आजमगढ़ (उत्तरप्रदेश): स्थानीय शिब्ली नेशनल पीजी कालेज परिसर में स्थित क्रांतिवीर रामप्रसाद बिस्मिल सभागार सबको अपनी तरफ खींच रहा था, जहाँ देश-दुनिया के लोग जुटे थे। मौका था काकोरी के क्रांतिवीरों की जेल डायरी, क्रांतिकारियों के दुर्लभ तस्वीरों और दस्तावेजों की प्रदर्शनी का, जिसका उद्घाटन शहीद-ए-वतन अशफाकउल्ला खां के पौत्र अशफाक उल्ला खान ने किया। इसी शाम, बगल के दूसरे सभागार, जिसका नाम 1857 के महान क्रांतिकारी रज्ज़ब अली के नाम पर रखा गया है, ‘भारतीय क्रांतिकारी आन्दोलन की विरासत और हमारा प्रतिरोध’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गयी। इस सत्र को प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. लालबहादुर वर्मा, नेपाल के वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र गुरगैन और नेपाल की विद्रोही कवियत्री तारा पराजुली ने संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अशफाक उल्ला खान ने की।
छ: दिनों (25-31 मई) तक जिले के अलग-अलग जगहों पर कई विचार गोष्ठियां आयोजित की गईं। दूसरे दिन शाम को शिब्ली कालेज के परिसर में आसमान के नीचे बनाये गए ‘क्रांतिवीर पीर अली सभागार’ में ‘सिनेमा की भाषा और भारतीय-नेपाली दस्तावेजी फिल्मों में उसका इस्तेमाल’ विषयक सत्र आयोजित किया गया।
तीसरे दिन यहाँ से तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित मालटारी के श्री मथुराराय महिला महाविद्यालय में ‘किसानो की त्रासदी – सवाल दर सवाल’ विषयक सत्र आयोजित किया गया। चौथे दिन 24 किलोमीटर दूर जीयनपुर सगड़ी के प्राचीन शिव मंदिर के सभागार में ‘बाज़ार, लोकतंत्र और सांप्रदायिकता’ विषयक सत्र आयोजित हुआ। पांचवें दिन यहाँ से 25 किलोमीटर दूर बीबीपुर में ‘जनसंघर्षों की वैचारिक एकजुटता’ पर सत्र रखा गया।
आखिरी दिन, यहाँ से 28 किलोमीटर दूर स्थित महापंडित राहुल सांकृत्यायन बालिका इंटर कालेज कनैला में ‘मौजूदा दौर में कबीर’ सत्र में मुख्य वक्ता आलोचक पीएन सिंह ने कहा कि पाखंड और विवेकहीन आस्थाओ के लिए लडऩे-मरने वालों की तादाद बढ़ रही है। ऐसे में आमजन को विवेकशील बनाना होगा। छह-दिवसीय इस आयोजन में कविता पोस्टर व किताबों के स्टॉल और देर रात तक फिल्मों का प्रदर्शन आकर्षण का केंद्र रहे।
फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित