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आंखन-देखी : 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में दिखे फुले से लेकर दाभोलकर तक के नाम, लेकिन सावरकर का नहीं

लता प्रतिभा मधुकर के मुताबिक, सावरकर के नाम पर मुख्य मंडप का नाम रखने का व्यापक विरोध महाराष्ट्र में किया गया। एक वजह तो यह हो सकती है। दूसरा यह कि इस बार की सम्मेलन की अध्यक्ष तारा भवालकर हैं। वे प्रगतिशील साहित्यकार हैं और जोतीराव फुले व सावित्रीबाई फुले को अपना आदर्श मानती हैं। पढ़ें, यह रपट

दिल्ली का तालकटोरा स्टेडियम 21 फरवरी, 2025 को सामान्य दिनों की तरह नहीं था। वैसे हमारे लिए भी यह खास दिन था जब हम दोपहर बाद वहां पहुंचे। दिल्ली के लुटियंस जोन के इलाके में अवस्थित यह स्टेडियम राजनीतिक और सामाजिक आयोजनों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। लेकिन हम यह नहीं जानते थे कि इसका एक खास ऐतिहासिक महत्व है और वह महत्व यह कि अरावली पहाड़ के रायसीना हिल्स जिस जगह पर आज तालकटोरा स्टेडियम है, 1737 में इसी जगह पर बाजीराव पेशवा ने मुगलों को हराया था। यह जानकारी हमें बीते 19 फरवरी, 2025 को अंग्रेजी दैनिक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा प्रकाशित एक खबर से मिली, जिसका शीर्षक था– ‘फ्रॉम नेहरू टू मोदी, अ मराठी लिटरेचर कांफ्रेंस मेक्स इट्स वे बैक टू देल्ही आफ्टर 71 इयर्स’

इस खबर के मुताबिक इससे पहले दिल्ली में 1954 में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का आयोजन हुआ था, जिसके उद्घाटनकर्ता तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे। इस तरह 71 वर्षों के बाद दिल्ली की सरजमीं पर यह तीन दिवसीय 98वां अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन हो रहा है। इसकी शुरुआत 1878 में, यानी 1873 में जोतीराव फुले द्वारा सत्यशोधक समाज के गठन व उनकी प्रसिद्ध किताब ‘गुलामगीरी’ के प्रकाशन के चार साल बाद हुई। तब इसके आयोजकों में सबसे मुख्य थे जस्टिस गोविंद महादेव रानाडे, जो कि ब्राह्मण जाति के थे, लेकिन जोतीराव फुले के मित्रों में से एक थे।

‘इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा प्रकाशित खबर के एक हिस्से ने हमें इस सम्मेलन में जाने के लिए प्रेरित किया। खबर के मुताबिक, इस बार के आयोजन में मुख्य मंडप का नामकरण आरएसएस के विचारक रहे भूतपूर्व प्रमुख सावरकर के नाम पर किया गया है। यह तब जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद गुट) के प्रमुख शरद पवार की भूमिका अहम है। सनद रहे कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद यह पहला मौका है जब शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस आदि के साथ मंच साझा किया।

मुख्य परिसर में किताबों की प्रदर्शनी के बाहर एक एलईडी स्क्रीन पर दिखाई जा रहीं संविधान सभा से जुड़ी तस्वीरें

खैर, जब हम पहुंचे तब हमें जानकारी मिली कि इस 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन विज्ञान भवन में चल रहा है। वहां के एक सभागार, जिसका नामकरण ‘यशवंतराव चव्हाण सभामंडप और लोकशाहीर अण्णा भाऊ साठे व्यासपीठ’ किया गया है, में कुछ लोग बैठे मिले। सभागार में एक बड़े से एलईडी स्क्रीन पर विज्ञान भवन में चल रहे उद्घाटन कार्यक्रम का लाइव वीडियो दिख रहा था। असल में हमारी नजरें उस मंडप को खोज रही थीं, जिसके बारे में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की उपरोक्त खबर में बताया गया था कि उसका नाम सावरकर के नाम पर रखा गया है।

हालांकि आयोजन स्थल पर किसी भी मौजूदा राजनेता की कोई तस्वीर किसी भी होर्डिंग में नजर नहीं आने पर हमारे मन में यह सवाल भी उठा कि क्या वाकई यह गैर-राजनीतिक (विशुद्ध रूप से साहित्यिक) आयोजन है? वजह यह कि अभी हाल में दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित दस दिवसीय विश्व पुस्तक मेले के पूरे परिसर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक नेताओं की न केवल तस्वीरें नजर आईं थीं, बल्कि बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीनों के माध्यम से उनके वीडियो आदि भी दिखाए जा रहे थे। हालांकि तालकटोरा स्टेडियम परिसर में प्रवेश से पहले चौराहे पर हमें एक-दो होर्डिंग अवश्य दिखे, जिनमें कुछ राजनेता नजर आए थे। अलबत्ता कांफ्रेंस के मुख्य आयोजन स्थल, जहां किताबों की प्रदर्शनी है, के दाईं ओर एक बड़े एलईडी स्क्रीन पर संविधान सभा से जुड़ी तस्वीरें, जिनमें डॉ. आंबेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू आदि की तस्वीरें, बार-बार दिखलाई जा रही रही थीं।

महात्मा जोतीराव फुले सभामंडप व शाहीर अमर शेख व्यासपीठ

खैर, हम इस 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के लिए बनाए गए परिसर में जैसे ही घुसे, हमारी बाईं ओर महाराष्ट्र सरकार द्वारा तैयार झांकी रखी मिली, जिसे बीते 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड के मौके  पर निकाला गया था। उस झांकी में एक ओर छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा मराठी भाषा की समृद्धि के लिए किए गए विशेष पहल को दिखाया गया था तो बीच में मध्यकाल के संत कवि ज्ञानेश्वर की प्रतिमा के नीचे लिखा था– “माझा मराठाचि बोलु कौतुके परि अमृतातेही पेजा जिंके ऐसी अक्षरे रसिके मेळवीन”। और सबसे दायीं ओर एक हाथी की पीठ पर खूबसूरत रंगों के बीच लिखा था– “अभिजात मराठी अभिमान मराठी”। यह दृश्य हमें यह संदेश दे रहा था मानो यह आयोजन न तो पूरी तरह राजनीतिक है और न ही पूरी तरह साहित्यिक।

हमारे कदम उस ओर बढ़ गए जहां किताबों की प्रदर्शनी लगी थी। हमें लगा कि वहां के द्वार पर सावरकर का नाम होगा। लेकिन वहां हमें लिखा मिला– “तर्क तीर्थ लक्ष्मण शास्त्री जोशी ग्रंथ नगरी।” लक्ष्मण शास्त्री जोशी महाराष्ट्र के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान रहे, जिन्हें 1992 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म विभूषण’ सम्मान दिया गया था। इस ग्रंथ नगरी के अंदर किताबों की प्रदर्शनी में अनेक प्रकाशक मौजूद मिले, जिन्होंने अपने-अपने स्टॉलों पर अपनी किताबों को सजा रखा था। मसलन, निर्मल प्रकाशन, नांदेड़ ने अपने स्टॉल पर एक तरफ सावरकर की किताब को लगा रखा था तो उसके बगल में संत बाबा गाडगे और डॉ. आंबेडकर की किताबें भी थीं। इसी प्रकाशक के स्टॉल पर हमें एक किताब ‘शरद पवार : व्यक्तित्व, नेतृत्व आणि कर्तृत्व’ (डॉ. जनार्दन वाघमारे द्वारा लिखित) भी देखने को मिली। ऐसे ही एक प्रकाशक दिलीप्रज प्रकाशन के स्टॉल पर ‘नेहरूंच्या 115 घोडचुका’ (नेहरू की 115 गंभीर चूकें) के ठीक बगल में वि.ग. कानिटकर द्वारा माओ पर आधारित एक किताब ‘माओ : क्रांतीचे चित्र आणि चरित्र’ रखी गई थी। और इसके ठीक बगल में कानिटकर की ही एक किताब रखी थी, जो कि अब्राहम लिंकन के ऊपर लिखी गई है। इन तीन किताबों के ठीक बाएं ‘सनातन’ धर्म पर केंद्रित किताब भी पाठकों व खरीदारों का इंतजार करती दिखी।

नेहरू, माओ और लिंकन पर केंद्रित किताबें

हम इस बहुआयामी पुस्तक प्रदर्शनी, जिसमें जोतीराव फुले, आंबेडकर, शाहूजी महाराज, सावित्रीबाई फुले से लेकर सावरकर, तिलक और हेडगेवार आदि सभी की किताबें मौजूद थीं, देखकर कुछ सोच ही रहे थे कि अचानक हमारी नजर इस्लामिक मराठी पब्लिकेशंस ट्रस्ट के स्टॉल पर पड़ी। वहां मजहबी किताब ‘कुरान’ का मराठी अनुवाद तो बिक्री के लिए उपलब्ध था ही, कुछ अन्य किताबें भी देखने को मिलीं। इनमें कुछ के नाम हैं– ‘महात्मा फुले आणि इस्लाम’ (झिया अहमद), ‘महात्मा जोतीराव फुले भारतीय धर्मक्रांतीचे प्रणेते’ और ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर आणि इस्लाम’ (आर.एस. विद्यार्थी)। प्रदर्शनी स्थल से निकलने से पहले हमने अपने लिए कुछ किताबें खरीदी।

बाहर निकलते समय हमारी नजरें उस मंडप को खोज रही थीं, जिसके बारे में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने खबर दी थी कि, उसका नामकरण सावरकर के नाम पर किया गया है। इस क्रम में हमारे सामने एक सभागार जोतीराव फुले के नाम पर दिखा। इसके द्वार के ऊपर होर्डिंग में लिखा था– “महात्मा जोतीराव फुले सभामंडप व शाहीर अमर शेख व्यासपीठ”। 

नरेंद्र दाभोलकर के नाम पर बनाया गया प्रवेश द्वार

हमें लगा कि हमसे कुछ छूट रहा है तो अण्णा भाऊ साठे को समर्पित एक सभागार के बाहर लकड़ी से बने बड़े से बोर्ड पर अण्णा भाऊ साठे की तस्वीरें सजा रहे लोगों से पूछा कि क्या वे सावरकर के नाम पर बनाए गए मंडप के बारे में कुछ जानते हैं? जवाब मिला– “नहीं, हमने तो अभी तक नहीं देखा है।” उनमें से एक ने इंडोर स्टेडियम की तरफ इशारा किया, जो कि मुख्य कार्यक्रम स्थल है। वहां कई प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। इनमें से एक अहिल्याबाई होलकर के नाम पर दिखा। लेकिन सावरकर के नाम का कोई द्वार नजर नहीं आया। अलबत्ता हमें नरेंद्र दाभोलकर के नाम पर एक प्रवेश द्वार जरूर दिखा, जो वीआईपी के लिए बनाए गए मुख्य द्वार के ठीक बगल में है। बताते चलें कि पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ आजीवन लिखने और आवाज बुलंद करने वाले दाभोलकर की हत्या 20 अगस्त, 2013 को पुणे में हिंदुत्ववादियों ने कर दी थी।

इस्लामिक मराठी पब्लिकेशन ट्रस्ट के स्टॉल पर उपलब्ध किताबें

हम वापस लौट रहे थे और हमारी जेहन में यह सवाल था कि क्या यह शरद पवार की राजनीतिक पकड़ का परिणाम है कि आरएसएस – जिसके नुमाइंदे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस भी – की गूंज इस 98वें अखिल भारतीय सम्मेलन में नहीं सुनाई दे रही है?

हमारी जेहन में यह विचार भी आया कि सावरकर को आरएसएस भले ही राष्ट्रीय स्तर का व्यक्तित्व मानता हो, लेकिन फुले और आंबेडकर की जन्म व कर्मस्थली महाराष्ट्र के लोगों के लिए वे इतने महत्वपूर्ण नहीं रहे। हमने इस बारे में महाराष्ट्र की प्रसिद्ध बहुजन सामाजिक कार्यकर्ता लता प्रतिभा मधुकर से फोन पर पूछा। उन्होंने कहा कि “सावरकर के नाम पर मुख्य मंडप का नाम रखने का व्यापक विरोध महाराष्ट्र में किया गया। एक वजह तो यह हो सकती है। दूसरा यह कि इस बार की सम्मेलन की अध्यक्ष तारा भवालकर हैं। अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की वह पहली महिला अध्यक्ष हैं। वे प्रगतिशील साहित्यकार हैं और जोतीराव फुले व सावित्रीबाई फुले को अपना आदर्श मानती हैं। उन्होंने कल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपने वक्तव्य में यह कहा कि इस मराठी साहित्य सम्मेलन में राजनेता अपने जूते परिसर के बाहर उतारकर आएं।”

(संपादन : राजन)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार/अनिल वर्गीज

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं। अनिल वर्गीज फारवर्ड प्रेस के प्रधान संपादक हैं

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