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जब नौजवान जगदेव प्रसाद ने जमींदार के हाथी को खदेड़ दिया

अंग्रेज किसानाें को तीनकठिया प्रथा के तहत एक बीघे यानी बीस कट्ठे में तीन कट्ठे में नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे। लेकिन पंडुई के जमींदार किसानों को प्रति बीघा पांच कट्ठे में अपने हाथियों के वास्ते फसल उगाने को विवश करते थे। जगदेव प्रसाद ने इसका तब विरोध किया जब वे युवा थे। पढ़ें, फारवर्ड प्रेस की नई किताब ‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ में संकलित बिहार विधानसभा के पूर्व सदस्य एन.के. नंदा के आलेख का एक अंश

जगदेव प्रसाद (2 फरवरी, 1922 – 6 सितंबर, 1974)

यह उन दिनों की यह बात है जब देश आजाद नहीं था। जमींदारी व्यवस्था थी। अधिकतर जमींदार ऊंची जातियों के लोग हुआ करते थे। ऐसे ही जगदेव प्रसाद के गांव कुरहारी में भी था। जमींदार उनके बगल के गांव पंडुई के रहनेवाले थे और रामाश्रय प्रसाद सिंह के पूर्वज थे। (बाद के दिनों में रामाश्रय प्रसाद सिंह जगदेव प्रसाद के राजनीतिक विरोधी माने जाते थे और जब 5 सितंबर, 1974 को उनकी शहादत हुई तब रामाश्रय प्रसाद सिंह के ऊपर उनकी हत्या का आरोप लगाया गया। हालांकि प्रारंभ में वे कांग्रेसी थे, लेकिन बाद में वह नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड से जुड़ गए थे और 2005-2010 के दौरान बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे।)

पंडुई के जमींदार की पंचकठिया प्रथा अंग्रेजों द्वारा चंपारण के इलाके में चलाए गए तीनकठिया प्रथा के जैसी ही थी। अंतर यह था कि अंग्रेज किसानाें को तीनकठिया प्रथा के तहत एक बीघे यानी बीस कट्ठे में तीन कट्ठे में नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे। लेकिन पंडुई के जमींदार किसानों को प्रति बीघा पांच कट्ठे में अपने हाथियों के वास्ते फसल उगाने को विवश करते थे। होता यह था कि किसान खेत जोतता, बीज लगाता, सिंचाई करता, निकौनी करता और जब फसल पककर तैयार हो जाती तब जमींदार के कारिंदे पांच कट्ठे की फसल काटकर जबरदस्ती ले जाते थे। इसे ‘हाथियों की चराई’ (हाथियों का चरागाह) भी कहा जाता था। वैसे जमींदारों के हाथी चरते कम थे, फसल की बर्बादी अधिक करते थे।

लेकिन जगदेव प्रसाद इस प्रथा के खिलाफ खड़े हुए। उन्हें यह कतई मंजूर नहीं था कि किसान श्रम करें और जमींदार उनकी फसल लूट लें। उन्होंने हमउम्र किशोरों को गोलबंद किया। फिर जब जमींदार का महावत हाथी लेकर फसल चराने के लिए उनके गांव में आया, तो उनके नेतृत्व में किशोरों ने हाथी को मार-पीटकर खदेड़ दिया और महावत को चेतावनी दी कि अगर फिर कभी इस गांव में आए तो तुमको भी पीटेंगे। जमींदार तब परिस्थिति को भांप गया और पीछे हट गया। ज़मींदारों के ख़िलाफ़ संघर्ष में जगदेव प्रसाद की यह पहली जीत थी। उस वक्त वे हाई स्कूल के छात्र थे।

जगदेव प्रसाद ने 1946 में प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक ग़रीब किसान परिवार के किशोर के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इस ख़ुशी में पिता ने एक सहभोज आयोजित करने का फैसला लिया। लेकिन बीमारी के कारण उनका आकस्मिक निधन हो गया। पिता की मौत से उनके परिवार पर भारी विपत्ति आ पड़ी। वे मर्माहत हो उठे और देवी-देवताओं के प्रति उनके मन में तनिक भी आस्था नहीं रही। उन्होंने अपने घर से देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों को अपने पिता की चिता पर रखकर जला दिया। उन्होंने अपने पिता की मौत पर ब्रह्म भोज का आयोजन नहीं, बल्कि उनकी स्मृति में शोक सभा और सहभोज का आयोजन किया। यह उस समय उस पूरे इलाके के लिए बहुत बड़ी बात थी। इसके लिए उन्हें अपने परिजनों का विरोध भी झेलना पड़ा। लेकिन वे दृढ़प्रतिज्ञ बने रहे।

अमर शहीद जगदेव प्रसाद व ‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ का आवरण पृष्ठ

पिता के निधन के बाद ग़रीबी से जूझते हुए 1952 में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से एम.ए. (अर्थशास्त्र) की शिक्षा पूरी की। उसी वर्ष वे डिप्टी कलक्टर की परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए। लेकिन पिछड़ी जाति का होने के कारण साक्षात्कार में उन्हें अपमानित किया गया। फिर उन्होंने सचिवालय में नौकरी की। लेकिन ईमानदार और स्वाभिमानी जगदेव प्रसाद उच्च अधिकारियों के भ्रष्टाचार में सहभागी नहीं बने और नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया।

नौकरी से इस्तीफा देने के बाद एक बार वे परैया (गया जिला) गए। वहीं पर वे कुछ दिन रुक गए और इलाके का भ्रमण किया। उन्होंने देखा कि इलाके में दलितों की बड़ी आबादी है और गरीबी के कारण उनके बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। पिछड़ी जाति के गरीबों के बच्चे भी बाहर जाकर पढ़ने में सक्षम नहीं थे। उस इलाके में एक भी हाई स्कूल नहीं था। उन्होंने निश्चय किया कि इस इलाके में हाई स्कूल की स्थापना करेंगे और शिक्षा की ज्योति जलाएंगे। इलाके के प्रबुद्धजनों और समाजसेवियों के सहयोग से टेकारी महाराज की कचहरी खरीद ली गई और उसी में स्कूल का संचालन शुरू हुआ। उनके प्रस्ताव पर स्कूल का नामकरण मानवतावादी और विश्वशांति के अग्रदूत सम्राट अशोक के नाम पर अशोक उच्च विद्यालय, परैया किया गया। जगदेव बाबू को स्कूल संचालन और प्रधानाध्यापक की जिम्मेवारी दी गई। उन्होंने गांव-गांव का दौरा किया और शिक्षा के प्रति लोगों को जागृत किया।

(फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित किताब ‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ से उद्धृत। पाठक जल्द ही इस किताब को अमेजन के जरिए घर बैठे खरीद सकेंगे।)


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लेखक के बारे में

एनके नन्दा

बिहार के प्रमुख समाजकर्मियों में गिने जाने वाले एनके नन्दा सीपीआई (एमएल) से बिहार विधानसभा के सदस्य रहे हैं

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