बैंकों में पारदर्शिता और सुरक्षा के नाम पर कई तकनीकी व्यवस्थाएं बना दी गई हैं। इनमें केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) प्रणाली भी है, जिसे बैंकों द्वारा प्रमुखता से लागू किया जा रहा है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि इसके मकड़जाल में झारखंड के गरीब आदिवासी फंस गए हैं। उन्हें उनके ही पैसों से वंचित किया जा रहा है।
प्राख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के नेतृत्व में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, गरीब आदिवासियों के लगभग 60 फीसद बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं। मतलब यह कि वे अपने खाते से न तो पैसा निकाल सकते हैं और न ही जमा कर सकते हैं। इसके कारण झारखंड की हेमंत सरकार द्वारा महिलाओं के लिए लाई गई नई योजना “मैया सम्मान योजना” सहित कई जनाकांक्षी योजनाएं प्रभावित हो रही हैं।
मैया सम्मान योजना झारखंड सरकार की एक ऐसी योजना है, जिसके तहत राज्य की महिलाओं को, खासतौर पर मांओं की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए हर महीने 1,000 रुपए का भुगतान किया जाता है। यह राशि राज्य सरकार द्वारा सीधे महिलाओं के बैंक खातों में भेज दिया जाता है।
वहीं आदिम जनजाति पेंशन योजना के तहत आदिम जनजाति की महिलाओं, जिनकी उम्र 18 साल से ऊपर है और जिनकी शादी हो चुकी है, को हर माह 1,000 रूपए मिलते हैं। यह राशि भी लाभार्थियों को सीधे उनके बैंक खाते में भेजे जाते हैं। ऐसे ही आदिवासी छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति भी सीधे उनके बैंक खातों में भेजी जाती है।
यही हाल मनरेगा योजना का भी है। मनरेगा मजदूरों को भी उनकी मजदूरी सीधे बैंक खाते में भेजी जाती है। बुजुर्गों के लिए वृद्धा पेंशन योजना की स्थिति भी वही है। इनके अलावा अन्य कई जनकल्याणकारी योजनाएं हैं, जिनके तहत लाभार्थियों को उनके बैंक खातों में राशि भेजी जाती है।
ऐसे में जब राज्य में लोगों के एकाउंट केवाईसी के नाम पर फ्रीज कर दिए गए हैं तो वे लोग अपने बैंक खातों से पैसे नहीं निकाल पा रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी कष्टमय हो गई है। बैंकों के मुताबिक यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक वे केवाईसी की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेते है।
ऊपरवर्णित सर्वे से जो मामले उभरकर सामने आए हैं, वे काफी चिन्ताजनक हैं। सर्वे में सामने आया है कि कई लोगों के बैंक खाता और आधार कार्ड में दर्ज नाम में काफी गड़बड़ियां हैं। इसके कारण उनके बैंक एकाउंट का केवाईसी नहीं हो पा रहा है। बैंक वाले उन्हें आधार कार्ड सुधारवाने की हिदायत दे रहे हैं। वहीं आधार कार्ड सुधारने के आधार केंद्र वाले कई तरह के दस्तावेज की मांग कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ, जिनका बैंक खाते का विवरण और आधार कार्ड में दर्ज विवरण आदि सब कुछ ठीक है, बावजूद इसके उन्हें बैंक वालों की यातना झेलनी पड़ रही है। कई बार तो उन्हें लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है और जैसे ही उनका नंबर आता है, बैंक बंद हो जाता है।
अनेक खाताधारकों की यह भी शिकायत है कि कहीं-कहीं बैंककर्मी अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं। वे मोबाइल पर किसी से बात करने में लगे रहते हैं और काफी धीमी गति से अपना काम करते हैं। ऐसे बैंक का समय भी खत्म हो जाता है और खाताधारकों को बैरंग वापस लौटना पड़ता है। लगातार ऐसा होने के बाद खाताधारक पुनः बैंक जाने से गुरेज कर रहे हैं और अपनी कठिनाई को नियति मानकर उस परेशानी को गले लगाने को मजबूर हैं।
जाहिर तौर पर इतने बड़े पैमाने पर बैंक खातों को फ्रीज कर देने की वजह से बुजुर्ग पेंशनभोगी, जो केवल पेंशन पर ही निर्भर हैं, छात्रवृत्ति पाने वाले बच्चे और झारखंड की नई योजना मैया सम्मान योजना के तहत लाभार्थी महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो गई है।
कायदे से केवाईसी का मतलब बैंकिंग प्रणाली में पहचान को सत्यापित करना है। लेकिन सुदूर क्षेत्रों में बसे आदिवासी समुदाय के गरीब लोगों के लिए इन औपचारिकताओं को पूरा करना आसान नहीं है। उन्हें स्थानीय आधार केद्र पर आधार नंबर का बायोमेट्रिक सत्यापन करवाना पड़ता है। फिर सत्यापन प्रमाणपत्र को बैंक में ले जाकर देना होता है। वहां एक फॉर्म भरकर आवश्यक दस्तावेजों के साथ दोनों को जमा करना होता है। उसके बाद ग्राहक खाते को फिर से सक्रिय करने के लिए बैंक की दया पर निर्भर होना होता है। अगर सबकुछ ठीक रहा तब भी इस क्रिया में महीनों लग सकते हैं।
सर्वेक्षण के उपरांत जारी रिपोर्ट में पीड़ित लोगों से बातचीत का वीडियो भी उपलब्ध कराया गया है। एक वीडियो में लोहरदगा जिला के सेन्हा प्रखंड अंतर्गत कान्द्रा पंचायत के बुटी गांव निवासी भोला उरांव का बैंक खाता केवाईसी की प्रक्रिया पूरी नहीं होने के कारण फ्रीज है। बैंककर्मी कहते हैं कि पहले केवाईसी करवाना होगा, जिसके लिए आधार कार्ड लाना होगा। आधार कार्ड लेकर भोला उरांव जब बैंक गए तब बैंक वालों ने बताया कि आपका केवाईसी नहीं हो सकता है, क्योंकि आपका आधार कार्ड और बैंक खाता के नाम के स्पेलिंग में फर्क है। दरअसल भोला उरांव के बैंक खाता के नाम के स्पेलिंग में अंग्रेजी लिपि के एक अक्षर का अंतर है, जिसके कारण उनके नाम का उच्चारण भोला उरांव (Bhola Oraon) के बजाय भौला उरांव (Bhoula Oraon) हो गया है। बैंक वालों ने कहा कि आधार कार्ड में नाम का स्पेलिंग सुधरवा लीजिए। जब भोला उरांव आधार कार्ड सुधरवाने आधार केंद्र गए तो वहां कहा गया कि आधार कार्ड को सुधारने के लिए कोई अन्य दस्तावेज चाहिए। जब भोला ने पासबुक दिखाया तो केंद्र वाले ने कहा कि पासबुक में लिखा हुआ नाम वगैरह साफ नहीं दिखा रहा है। पासबुक नया प्रिंट करवाकर लाइये। जब इसे लेकर भोला उरांव बैंक गए और नया पासबुक की मांग की और कहा कि इसमें साफ नहीं दिख रहा है, आधार कार्ड वालों ने कहा है कि इसके लिए साफ-साफ लिखा होना जरूरी है। तब बैंक वालों ने कहा कि जब तक केवाईसी नहीं होता है तब तक नया पासबुक निर्गत नहीं किया जाएगा। इस तरह भोला उरांव इस नई तथाकथित पारदर्शी प्रणाली में बुरी तरह से फंसे हुए हैं।
इतना ही नहीं, भोला उरांव के वोटर कार्ड में भी त्रुटि है। वोटर कार्ड में उनका नाम मौला उरांव कर दिया गया है। इसके बावजूद वे वर्षों से लगातार वोट देते आ रहे हैं। इसे लेकर आज तक किसी ने न कोई सवाल उठाया और न ही टोका-टोकी की। इसकी वजह साफ है कि वोट देने के लिए नाम की किसी शुद्धता की जरूरत नहीं है। यह जरूरत केवल जनता को मिलने वाली सुविधाओं पर लागू होती है। नेताओं को मिलने वाले वोट पर नहीं। यह भी एक रहस्यमयी प्रश्न है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं।
इस तरह की खामियों के शिकार और परेशान अकेले भोला उरांव ही नहीं हैं। उनके ही गांव के एक हैं– बसंत उरांव। इनके बैंक खाते में ‘Basant Oraon’ दर्ज है और आधार कार्ड में ‘Basnt Oraon’। सर्वेक्षण टीम द्वारा जारी वीडियो में वह बताते हैं कि उनका खाता भी केवाईसी नहीं होने के कारण निष्क्रिय है। केवाईसी करवाने के लिए बैंक द्वारा बताई गई शर्त भी भोला उरांव की तरह ही है। नतीजतन इनका भी केवाईसी नहीं हो पा रहा है।
इसी गांव की निवासी हैं– सरिता उरांव। इनका बैंक खाता सरिता उरांव के नाम से है, लेकिन इनके आधार कार्ड में अर्चना उरांव अंकित है। वीडियाे में सरिता ने बताया है कि वे पिछले तीन साल से केवाईसी नहीं करवा पा रही हैं और उनका खाता निष्क्रिय है। उन्हें कहा गया कि पहले आधार कार्ड सुधारवाओ, लेकिन अभी तक उनका आधार कार्ड नहीं सुधर पाया है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा?
उर्मिला उरांव भी इसी गांव की निवासी हैं। उनके परिवार में सात सदस्य हैं, जिनमें से छह लोगों का बैंक में खाता है और सभी का खाता केवाईसी के कारण बंद पड़ा है। वीडियो में वह बताती हैं कि हाल ही में वह बैंक के काउंटर पर लगी लंबी लाइन में पूरे दो दिन खड़ी रहीं, लेकिन उन सबका केवाईसी नहीं हुआ, क्योंकि उनका नंबर आते ही काउंटर बंद हो गया था। बैंक कर्मी की कितनी भी चिरौरी की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। बैंककर्मी बार-बार यही कहता रहा कि बैंक बंद होने का समय हो गया है, कल आना। वह बार-बार जाती रहीं, लेकिन कभी बैंक में सर्वर डाउन रहा तो कभी समय समाप्त। वे भी परेशान हैं कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा?
लोहरदगा के ही सेन्हा प्रखंड की गोटीडुमर की रहने वाली शांति उरांव की समस्या काफी उलझी हुई है।
वह हिंदी नहीं बोल पाती हैं। वीडियो में वह स्थानीय भाषा में बताती हैं कि मनरेगा के काम का पैसा और तेंदु पत्ता (बीड़ी बनाने का पत्ता) का पैसा नहीं मिल रहा है, क्योंकि पैसा बैंक में जाता है। एक बिचौलिया, जिसे वह मुंशी कहती हैं, उन्हें बताता है कि उनका पैसा बैंक में नहीं जा रहा है। पता करने के लिए वह अंबिकापुर स्थित बैंक का कई बार चक्कर लगा चुकी हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बता दें कि अंबिकापुर झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है और छत्तीसगढ़ के अंतर्गत आता है। शायद किसी बिचौलिये ने शांति उरांव का बैंक खाता अंबिकापुर स्थित बैंक में खुलवा दिया होगा।
लोहरदगा जिले के ही धनमुंजी की रहने वाली सोरा उरांव के परिवार में 5 सदस्य हैं। इनमें से 3 लोगों का बैंक खाता है, जो केवाईसी की वजह से निष्क्रिय है। वीडियो में सोरा बताती हैं कि हाल ही में जब केवाईसी के लिए बैंक जाकर आवेदन दिया, तब उन्हें एक टोकन दिया गया कि आप 27 दिसंबर को आइयेगा। वे बताती हैं कि वह जब भी बैंक गईं, तो बैंक में काम करने वाले लोग फोन पर बात करने में लगे रहते हैं, जल्दी कोई नहीं सुनता। उनका कहना है कि इसी क्रम में लंबा समय निकल जाता है और बैंक बंद होने का टाइम हो जाता है। सोरा का कहना है कि बैंक के लोग हमारे वक़्त की न कीमत समझते हैं, न ही इज्ज़त करते हैं।
लातेहार जिले का मनिका प्रखंड अंतर्गत लंका गांव के उचवाबल टोला के अशोक परहिया के तीन बच्चों की छात्रवृत्ति अभी बंद है, क्योंकि उनके बैंक खाते निष्क्रिय कर दिए गए हैं। वीडियो में वह बताते हैं कि इसके बारे में जानने के लिए जब अशोक परहिया बैंक गए तो उन्हें बताया गया कि केवाईसी करवाना होगा। अशोक ने सीएससी संचालक (स्थानीय सुविधा प्रदाता) से मदद ली और केवाईसी करवाने के लिए प्रति बच्चे 150 रुपए का भुगतान किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने बच्चों के आधार और पासबुक की प्रतियां संचालक को दे दी हैं, लेकिन वे अंतहीन इंतजार कर रहे हैं। उन्हें हमेशा बैंक से जांच करने के लिए कहा जाता है। फिलहाल, अशोक ने हार मान ली है।
लातेहार के मनिका प्रखंड के ही कुटमु गांव की संगीता देवी हर महीने मुश्किल से गुज़ारा कर पा रही हैं। वीडियो में वह बताती हैं कि उनके पति दृष्टि बाधित हैं और उनके दो बच्चे हैं। उनका बैंक खाता केवाईसी संबंधी समस्याओं के कारण निष्क्रिय कर दिया गया है। केवाईसी करवाने के क्रम में आधार कार्ड में कोई गलती बताया गया। आधार कार्ड में उस गलती को सुधारने के लिए सीएससी संचालक ने एक हजार रुपए लिये। वहीं एक बच्चे का आधार कार्ड बनवाने के एवज में भी एक हजार रुपए लिये। पैसे न होने के कारण दूसरे बच्चे का आधार कार्ड बनवाना मुश्किल हो गया है। वह बताती है कि उसके पति देख नहीं पाते हैं, उनसे कोई काम नहीं होता है। घर की पूरी जिम्मेवारी उसके ही कंधे पर है।
लातेहार के मनिका प्रखंड साधवाडीह गांव की सोमवती देवी केवाईसी संबंधी समस्याओं के समाधान में आने वाली कठिनाइयों के बारे में वीडियो में कहती हैं कि जब भी वह बैंक जाती थीं, तो वहां इतनी भीड़ होती थी कि अक्सर हम लोग वापस लौट जाते थे। उन्हें अपना केवाईसी करवाने में 15 दिन लग गए। हालांकि, उनके पति निर्मल सफल नहीं हुए और उन्होंने लातेहार के पंजाब नेशनल बैंक में नया खाता खुलवा लिया है। ऐसे में पुराना खाता जो कि निष्क्रिय कर दिया गया है, से पैसा नहीं मिलेगा।
बताते चलें कि यह संकट भारतीय रिजर्व बैंक के दबाव में उत्पन्न हो जाती है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक स्थानीय बैंक मैनेजर ने बताया कि हमारे बैंक में 2,000 से अधिक केवाईसी आवेदनों का बैकलॉग है, जबकि प्रतिदिन केवल 30 केवाईसी की हमारी प्रोसेसिंग क्षमता है। गरीब लोगों के पास आम तौर पर आधार से जुड़ा एक खाता होता है। इतनी सख्त केवाईसी की क्या जरूरत है? इस पूरी प्रक्रिया की तत्काल समीक्षा की जरूरत है।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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