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धरातल पर प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की सच्चाई

बीते 15 अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में भविष्य की योजनाओं पर कम और पूर्व की योजनाओं का ज्यादा ब्यौरा पेश किया। कृषि सिंचाई योजना को लेकर भी उन्होंने बड़े दावे किये, जबकि भौतिक उपलब्धि उनके दावे पर कई सवाल खड़े कर रही है। शैलेश की रिपोर्ट :

72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से पिछले चार साल की उपलब्धियों को गिनाते हुए नज़र आये। तब ऐसा भी प्रतीत हुआ कि वे किसी जनसभा को संबोधित कर रहे हैं और स्वच्छ भारत मिशन, उज्जवला योजना जैसी उपलब्धियों को एक-एक करके लोगों को गिनवा रहे हैं। इन सभी बातों से एक बात तो साफ़ है कि आगे आने वाले समय में जो योजनाएं चर्चा के केंद्र में रहेंगी उन में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना भी एक है। क्योंकि इसका सीधा संबंध इस देश की बहुसंख्यक आबादी (कृषक समाज) से है, जिसके प्रति इस सरकार के ऊपर उदासीनता एवं निष्क्रियता का आरोप लग चुका है। साथ ही मंदसौर की घटना से आक्रोशित होकर किसान संगठनों ने कृषि व्यवसाय की बदहाली और 2014  के बाद से देश में किसानों की बढ़ती आत्महत्या के लिए इस सरकार को आईना दिखाया है। इसलिए इस योजना के माध्यम से केंद्र सरकार कृषक समाज की सहानुभूति हासिल करना चाहेगी, जिसकी झलक हमें प्रधानमंत्री के 15 अगस्त के भाषण से भी मिली। जो बड़े गर्व से बोले कि सिंचाई योजना तेजी से आगे बढ़ रही है।

प्रधानमंत्री इस नीति के माध्यम से 2022 तक किसान की आय दुगुनी करना चाहते हैं, जिसका अभी तक कोई मजबूत आधार नजर नहीं आ रहा है। साथ ही सिंचाई की आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीक के सहारे आज 21 वीं सदी की जलवायु परिवर्तन और कम होती वार्षिक बरसात के प्रभाव से इस देश के कृषक समाज को बचाना भी इस योजना का एक लक्ष्य है। इस योजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए एवं सफल बनाने के लिए किसान प्रशिक्षण, प्रदेश में और प्रदेश के बाहर प्रदर्शनी तथा प्रदर्शन यात्रा, किसान गोष्टी, किसान मेला, और किसान पाठशाला जैसे कृषि विस्तार के कार्यक्रम बनाये गये हैं। प्रशासन इन कृषि विस्तार कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए समुचित आर्थिक मदद प्रदान करता है। ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ (पानी की हर बूंद का अधिक से अधिक इस्तेमाल) जैसे नारों के साथ जब प्रधानमंत्री ने इस योजना की शुरुआत की तो ऐसा लगा कि इसके माध्यम से कृषक समाज की सामाजिक आर्थिक स्थिति में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आने वाला है। लेकिन जब पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कासगंज जनपद में इस योजना का अवलोकन एवं मूल्यांकन करने का मौका मिला और जमीन पर इस योजना की जो सच्चाई दिखी वो कृषक समाज से प्रत्यक्ष संबंध रखने वाले व्यक्ति को निराश, हताश, और परेशान करने वाली थी। इसके आधार पर यह बात कही जा सकती है कि प्रधानमंत्री ने जिस दूरगामी सोच के साथ इस योजना की शुरुआत की थी वह जमीन पर कोसों दूर तक नहीं दिख रही है।

उत्तर प्रदेश में सिंचाई सुविधाओं के कारण सुखाड़ झेलते किसान

उदाहरण के लिए कासगंज जनपद को वित्तीय वर्ष 2016-17 में कृषि विस्तार के कार्यक्रम को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने के लिए कुल 36 लाख 57 हजार 40 रुपए आवंटित किये गए। इस तरह से जनपद में प्रशिक्षण पर 2 लाख 23 हजार 50 रुपए, प्रदर्शनी यात्रा पर 70 हजार रुपए, किसान गोष्ठी पर 1 लाख पांच हजार रुपए और किसान पाठशाला  पर 2 लाख 3 हजार 763 रुपए खर्च किये गये। ताकि जनपद के किसान खेती और सिंचाई की नई एवं आधुनिक तकनीकी से रूबरू हो सके। विगत वित्तीय वर्ष में शत-प्रतिशत कृषि विस्तार के कार्यक्रम को हासिल करने और कई लाख की राशि खर्च करने के बाद जो जनपद की प्राप्ति-लक्ष्य हासिल हुई, वास्तव में वह ह्रदय विदारक थी।

लाल किले के प्राचीर से भाषण देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

इस राशि का सदुपयोग करके वर्ष 2017 -18 में जनपद को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 293 भौतिक लक्ष्य को प्राप्त करना था। लेकिन कासगंज जिला-प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार,  सहावर ब्लाक में सिर्फ एक पोर्टेबल स्प्रिंकलर लगाया जा सका। लघु सिंचाई विभाग ने इस योजना के तहत एक पुराने और सूखे पड़े तालाब का जीर्णोद्धार किया। इस तरह से वर्ष 2017-18 में मात्र दो भौतिक लक्ष्य हासिल किये गये। जो ऊँट के मुँह में जीरा वाली कहावत को चरितार्थ करता है।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

इसलिए कासगंज जनपद में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की स्थिति को देख कर कुछ ऐसा नहीं लगा कि कृषि सिचाई योजना बहुत तेजी से आगे बढ़ रही हो और न ही इस योजना के माध्यम से कृषक समाज के सामाजिक-आर्थिक स्थिति में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन आने वाले हैं। इस तरह से कासगंज जनपद की सच्चाई और प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले की प्राचीर से बोली गयी बातों के बीच सामंजस्य का आभाव दिखता है।

बहरहाल, नीतियाँ बनाना और नीतियों को लागू करना दो अलग-अलग तथ्य हैं। भारत जैसे लोक-कल्याणकारी राज्य में प्रत्येक चुनी हुई सरकार देश के नागरिकों के हितों को ध्यान में रख कर नीतियाँ बनाती है। इस सन्दर्भ में वर्तमान सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से भिन्न नहीं है। इसलिए नीति निर्माण को लेकर इतना इतराने की जरूरत नहीं है। वर्तमान सरकार को अपने पूर्ववर्ती सरकारों से भिन्न या अलग बनने के लिए नीतियों को लागू करने पर ज्यादा बल देना होगा। साथ ही लागू करने वाली संस्थाओं एवं उन संस्थाओं से सम्बन्ध रखने वाले लोगों के आचार, विचार, और व्यवहार को बदलना होगा। ताकि इस कृषि सिंचाई योजना के अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर सकें।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

शैलेश

दिल्ली विश्वविद्यालय से ‘किसान यूनियनों का किसानों की जिंदगी पर प्रभाव’ विषय पर एमफिल करने के बाद शैलेश ‘उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के विशेष संदर्भ में जल संकट और विस्थापन के बीच संबंध’ विषय पर पीएचडी कर रहे हैं। देश की सम-सामयिक घटनाओं खासकर कृषि और नागरिक अधिकारों आदि के सवाल पर वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन करते हैं

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