।

अगले वक्ता के रूप में, उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से समाजवादी पार्टी के 2024 आम चुनाव के लोकसभा प्रत्याशी डॉ. नवल किशोर शाक्य को आमंत्रित किया गया। पेशे से कैंसर सर्जन डॉ. नवल किशोर शाक्य ने जेएनयू के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि कभी उनकी चाहत थी कि वे इस संस्थान के छात्र हो सकें। हालांकि, वे मेडिकल साइंस की दुनिया में चले गए और कैंसर सर्जन बन गए। विज्ञान और समाज विज्ञान की कड़ी के रूप में, डॉ. नवल किशोर शाक्य के बारे में मशहूर है कि एक तरफ जहां वे कैंसर जैसी खर्चीली और जानलेवा बीमारी के बेहतरीन सर्जन डॉक्टरों में गिने जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ गरीबों के लिए भी कैंसर का निःशुल्क इलाज करने के इतने किस्से आम हैं कि 2024 में समाजवादी पार्टी ने उन्हें फर्रुखाबाद से आम चुनाव में लोकसभा का टिकट दिया। साफ़गोई से संक्षेप में अपनी बात रखते हुए डॉ. नवल किशोर शाक्य ने कहा कि वर्तमान में अगर वे सफल सर्जन बन पाए हैं तो इसका श्रेय फुले, आंबेडकर, लोहिया के विचार और बाबू जगदेव प्रसाद जैसे महान नायकों को ही जाता है।

डॉ. नवल किशोर शाक्य की ज़िंदादिली, सादगी और पेशे से मेडिकल क्षेत्र में रहने के बावजूद समाज की गंभीर समझ ने जेएनयू के छात्रों को उनकी तरफ आकर्षित कर लिया।

स्मृति सभा को संबोधित करते डॉ. लक्ष्मण यादव

शशांक समीर ने अंतिम वक्ता के रूप में डॉ. लक्ष्मण यादव को आमंत्रित करने के पहले ज़ोर देकर याद दिलाया कि बाबू जगदेव प्रसाद ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए अपने जान की बाजी लागाकर आंदोलन खड़ा किया, इसलिए किसी भी सूरत में ‘राजनीतिक हरवाही को नकारना होगा।

डॉ. लक्ष्मण यादव ने अपने भाषण की शुरुआत बिलकुल प्रोफेशनल तरीके से समाजवादी छात्र सभा के आयोजकों, छात्रों, श्रोताओं और स्वतंत्र रूप से ढाबे पर मौजूद छात्रों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा। हाल-हाल तक दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में छात्रों को पढ़ाने के अंदाज़ में रस्मी तौर पर डॉ. लक्ष्मण यादव ने अपने से पहले बोलनेवाले वक्ताओं को बाबू जगदेव प्रसाद के पहलुओं पर प्रकाश डालने के लिए धन्यवाद दिया और विस्तार से अपनी बात रखने के पहले सारांशतः दोनों भाषणों के मूल बिंदुओं को रखा।

हिंदी साहित्य और भारत के ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने और समझ होने का लाभ उठाते हुए डॉ. लक्ष्मण यादव ने अपना भाषण चुटीले अंदाज़ में शुरू किया। हाल में ही जेएनयू को सुचारू रूप से चलाने के लिए लोन लेने और ज़मीन बेचने की ख़बरें अख़बारों में छपी थी, जिसपर तंज कसते हुए सवाल पूछा कि जब जेएनयू को केंद्र सरकार ही चलाती है तो आख़िर सरकार किससे लोन लेगी? जेएनयू में भी, जहां वर्षों से मार्क्सवादी राजनीति होती रही है, जातिवाद के कारण भर्तियों में ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ जैसे भ्रष्टाचार पर भी उन्होंने सवाल उठाया। इस संदर्भ में बाबू जगदेव प्रसाद की राजनीतिक प्रासंगिकता को याद करते हुए धन, धरती और राजपाट में बहुजनों की बराबर हिस्सेदारी पर अपनी बातें रखीं। बीच-बीच में भाजपा सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए शैक्षणिक संस्थाओं में बढ़ते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुष्प्रभाव को भी उजागर किया। छात्र भी तालियों की गूंजों से इस बात की पुष्टि करते रहे कि जेएनयू में कोई भी ताकतवर तानाशाही सत्ता आलोचना से परे नहीं है।

अब तक शाम ढल चुकी थी। छात्रों के डिनर का भी टाइम हो चला था। डॉ. लक्ष्मण यादव का भाषण समाप्त होने ही वाला था कि अचानक से साबरमती हॉस्टल की तरफ किसी के ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। कोई कह रहा था, लाइन काटो, लाइन काटो। छात्र भी उस तरफ दौड़े। समाजवादी छात्र सभा के कुछ छात्रों ने बताया कि चिल्लाने वाले व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि साबरमती हॉस्टल के वार्डन हैं, जो बाबू जगदेव प्रसाद की स्मृति में दो घंटे से सामंतवाद, दक्षिणपंथ, ब्राह्मणवाद और भाजपा सरकार पर हमले से बौखला कर कार्यक्रम भंग करने पहुंचे थे।

आयोजक छात्रों ने बताया कि अनुमति लेकर कार्यक्रम आयोजित करने के बावजूद वे तानाशाह की तरह बिजली काटने को दौड़े और छात्रों को डांटने लगे। इसी बीच डॉ. लक्ष्मण यादव ने भी माइक से यह कहकर भाषण का अंत कर दिया कि इस दौर में इतनी बातचीत हो रही है, यह भी कम नहीं है, ख़ासकर उस वक़्त जब पूरे देश में लोकतांत्रिक अधिकारों और विमर्श पर हमले तेज़ हैं।

नए छात्रों के लिए वार्डन के द्वारा इस तरह का व्यवहार हतप्रभ कर देने वाला था। छात्रों के मन में जेएनयू को लेकर जो एक छवि थी कि यहां प्रत्येक छात्र, शिक्षक, कर्मचारी या व्यक्ति अपनी बात खुलकर रख सकता है और उस पर गंभीरता से बात होती है, उस पर गहरा आघात लगा। विभिन्न छात्र संगठनों के छात्र आपस में वैचारिक विरोध करते हैं लेकिन जेएनयू के एक शिक्षक द्वारा अतिथि वक्ताओं के साथ इस प्रकार का व्यवहार दुखी करने वाला था।

हालांकि, जेएनयू के पुराने छात्रों के लिए इसमें कोई भी आश्चर्यजनक बात नहीं थी, क्योंकि पुराने छात्रों ने 5 जनवरी, 2020 को घटित हिंसा को देख चुके थे, जिनमें जेएनयू के कुछ शिक्षक भी मौजूद थे। बल्कि इस व्यापक हिंसा की घटना से बचाव के लिए जेएनयू गेट पहुंचने वाले देश के प्रसिद्ध चिंतक योगेंद्र यादव ने तो राष्ट्रीय मीडिया के सामने बयान देकर कहा था कि छात्रों के आपसी विवाद में शिक्षकों द्वारा हिंसा में भाग लेना, जेएनयू जैसी संस्था के लिए अफ़सोस की बात है।

बाबू जगदेव प्रसाद की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित करनेवाले छात्र संगठन समाजवादी छात्र सभा को बधाई देकर कार्यक्रम की समाप्ति हुई। इस कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ताओं को आमंत्रित करने के लिए परमिंदर यादव और शशांक समीर को विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इतिहास विभाग के छात्र अमित कुमार ने वक्ताओं को धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस कार्यक्रम में समाजवादी छात्र सभा की लोकप्रिय छात्र नेता आराधना यादव समेत दर्जनों कार्यकर्त्ता और छात्र शामिल रहे। अनेक छात्रों ने ढाबे के चारों तरफ चाय की चुस्की के साथ वक्ताओं के भाषण के जरिए विचार-विमर्श में डूबे रहे। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद वक्ताओं के साथ छात्रों ने खुलकर चाय पर सवाल करते रहे। इस तरह जेएनयू की एक और शाम विचारों में ढल गई।

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

धर्मराज कुमार

जेएनयू से पीएचडी व पूर्व में दिल्ली विश्वविद्यालय में एडहॉक शिक्षक रहे डॉ. धर्मराज कुमार लेखक, अनुवादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं तथा हिंदी में ‘दैनिक अम्बेडकर’ व अंग्रेज़ी में ‘द ओपिनियन प्लेटफार्म’ नामक यूट्यूब चैनल चलाते हैं

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