पिछली रात, यहाँ कनाडा में, हम लोगों ने सीरिया के मुस्लिम शरणार्थियों के लिए, ईसा मसीह के अरब अनुयायियों द्वारा आयोजित क्रिसमस भोज में भाग लिया। मैं वहां ऐसे लोगों से मिली जिन्हें अपना परिवार, अपना घर, अपना देश, अपना व्यवसाय – संक्षेप में वह सब कुछ जिससे वे प्रेम करते थे – छोड़ना पड़ा। उनके मन की व्यथा और व्याकुलता उनके चेहरों पर स्पष्ट झलक रही थी। वे संपूर्ण घृणा के सबसे नए पीड़ित थे।
अगर दुनिया में संपूर्ण घृणा की जगह संपूर्ण प्रेम व्याप्त होता तो उनके चेहरे कैसे दिखते?
इस महीने पूरी दुनिया में ईसा मसीह का जन्मदिन मनाया जायेगा। वे संपूर्ण प्रेम के सबसे बड़े गुरु थे।
जब एक वकील, जो उनके ज्ञान का परीक्षण कर रहा था, ने उनसे पूछा कि यहूदी कानून का सबसे बड़ा धर्मादेश क्या है तो ईसा मसीह ने जवाब दिया, “तू परमेश्वर, अपने प्रभु से, अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था और पैगम्बरों का आधार हैं “ (मत्ती २२: ३७-४०)।
इस धर्मादेश का दुनिया पर, सामाजिक न्याय पर क्या प्रभाव पड़ा? अगर कोई अफ़्रीकी गुलाम, गुलामी प्रथा के उन्मूलन के लिए संघर्ष करता तो इसमें कोई आश्चर्य न होता। परन्तु उसके लिए ब्रिटिश सांसद विलियम विल्बरफ़ोर्स ने मृत्युपर्यंत संघर्ष किया। राष्ट्रपति लिंकन ने अमरीका में गुलाम प्रथा के उन्मूलन के लिए अपने ही देशवासियों के साथ गृहयुद्ध लड़ा। और इसी कारण महात्मा फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगिरी “संयुक्त राज्य के भले लोगों” को समर्पित की। इतिहास बताता है कि अंग्रेज़ क्वेकरों और ईसाई धर्मप्रचारकों ने गुलाम प्रथा को “गैर-ईसाई” बताकर उसकी आलोचना की। गुलाम पहले से ही बाइबिल से परिचित थे अतः इसके पीछे धर्मपरिवर्तन की इच्छा नहीं बल्कि करुणाभाव था।
अगर कोई विधवा स्त्री सती प्रथा के उन्मूलन के लिए संघर्ष करती, तो इसमें कोई आश्चर्य न होता। परन्तु एक अंग्रेज मिशनरी विलियम केरी ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार को ऐसा करने के लिए राजी करने हेतु अथक प्रयास किये और वे तब तक शांत नहीं बैठे जब तक कि सती प्रथा गैर-कानूनी घोषित नहीं कर दी गयी। मैंने स्वयं पश्चिम बंगाल के सेरामपुर की एक लाइब्रेरी में उनके साथियों के हस्तलिखित, जर्द पड़ चुके दस्तावेजों को पढ़कर यह जाना कि यह कानून लागू हो जाने पर वे कितने आल्हादित थे।
इन सभी महिलाओं और पुरुषों में एक बात समान थी। और वह यह कि वे सभी ईसा मसीह की शिक्षाओं से गहरे तक प्रभावित थे।
इस संपूर्ण प्रेम को जातियों में विभाजित एक समाज पर प्रत्यारोपित कर देने के क्या निहितार्थ होगें? जब हम किसी दूसरे मनुष्य को निम्न मानते हैं तो हम उसका तिरस्कार करते हैं, उसके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं – इतना नकारात्मक कि हम जानवरों को तो छू सकते हैं, परन्तु उसे नहीं। यह प्रेम का एकदम उलट है।
क्या होगा यदि कोई ओबीसी, एक दलित के रूप में सोचने लगे; इस तरह कि दलित के अपनी सुरक्षा, स्वास्थ्य, सफलता और प्रसन्नता के सरोकार, उसके स्वयं के सरोकार बन जायें; उसे ऐसा लगने लगे कि वह स्वयं दलित है। और क्या होगा यदि कोई ब्राह्मण, दलित के रूप में सोचे और कोई दलित, ब्राह्मण के रूप में? ईसा मसीह ने हमें यही करना सिखाया।
क्या इससे जाति का अंत न हो जायेगा? आखिर हम अपने साथ अन्याय कैसे कर सकते हैं? हम अपने बारे में कुछ अनुचित कैसे सोच सकते हैं? परन्तु समस्या यह है कि मनुष्य मूलतः स्वार्थी है। कोई अलौकिक शक्ति ही हमें हमारे स्वार्थी स्वभाव और पूर्वाग्रहों से मुक्त कर सकती है, हमें प्रेम करना सिखा सकती है। क्या हम ऐसा कर सकते हैं? हमें ऐसा करने की शक्ति कौन देगा?
विल्बरफ़ोर्स को यह शक्ति कहाँ से मिली थी? ध्यान दें कि उपर्लिखित धर्मादेश का पहला भाग हमें ईश्वर से संपूर्ण प्रेम करने का आदेश देता है। भारत सहित दुनिया के कई देशों के संविधान, उन धर्मादेशों या कानूनों पर आधारित हैं जो ईश्वर ने हमें बाइबिल में दिए हैं। परन्तु ईसा मसीह कहते हैं कि पूरी दैवीय विधि केवल दो चीज़ों पर आधारित है – ईश्वर से प्रेम और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम।
इस गुत्थी का समाधान भी हमें बाइबिल (मत्ती ७: ११-१२) ही देती है :
सो, तुम जब बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्ग का पिता अपने मांगने वालों को अच्छी वस्तुएं क्यों न देगा? इस कारण, जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और पैगम्बरों की शिक्षा यही है।
दुनिया के अधिकांश धर्मों का मूल सिद्धांत है कि “तुम दूसरों के साथ वह नहीं करो, जो तुम नहीं चाहते कि वे तुम्हारे साथ करें”। केवल ईसा मसीह ने इसे एक नए, सकारात्मक तरीके से व्यक्त किया, “दूसरों के साथ वह करो, जो तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें”।
ईसा ने कहा कि अगर हम उससे मांगेंगे तो ईश्वर हमें अच्छी चीज़ें देगा क्योंकि वह एक प्रेम करना वाला पिता है। और हम अपने पिता, जो हमसे प्रेम करता है और जब हम उससे मांगते हैं तो हमें अच्छी चीज़ें देता है, उससे ही हमें दूसरों से प्रेम करने की शक्ति मिलेगी। वह कहता है कि दूसरों से प्रेम करना ही प्रेममय ईश्वर का व्यावहारिक स्वरुप है। बाइबिल (१ यूहन्ना ४: २०) कहती है “यदि कोई कहे, कि मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं; और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा हैः क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उसने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी, जिसे उसने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।”
मित्रों, किसी कानून या सरकारी हुक्म से जाति ख़त्म होने वाली नहीं है। वह तभी ख़त्म होगी जब हमारे मन में क्रांति होगी। वह तभी ख़त्म होगी जब हम उस ईश्वर से संपूर्ण प्रेम करेंगे, जिसने अपनी छवि में हमें गढ़ा है, उसका शर्तविहीन प्रेम पायेंगे और उसकी आत्मा की शक्ति से उस प्रेम को अपने आसपास के लोगों में बाटेंगे। यही क्रिसमस का सन्देश है और यही उसके अर्थ की मूलात्मा है।
इस क्रिसमस पर यदि हम में से हरेक, इस संदेश को अपने ह्रदय और अपने व्यवहार में उतार ले, तो अगले क्रिसमस तक हम जाति-विहीन समाज के अपने लक्ष्य के अधिक करीब होंगे।
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