बहुजन साहित्य, संस्कृति और राजनीति पर ऐसी हिंदी पुस्तकों भारी अभाव रहा है, जो तथ्यपरक भी हों और आम लोगों के लिए पठनीय भी। कुछ अंग्रेजी विद्वानों ने इन विषयों पर महत्वपूर्ण लेखन किया है, लेकिन उनका ज्यादातर काम सिर्फ अकादमिक महत्व का है। ‘फारवर्ड प्रेस बुक्स’ (एफपी बुक्स) योजना के तहत ऐसी हिंदी व अंग्रेजी किताबें प्रकाशित की जा रही हैं, जो न सिर्फ गुणवत्ता के स्तर पर उच्चकोटि की हैं बल्कि जो भारत की अब तक मूक रही आबादी को संघर्ष का औजार भी उपलब्ध करवाती हैं। इसके तहत अब तक 7 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
इस प्रकाशन योजना का बहुभाषी होना इसे एक ऐसा अनूठापन प्रदान करता है। इसके तहत एक ही किताब को हिंदी और अंग्रेजी में एक साथ प्रकाशित किया गया है। हिंदी किताबों के अंग्रेजी अनुवाद पहले भी प्रकाशित होते रहे हैं। लेकिन ये अनुवाद हिंदी साहित्यक कृतियों तक ही सीमित रहे हैं, जिन्हें हिंदी में प्रकाशित होने के कई वर्षों बाद तब प्रकाशित किया जाता है, जब कोई साहित्यक कृति खूब चर्चित हो जाए। हिंदी के वैचारिक लेखन को तो इस कदर दोयम दर्जे का माना जाता है कि चर्चित से चर्चित किताब का अंग्रेजी समेत किसी भी भारतीय भाषा में अनुवाद प्रकाशित नहीं होता। यही कारण है कि स्वयं अंग्रेजी में हिंदी पटटी के संबंध में जो विपुल समाजशास्त्रीय लेखन होता है, वह प्राय: जमीनी यथार्थ कटा होता है। फारवर्ड प्रेस इस कमी को पूरा करने की भी कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि इस योजना के तहत हिंदी में चल रहे समाकालीन विमर्श की वैचारिक किताबों को हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी में भी प्रकाशित किया जा रहा है है। मसलन, प्रेमकुमार मणि की हिंदी किताब “चिंतन के जनसरोकर” का अंग्रेजी अनुवाद “द कॉमन मैन स्पीक्स आउट” शीर्षक से तथा प्रमोद रंजन और आयवन कोस्का द्वारा संपादित किताब “बहुजन साहित्य की प्रस्तावना” का अंग्रेजी अनुवाद “द केस फॉर बहुजन लिटरेचर” शीर्षक से प्रकाशित की गई है।
एफपी बुक्स के प्रयोग सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी की दुनिया को नजदीक लाने तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इनसे गुजरते हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं में तैर रहे समकालीन विमर्शों में समानता के सूत्रों को भी महसूस किया जा सकता है। मसलन, प्रमोद रंजन द्वारा संपादित किताब “महिषासुर : एक जननायक” में संबंधित विषय पर हिंदी, अंग्रेजी , मलयाली, मराठी आदि अनेक भाषाओं के लेखकों के लेख संकलित हैं, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र की लोक संस्कृति में महिषासुर आंदोलन के बीजों को एकत्र किया है। यह किताब हिंदी में “महिषासुर : एक जननायक” तथा अंग्रेजी में “महिषासुर : अ पीपल्स हीरो” शीर्षक से प्रकाशित हुई है।
एफपी बुक्स के तहत हर वर्ष 24 किताबें प्रकाशित करने की योजना है। इनमें से कुछ किताबें उपरोक्त उदाहरणों के अनुरूप हिंदी व अंग्रेजी, दोनों में एक साथ प्रकाशित होंगी तथा कुछ किताबें सिर्फ अंग्रेजी अथवा सिर्फ हिंदी में भी होंगी।
अब तक प्रकाशित किताबों की एक बानगी देखें :
जाति के प्रश्न पर कबीर (हिन्दी)
मध्यकालीन संत कवि कबीर की हिन्दी साहित्य ने काफी दिनों तक उपेक्षा की थी। साहित्य से ज्यादा समाज में स्वीकृत और जीवित रहे कबीर को बाद में साहित्यिक आलोचकों ने उनकी जाति के सन्दर्भ में भ्रामक दावे के साथ साहित्य में जगह दी, यह दावा था उनके ब्राहमण विधवा का बेटा होने का। बाद के दिनों में दलित आलोचकों ने उन्हें दलित बताया। इस किताब में कमलेश वर्मा ने उनकी जाति की विभिन्न दावेदारियों को चुनौती दी है तथा उनकी रचनाओं में जाति संबंधी विचारों की आलोचनात्मक पड़ताल की है। यह किताब हिन्दी आलोचना में जरूरी हस्तक्षेप है।
लेखक : कमलेश वर्मा
मूल्य : पेपर बैक: 165 रूपये, हार्ड बाउंड: 400 रूपये
महिषासुर : एक जननायक (हिन्दी)
वर्चस्वशाली संस्कृति ने बहुजन समाज के इतिहास और संस्कृति को अपने नजरिये से पेश कर या उसे नजरअंदाज उनकी खंडित छवि पेश की है। पिछले कुछ वर्षों से इस छवि को बहुजन जनता और बुद्धिजीवियों ने नकार दिया है। इसी सिलसिले में यह किताब भारत के प्राचीन जननायक “महिषासुर” की खोज करती है, जो इस देश की बहुसंख्य जनता की स्मृतियों, परम्पराओं, त्योहारों, उत्सवों में हमेशा नायक रहे हैं, लेकिन देश की वर्चस्वशाली संस्कृति ने उसे प्रतिनायक की छवि दे दी। इस जननायक की खोज की गूँज भारत की संसद तक पहुँची थी। किताब में प्रेमकुमार मणि, शिबू सोरेन, गेल आमबेट, रांम पुनियानी, ब्रजरंजन मणि, मीसा भारती, राजेन्द्र प्रसाद सिह आदि के आलेख शामिल हैं।
संपादक : प्रमोद रंजन
मूल्य : पेपर बैक: 125 रूपये, हार्ड बाउंड : 300 रूपये
महिषासुर : अ पीपल्स हीरो (अंग्रेजी)
अंग्रेजी में प्रकाशित इस किताब में हिन्दी महिषासुर: एक जननायक (उपरोक्त किताब) में संकलित हिन्दी आलेखों के अंग्रेजी अनुवाद के अलावा अंग्रेजी के मूल लेख भी शामिल हैं।
संपादक : प्रमोद रंजन
मूल्य : पेपर बैक: 150 रूपये, हार्ड बाउंड : 300 रूपये
बहुजन साहित्य की प्रस्तावना (हिन्दी)
दलित साहित्य की परिधि को विस्तार देते हुए बहुजन साहित्य की अवधारणा सामने आई है। इस अवधारणा के प्रस्तावक के रूप में यह किताब अपने तरह की अनूठी किताब है, जो साहित्य के शोधार्थियों के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही साहित्य के दूसरे प्रेमियों के लिए भी, जो साहित्य को नये संदर्भों में समझना चाहते हैं। किताब तीन उपखंडो में विभाजित है: ओबीसी साहित्य विमर्श, आदिवासी साहित्य विमर्श और बहुजन साहित्य विमर्श। लेखकों में, राजेन्द्र यादव, प्रेमकुमार मणि, कँवल भारती, ब्रजरंजन मणि, अभय कुमार दुबे, राजेंद्र प्रसाद सिंह, अश्विनी कुमार पंकज आदि विचारक और लेखक शामिल हैं।
संपादक : प्रमोद रंजन, आयवन कोस्का,
मूल्य : पेपर बैक : 150 रूपये, हार्ड बाउंड: 300 रूपये
द केस फॉर बहुजन लिटरेचर (अंग्रेजी)
इस किताब में बहुजन साहित्य की प्रस्तावना (उपरोक्त किताब) में संकलित आलेखों का अंग्रेजी अनुवाद है।
संपादक : प्रमोद रंजन, आयवन कोस्का,
मूल्य : पेपर बैक: 150 रूपये, हार्ड बाउंड: 300 रूपये
चिंतन के जनसरोकार (हिन्दी)
सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक घटनाक्रमों और बदलावों पर इस किताब के लेखक प्रेमकुमार मणि की पैनी नजर रही है। लेखक के चिंतन समसामयिक विषयों और घटनाक्रमों पर जितना सारगर्भित, मौजू और ट्रेंडसेटिंग रहे हैं, उतना ही साहित्यिक विषयों पर भी। इस किताब में। इस किताब के दो उपखंड है: समाज व राजनीति, साहित्य व संस्कृति। किताब में संकलित उनके लेखों में आर्थिक उदारीकरण और दलित, भ्रष्टाचार की जड़ें हमारी संस्कृति में, संसद में कार्टून, हिन्दू हिटलर का अवसान, साहित्य में जाति विमर्श, बर्ट्रेंड रसेल से संवाद, किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन आदि की विशेष चर्चा रही है। कथा लेखन के लिए श्रीकांत वर्मा पुरस्कार से समानित, प्रेमकुमार मणि की पहचान उत्तर भारत के एक प्रमुख समाज-राजनीतिकर्मी के रूप में भी है। वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे हैं।
लेखक : प्रेमकुमार मणि
मूल्य : पेपर बैक: 150 रूपये, हार्ड बाउंड: 300 रूपये
द कॉमन मैन स्पीक्स आउट (अंग्रेजी)
यह किताब प्रेमकुमार मणि की किताब चिंतन के जनसरोकार (उपरोक्त किताब) में संकलित लेखों का अंग्रेजी अनुवाद है।
लेखक: प्रेमकुमार मणि
मूल्य : पेपर बैक: 100 रूपये, हार्ड बाउंड: 300 रूपये
घर बैठे मँगवायें:
हार्ड कॉपी ऑनलाइन खरीदें :
अमेजन और फ्लिपकार्ट से खरीद पर :
महिषासुर: एक जन नायक : अमेजन फ्लिपकार्ट
महिषासुर: अ पीपल्स हीरो : अमेजन फ्लिपकार्ट
बहुजन साहित्य की प्रस्तावना : अमेजन फ्लिपकार्ट
द केस फॉर बहुजन लिटरेचर : अमेजन फ्लिपकार्ट
चिंतन के जन सरोकार : अमेजन फ्लिपकार्ट
द कामन स्पीक्स आउट : अमेजन फ्लिपकार्ट
जाति के प्रश्न पर कबीर : अमेजन फ्लिपकार्ट
ई-बुक
फारवर्ड प्रेस हरित विश्व अभियान के तहत ई-बुक्स के प्रचलन को बढावा देता है। प्रेस की अधिकांश किताबें प्रिंट की तुलना में कम मूल्य पर ईबुक्स के रूप में उपलब्ध हैं। इन लिंकाें पर क्लिक करके आप उन्हें रियायती मूल्य पर खरीद सकते हैं :
वीपीपी/मनीऑर्डर/ बैंक ट्रांसफर/चेक/डायरेक्ट डिपोजिट
एफपी बुक्स की कितबों का प्रकाशक और वितरक इग्नू रोड, दिल्ली स्थित संस्था “द मार्जिनालाइज्ड” कर रही है। संस्था से सीधे संपर्क कर भी आप ये किताबें वीपीपी से मंगवा सकते हैं या फिर मनीऑर्डर/बैंक ट्रांसफर/चेक अथवा प्रकाशक के खाते में सीधे पैसे जमा कराकर भी आर्डर कर सकते हैं।संपर्क:
ईमेल: themarginalised@gmail.com, मोबाईल: 9968527911, 9650164016
इन दुकानों में भी उपलब्ध हैं किताबें :
प्रगतिशील साहित्य सदन
इंद्रलोक अपार्टमेन्ट, अपोजिट
इलाहाबाद बैंक, अशोक राजपथ, पटना, बिहार, 800006, संपर्क : 9631859823
प्रोग्रेसिव बुक सेंटर
शॉप न -4, श्री विश्वनाथ मंदिर
बीएचयू, वाराणसी, 221005, संपर्क : 9415813151
भीम पुस्तक भण्डार
जमीर कांप्लेक्स, एलआईसी के नजदीक
रायबरेली, उत्तरप्रदेश, 229001, संपर्क: 7565084527
ए आर अकेला
आनंद साहित्य सदन, अलीगढ़ छावनी, संपर्क: 9319294963
आर्या प्रकाशन
कृष्णकांत आर ताकशांडे, नंदोरा, सेवाग्राम, वर्धा, महाराष्ट्र, संपर्क : 9923647713
वसुंधरा
602, गेटवे प्लाज़ा, हीरानंदानी गार्डेन, पवई , 400076, संपर्क : 9757494505
गीता बुक सेंटर
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110068
पीपल्स पब्लिशिंग हाउस
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110068
हेम बुक सेंटर
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110068
बुक कार्ट शॉप
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-110068
सम्यक प्रकाशन
32/3, क्लब रोड, पश्चिमपुरी, मादीपुर स्टेशन के पास, दिल्ली-63, सम्पर्क: 9810249452
हरेराम भगत
ईस्ट बायपास रोड, टेलीफोन एक्सचेंज के पास
कृष्णापुरी, मधेपुरा, बिहार , संपर्क : 9431891827
नारदमुनि लोहार
दर्जौरा, गुरुआ, जिला गया, बिहार-824211, संपर्क: 9931275659
फॉरवर्ड प्रेस सेट
भारत की पहली पूर्णत: द्विभाषी (अंग्रेजी-हिंदी) मासिक पत्रिका फॉरवर्ड प्रेस का प्रकाशन मई, 2009 में शुरू हुआ था। जून, 2016 तक इसका नियमित प्रकाशन हुआ तथा इस दौरान पत्रिका के कुल 82 अंक प्रकाशित हुए। जून, 2016 से फारवर्ड प्रेस का वेब संस्करण लांच किया गया तथा प्रिंट संस्करण का प्रकाशन स्थगित कर दिया गया। इन आठ सालों में प्रिंट संस्करण में दलित-बहुजन साहित्य-संस्कृति -राजनीति और संघर्ष पर अनेकानेक लेख प्रकाशित हुए। भारत में जाति विमर्श के अध्येताओं, तथा शोधार्थियों के लिए यह अत्यंत बहुमूल्य सामग्री है। फारवर्ड प्रेस के अब तक प्रकाशित सभी अंकों का सेट पिछले कुछ समय से ब्रिकी के लिए ‘द मार्जनालाइज्ड प्रकाशन’, इग्नू रोड, दिल्ली के पास उपलब्ध हैं। इन्हें भी आप घर बैठे आर्डर कर मंगवा सकते हैं।
मूल्य : पाठक संस्करण : 3000 रूपये, लायब्रेरी संस्करण 7500 रूपये, डाक खर्च अतिरिक्त
नोट : व्यक्तिगत या बिक्री के लिए किताब या सेट मंगवाने के लिए संपर्क करें। ईमेल : themarginalised@gmail.com, मोबाईल: 9968527911, 9650164016