इस वर्ष डा. भीमराव आम्बेडकर की जयंती कई कारणों से अलग रही। जहां एक तरफ देश के विभिन्न हिस्सों में प्रतिक्रियावादी ताकतों द्वारा डा अम्बेडकर की मूर्तियां तोडी गईं, उन्हें जूतों की माला पहनाई गयी, वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी में 14 अप्रैल को पार्लियामेंट स्ट्रीट पर हर बरस लगने वाले अम्बेडकर मेले में लाखों लोग पहुंचे। इस मेले को भाजपा ने हाईजैक करने में कोई कसर नहीं छोडी। यहाँ भाजपा-आरएसएस का अम्बेडकर व दलित प्रेम उमड़-उमड़ कर हिलोरें मार रहा था- ठीक गांधी के हरिजन प्रेम की तरह।
पार्लियामेंट स्ट्रीट के बगल में मावलंकर हाल में 3 बजे से सुलभ इंटरनेशनल के सौजन्य से आम्बेडकर जयंती के मौके पर हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य बैनर पर एक तरफ गांधी व दूसरी ओर डा. अम्बेडकर की फोटो लगी थी। कार्यक्रम की शोभा बढाने व तालियां बजाने वाले लगभग 15 दर्जन लोग सुलभ के ही कारिन्दें थे। कुर्सियां भरने के लिए कुछ स्कूली बच्चों को उनकी अध्यापिकाओं के साथ बुलाया गया था। कार्यक्रम शुरू होने से पहले सबके लिए खीर के साथ लंच की पूरी व्यवस्था थी। सात घन्टे चले इस कवि सम्मेलन में लगभग 15-16 कवि यूपी व बिहार से आमंत्रित थे। यह बात अलग है कि तमाम कवियों का इस महत्वपूर्ण दिवस से कोई सरोकार न तो इनकी कविताओं में दिखा और ना ही इनकी बातों में नजऱ आयांण् मंच पर सभी कवियों को बुलाकर बनारस के एक पंडित द्वारा संस्कृत में मंत्रोचारण करते हुए सामूहिक रुप से जनेऊ धारण कराया गया, जिनमें तीन महिला कवयित्रियाँ भी शामिल थीं।
महिलाओं को भी जनेउ धारण कराकर सुलभ के मालिक बिन्देश्वरी पाठक ने उद्घोष किया कि देखो,आज महिला, पुरुष व दलित सब समान ह। हालांकि एक दलित महिला कवयित्रि डा कौषल पंवारने न केवल जनेउ धारण करने से मना किया बल्कि मंच से अपना विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि जब असल मायने में समाज में छूत-अछूत का भेद खत्म हो जाएगा और सब समान हो जाएगें तब मैं भी जनेउ धारण कर सकती हूँ पर आज नहीं। उन्होंने जानना चाहा कि हवन या यज्ञ में बैठने, गंगा में स्नान करने, मन्दिर में पूजा करने तथा जनेउ धारण करने मात्र से कोई दलित कैसे सामाजिक तौर पर बराबर हो सकता है? कार्यक्रम में अधिकतर कवि गैर-दलित थे और लगभग सभी श्रोता दलित।
फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित