जो लोग पत्थलगड़ी के खिलाफ हिंसा और हंगामा खड़ा कर रहे हैं वे गांव के मुहाने पर लगे इन पत्थरों को ध्यान से देखें। बस्तर के बीजापुर जिले के भैरमगढ़ थाना के गांव सुलंगी में अभी भी लगे हुए हैं, ये पत्थर। यह सब एक मृतक स्तम्भ हैं, जो सदियों से जारी आदिवासी परम्परा का हिस्सा हैं।
इन्ही में से एक पत्थर इसी गांव के निवासी रहे हड़मा राम का है। आप हड़मा को इसलिए नहीं जानते, क्योंकि किसी पत्रकार ने उसकी कहानी नहीं छापी। पत्थर में मृत्यु तिथि आपको नजर आ रही होगी 4 फरवरी 2016। पर हड़मा अपने आप नहीं मरा था, बल्कि निर्ममता से वैसे ही मारा गया था जैसे बस्तर, झारखंड जैसे आदिवासी इलाकों में कथित विकास के नाम पर कार्पोरेट के लिए जमीन हथियाने के लिए, मुठभेड़ के नामपर रोज कोई न कोई मारा जा रहा है।
यह उस दौर का पत्थलगड़ी है जब तत्कालीन कुख्यात आईजी कल्लूरी ने बस्तर में रोज किये जा रहे नरसंहार और लोकतंत्र की हत्या की खबर बाहर आने से रोकने के प्रयास में कई पत्रकारों को जेल में ठूंस रखा था। इसी दौर में जेल से तीन साल की सजा बिना अपराध के काटकर व निर्दोष बरी होकर अपने घर पहुंचा था हड़मा। पर दो दिन बाद ही बस्तर जिले के मारडूम थाना के पुलिस जवानों ने उसे गोलियों से भून डाला।
जब पत्रकारों ने इस निर्मम घटना पर कलम नहीं चलायी, तो इस गांव के आदिवासियों ने पत्थलगड़ी का सहारा लिया। इस पत्थर में हड़मा के निर्ममता से मारे जाने की कहानी पूरी तरह स्पष्ट है। बस्तर के आदिवासियों के परम्परागत गोंडी कला में, यहां बताया गया है कि हड़मा एक किसान था, जो खेत में हल चला रहा था तभी उसे पुलिस के जवानों ने घेर कर बंदूकों से छलनी कर दिया। बड़े मार्मिक ढंग से पत्थर पर उकेरी गई इस कला में बताया गया है कि इस घटना के गवाह बस जंगल और वहां के जीव जंतु हैं।
एक अन्य पत्थलगड़ी पर भी ध्यान दीजिए। यह भी इसी के पड़ोसी गांव की सरहद में लगा है। इस पत्थर में बड़ी मार्मिकता से बताया गया है कि कैसे स्कूल से पढ़कर आ रहे एक बच्चे को घेरकर मारा गया। यहां आपको स्कूल का बस्ता, बच्चे की साइकिल और घटना के चश्मदीद जंगली जानवर, चिड़िया और स्कूल के साथी नजर आ रहा होंगे। वर्ष 2009 में इस गांव में एक 10 साल के बच्चे को छत्तीसगढ़ की पुलिस ने निर्ममता से मारकर बहादुरी दिखायी थी।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :