छत्तीसगढ़ में नसबंदी ऑपरेशन के दौरान तेरह महिलाओं की त्रासद मौत के मामले में इस बात की पुष्टि हो गई है कि महिलाओं को दवा के नाम पर ज़हर दिया गया। हाल ही में आई जाँच रिपोर्टों के मुताबिक इन महिलाओं की मौत जहरीली दवाओं के चलते ही हुई थी। इसके पहले भी राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव ने यह स्वीकार किया था कि दवाओं में जिंक फॉस्फाइड, जिसका इस्तेमाल चूहे मारने में किया जाता है, के अंश थे। इस गंभीर घटना के बाद निशाने पर आये राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने गंभीर लापरवाही बरतने के इल्जाम में भले ही फौरी तौर पर स्वास्थ्य महकमे के कुछ अफसरों को निलंबित कर दिया हो और अस्पताल में नकली दवा सप्लाई करने वाली कंपनी पर कार्यवाही शुरू कर दी हो लेकिन अहम सवाल यह है कि इस जानलेवा लापरवाही के लिए कौन जबाबदेह है? क्या इस घटना के दोषियों को उचित सजा मिलेगी? जैसा कि इस तरह के मामलों में अक्सर होता आया है, राज्य शासन ने घटना की उच्चस्तरीय जांच के लिए एक समिति गठित कर दी है।
लक्ष्य पूरा करना एकमात्र उद्देश्य
यह मामला नवम्बर के पहले पखवाड़े में सामने आया था, जब बिलासपुर जिले के सकरी (पेंडारी) गांव में एक निजी अस्पताल में शासकीय परिवार कल्याण शिविर के दौरान 83 महिलाओं की नसबंदी की गई। शिविर के बाद, दवा देकर इन महिलाओं को घर के लिए रवाना कर दिया गया। लेकिन चैबीस घंटे भी नहीं बीते, कि इन महिलाओं की हालत बिगडऩे लगी। उल्टी और सिरदर्द की शिकायत के बाद उन्हें दोबारा अस्पताल पहुंचाया गया। तेरह महिलाओं की दर्दनाक मौत हो गयी और कई अन्य शहर के अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच झूलती रहीं। ऑपरेशन के बाद जिन महिलाओं की मौत हुई, उनमें से एक बैगा आदिवासी समुदाय से थी। बैगा एक संरक्षित जनजाति है। इस समुदाय की घटती जनसंख्या के मद्देनजऱ सरकार ने इस जनजाति के सदस्यों की नसबंदी पर पाबंदी लगा रखी है। बावजूद इसके लक्ष्य पूरा करने के लिए इन महिलाओं की भी नसबंदी कर दी गई। इससे ज्यादा विडंबना क्या होगी कि जिस बिलासपुर जिले में यह हादसा हुआ, वह राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का गृह जिला है। हादसे का स्थल, स्वास्थ्यमंत्री के पुश्तैनी घर से महज पांच किलोमीटर दूर है।
यह पहली बार नहीं है, जब छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग द्वारा आयोजित शिविरों में कोई हादसा हुआ हो। इससे पहले भी एक मोतियाबिंद शिविर में 83 लोगों की आंख की रोशनी चली गई थी। इसके बाद 1617 महिलाओं के गर्भाशय निकालने का सनसनीखेज कांड हुआ। लेकिन इन हादसों से सरकार ने कोई सीख नहीं ली। सरकार और स्वास्थ्य महकमे की लापरवाही का सिलसिला आज भी बरकरार है। ताज़ा मामले में भी एक के बाद एक कई गंभीर गड़बडिय़ां सामने आ रही हैं। ग्रामीणों का इल्जाम है कि एक डॉक्टर ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ महज छह घंटे में 83 महिलाओं का आपरेशन निपटा दिया जबकि लेप्रोस्कोपी पद्धति से होने वाले आपरेशन में सामान्यत: आठ से दस मिनिट लगते हैं। करीब तीन से चार मिनिट का समय तो महिला को एनेस्थीसिया देकर बेहोश करने में ही लग जाता है। यानी साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस हड़बड़ी में डॉक्टर द्वारा ऑपरेशन निपटाए गए होंगे। पेंडारी गांव के अलावा एक दीगर शिविर में भी महिलाओं के भेड़-बकरियों की तरह ऑपरेशन हुए। वहां एक घंटे के भीतर छब्बीस महिलाओं की नसबंदी कर दी गई यानी दो मिनट में एक नसबंदी।
महिलायें आसान शिकार
जिस नेमीचंद अस्पताल में कैंप लगाया गया था, वह तकरीबन छह महीने से बंद पड़ा था। डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने से पहले न तो थियेटर को और ना ही उपकरणों को स्टरलाइज किया। ऑपरेशन में जंग लगे औजार इस्तेमाल किए गए। कई महिलाओं के टांके एक ही सुई से काटे गए।
राज्य में स्वास्थ्य विभाग हर वर्ष नसबंदी का लक्ष्य निर्धारित करता है। पुरुष आसानी से हाथ नहीं आते इसलिए लक्ष्य पूरा करने के लिए ट्रकों में भर-भर कर महिलाएं कैंपों में लाई जाती हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में साल 2010-11 के दौरान कुल 50 लाख नसबंदियां की गईं, जिनमें 95.6 फीसद महिलाएं थीं। यानी नसबंदी के लिए सॉफ्ट टारगेट महिलाएं ही होती हैं।
जांच की जो प्रारंभिक रिपोर्टें सामने आई हैं, उनके मुताबिक इन महिलाओं की मौत की एक वजह घटिया जेनरिक दवा भी है, जो इन महिलाओं को ऑपरेशन के तुरंत बाद दी गईं थी। दवा लेने के बाद से ही महिलाओं की हालत बिगड़ती चली गई। छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने दामन बचाने के लिए रायपुर स्थित महावर फार्मा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की निर्माण इकाई को तुरंत सील कर दिया।
कई सवाल अब भी बरकरार हैं। मसलन, जब यह दवा कंपनी राज्य में ब्लैक लिस्टेड थी, तो स्वास्थ्य महकमे ने इस कंपनी की घटिया दवाइयां क्यों खरीदीं? घटिया गुणवत्ता वाली दवाओं की आपूर्ति के पीछे, कहीं रिश्वत का कोई बड़ा खेल तो नहीं हुआ? दवा खरीदी जैसे महत्वपूर्ण मामले में स्वास्थ्य मंत्री का सीधा हस्तक्षेप होता है। क्या इस त्रासदी के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं? अपने इस्तीफे की मांग पर स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल बड़े ही बेशर्मी से कह रहे हैं कि ‘घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं, लेकिन इस्तीफा नहीं दूंगा। वहीं राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह की बेतुकी दलील है कि स्वास्थ्य मंत्री, नसबंदी ऑपरेशन नहीं करते हैं। यानी छत्तीसगढ़ की रमन सरकार को नहीं लगता कि इसमें उसकी भी कुछ जवाबदेही बनती है। बिलासपुर का नसबंदी मामला हद दर्जे की लापरवाही और प्रशासनिक असंवेदनशीलता का जीता-जागता नमूना है।
(फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2015 अंक में प्रकाशित)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in