ईश्वर, धर्म, गांधी, कांग्रेस और ब्राह्मणवाद सभी को खारिज करनेवाले पेरियार ने अपने आत्मसम्मान आंदोलन के माध्यम से सदियों से जातीय और धार्मिक आग्रहों से पीड़ित एक व्यापक आबादी के जीवन में जिस सुराज की कल्पना की थी, उसकी अपने देश में वर्षों से उपेक्षा कर हिंदी विरोधी और मनुष्यता विरोधी विशेषणों से अभिहित किया गया। लेकिन मंडल चेतना की बढ़ती रफ्तार में उनके नायकत्व पर डाली गई खलनायकत्व की चादर तेजी से सिमटने लगी है। हिंदी में उनके विपुल कार्यों को ओमप्रकाश कश्यप ने जिस प्रतिबद्धता के साथ समूर्त किया है, वह अतीव प्रशंसनीय है।
पेरियार को दक्षिण के लोगों ने जिस जिम्मेवारी और गहराई के साथ जीवंत किया है, उसका नवीनतम साक्ष्य है– ‘पेरियार की जीवनयात्रा’ (एक हजार प्रश्नोतर’)। कुल 9 अध्यायों में विभक्त इस प्रश्नोतर को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में दर्शाया है। इसका संपादन के. वीरामणि और अनुवाद ओमप्रकाश कश्यप ने किया है।
पुस्तक का पहला अध्याय ‘पेरियार का परिवार और जीवन परिचय’ नाम से है, जिसे दो भागों में विभक्त किया गया है। पहले भाग में कुल 60 प्रश्नोत्तर दिये गये हैं और दूसरे भाग में 125 प्रश्नों के उत्तर समाहित हैं। इन्हें पी. सुब्रमणियम ने फ्रेम किया है। इस अध्याय में पेरियार के समग्र जीवन को लिया गया है, जिसमें उनकी पारिवारिक स्थिति से लेकर संगठनात्मक एप्रोच और अपने दौर के नेताओं से उनके रिश्ते के मुतालिक भी कई तरह की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया है।
पुस्तक का दूसरा अध्याय वायकोम-चेरन्म्मादेवी-कांचीपुरम नाम से है। यह अध्याय भी तीन भागों में समाहित है। पहले भाग में जहां 78 प्रश्नोत्तर हैं, वही दूसरे में 21 और तीसरे में 18। पहले भाग में वायकोम सत्याग्रह से जुड़े सवाल हैं तो दूसरे में चेरन्म्मादेवी कस्बे में स्थापित स्कूल से जुड़े सवालों की शृंखला है। तीसरे खंड में कांचीपुरम से जुड़े सवाल हैं। इन स्थानों पर पेरियार के जीवन से कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम जुड़े रहे जिसे लेखक ने समग्रता में सामने लाने का श्लाघनीय प्रयास किया है। इस खंड को डॉ. पी. राजदुरई ने तैयार किया है।
पुस्तक के तीसरे अध्याय में पेरियार के सार्वजनिक जीवन पर फोकस किया गया है। इस अध्याय को प्रो. एन श्रीनिवासन ने तैयार किया है। इसमें कुल 91 प्रश्नोत्तर हैं। इस खंड में पेरियार के कांग्रेस के साथ काम करने, गांधी आदि नेताओं से उनके संबंध और विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में उनकी सक्रियता से जुड़े प्रश्नोत्तर शामिल हैं। कहना न होगा कि पाठकों को भारतीय राजनीति की सूक्ष्मतम चीजों के बारे में भी एक वस्तुनिष्ठ जानकारी यह खंड देती है।
पुस्तक का चौथा अध्याय ‘स्व सम्मान आंदोलन : शुरुआत और विकास’ नाम से है जो वर्ष 1925 से 1931 तक के काल पर फोकस है। इसके लेखक हैं– एस. अरिविक्कार्सू। इसमें कुल 144 प्रश्नोत्तर समाहित हैं। इसमें पेरियार के जीवन का अपेक्षाकृत बड़ा हिस्सा और उनकी व्यापक गतिविधियों का परीक्षण शामिल है। जाति के सवाल पर कांग्रेस से उनकी दूरी, विभिन्न मंचों पर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में बहुजन समाज की हिस्सेदारी का सवाल, कुदी आरसू के माध्यम से उनके लेखन की व्यापक होती दुनिया और हिंदी विरोधी आंदोलन के साथ ही और भी ढेर सारे सवालों को यहां संबोधित किया गया है।
पुस्तक के पांचवें अध्याय में 143 प्रश्नोत्तर हैं, जो ‘पेरियार : जीवन दर्शन, सिद्धांत और उद्देश्य’ नाम से संकलित हैं। इस खंड को प्रो. जी.वी.के. आसान ने तैयार किया है। इसमें पेरियार के सामुदायिक, राजनीतिक और प्रशासन संबंधी कामों के साथ ही शिक्षा, विचार, व्यवहार, धर्म, अंधविश्वास के सवालों पर सवाल फ्रेम किये गए हैं। इसी प्रकार पुस्तक का छठा अध्याय पेरियार के साहित्य पर केंद्रित है, जिसे प्रो. एन. वेत्र्सिालागन ने मूर्त किया है। इसमें 114 प्रश्नोत्तर शामिल हैं। यह भी बेहद दिलचस्प तरीके से तैयार किया गया है। इसका पहला ही प्रश्न है कि “एक कवि ने पेरियार की प्रशस्ति में कविता लिखकर उन्हें फूलों से भरे ऐसे बगीचे की उपाधि दी थी जिसमें महान विचार खिलते-महकते रहते हैं।” इसमें चार कवियों का विकल्प दिया गया है और अध्याय के अंत में सही उत्तर के रूप में क्रांतिकारी कवि भारती दसन का नाम दिया गया है। इसमें पेरियार के विभिन्न विषयों पर लिखी पुस्तकों एवं उनके ऊपर अपने दौर में लिखी गई पुस्तकों के साथ ही महिलाओं संबंधी उनके विचारों को भी रेखांकित किया गया है।
पुस्तक का सातवां अध्याय पार्टी संरचना और संस्थाओं पर केंद्रित है, जिसे दुरई एवं चक्रवर्ती ने तैयार किया है। इसमें उनकी पार्टी गतिविधियों और संस्थाओं से जुड़े कुल 114 प्रश्नोत्तर समाविष्ट किये गए हैं, जो पेरियार साहित्य के अध्येताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
पुस्तक के नौवें अध्याय में सचित्र प्रश्नोतर हैं। वे भी कोई सामान्य नहीं हैं। पेरियार के जीवन और उनकी विचारधारा से जुड़े वृहतर आयाम इन तस्वीरों में भी उभरे हैं। मसलन, अपने समय के भारतीय और पश्चिमी चिंतकों के बीच उनके क्या संबंध रहे, उनके आंदोलन की जमीन क्या रही, विश्व बौद्ध सम्मेलन में उन्होंने कब और किसके साथ भाग लिया, भारत के किस राष्ट्रपति ने उनकी जन्मशताब्दी समारोह मनाई एवं साथ ही पेरियार की पारिवारिक तस्वीरें भी। इनमें कई ऐसी दुर्लभ तस्वीरें हैं, जो पेरियार के जीवन के संपूर्ण घटनाक्रम को सामने लाती हैं। तत्कालीन सामयिक एवं वैश्विक चिंताओं को भी उभारती हैं। यहां स्टालिन से लेकर जयप्रकाश नारायण से संबंधित प्रश्नोतर भी समाहित किए गए हैं। इन सभी को बहुत दिलचस्प ढंग से प्रस्तुत किया गया है। हालांकि इन तस्वीरों को और स्पष्टता के साथ साझा किया जाता तो किताब और अच्छी होती। बावजूद इसके यह पुस्तक ढेर सारे सवालों के बारे में बताती है और जीवन-जगत से जुड़े सवालों पर पाठकों में स्पष्ट नजरिया पैदा करती है।
पुस्तक का संपादन के. वीरामणि और अनुवाद ओमप्रकाश कश्यप ने किया है, जो पेरियार की विचारधारा के सबसे जीवंत, सम्मानित और प्रतिबद्ध आवाज हैं। हिंदी में पेरियार की लिखी उनकी वृहत जीवनी हो या उनके विचारों की अन्य पुस्तक, हर कोण से ओमप्रकाश कश्यप पेरियार को हिंदी में लेकर आए हैं। कुल 410 पृष्ठों की इस पुस्तक का प्रकाशन सम्यक प्रकाशन, दिल्ली ने किया है। पुस्तक में संपादकीय, अनुवादकीय अभिमत के साथ ही पेरियार का सम्यक जीवन परिचय और उनका भाषण ‘भविष्य की दुनिया’ पुस्तक के अंत में परिशिष्ट में दिए गए हैं, जो पेरियार की जीवनयात्रा को समझने की महत्वपूर्ण कुंजी हैं। हिंदी में भी अपने-अपने क्षेत्र में कार्यरत ऐसे महत्वपूर्ण शख्सियतों पर काम होना चाहिए जो अलक्षित रहे। बहुजन बौद्धिकता की तीव्र होती शृंखला में इस तरह का काम हिंदी बौद्धिक जगत में भी दिखलाई पड़ रहे हैं। ओमप्रकाश कश्यप का काम इस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनके इन अनुवाद कार्यों द्वारा निश्चय ही उत्तर और दक्षिण की भाषाई सरहदों के बीच जो खाई थी वह भरेगी, उनमें आपसी विनिमय से अखिल भारतीय स्तर पर बहुजन समाज के मुद्दे चर्चाओं में आएंगे। इसी पुस्तक में ओमप्रकाश कश्यप ने इस संदर्भ में एक बहुत ही सारगर्भित संपादकीय लिखा है, जिसमें उन्होंने पेरियार के सामाजिक, राजनीतिक सुधारों को रेखांकित किया है। उन्होंने लिखा है– “धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को लेकर गांधी की अपेक्षा पेरियार ज्यादा सही थे, तमिलनाडु में सत्ता की बागडोर चाहे जिस दल के हाथ में रहे राजनीति उसे पेरियार के सिद्धांतों के अनुसार ही करनी पड़ती है। भारतीय समाज सही मायने में आधुनिकीकरण चाहता है तो पेरियार उनके लिए निर्विकल्प हैं।”
यह किताब प्रथम दृष्टया एक क्विज प्रश्नोतरी की तरह होने का आभास देती है, लेकिन पुस्तक में विभक्त विभिन्न अध्यायों में जिस तरह के प्रश्न फ्रेम किये गए हैं, उससे उनकी तैयारी और उनकी सोच के वृहतर आयाम का परिचय मिलता है। यह किताब पेरियार के विचारों को माननेवालों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण और वस्तुनिष्ठ स्वरूप में उनके जीवन दर्शन के वृहतर आयाम के कई अनछुए सवालों को दर्ज करती है। साथ ही, अकादमिक दुनिया के लिए भी एक सवाल खड़ा करती है कि अपने नायकों को जीवंत करने का यह भी एक हुनर है, जो किसी भी दृष्टिटकोण से कमतर नहीं।
समीक्षित पुस्तक : पेरियार की जीवनयात्रा (एक हजार प्रश्नोत्तर)
प्रकाशक : सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली
संपादक : के. वीरामणि
हिंदी अनुवाद : ओमप्रकाश कश्यप
मूल्य : 275 रुपए
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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