महिषासुर और रावण को अपना आदर्श और पूर्वज मानने वाले आदिवासी, पिछड़े और दलित पिछले कुछ सालों से दुर्गा पूजा के मौके पर दुर्गा प्रतिमा के साथ महिषासुर वध दर्शाने और विजयादशमी पर रावण दहन के आयोजन की खुलेआम खिलाफत कर रहे हैं। इनमें उनकी वह ललकार भी साफ दिखाई देती है कि अगर ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने बहुजनों के मूल्यों, मान्यताओं, संस्कृति, पुरखों व आदर्शों का और अपमान किया तो वह असहनीय होगा। अब इस मुहिम में भीम आर्मी भी शामिल हो गयी है। भीम आर्मी की महाराष्ट्र इकाई ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को ज्ञापन सौंपा है। साथ ही देश के अन्य कई हिस्सों में बहुजन संगठनों ने अपना विरोध जताया है।
अपने ऐतिहासिक नायकों के अपमान को खुद का अपमान मान रहे बहुजन इसके लिए व्यापक स्तर पर संगठित हो रहे हैं। मसलन भीम आर्मी ने महाराष्ट्र पुलिस को पत्र लिखकर न सिर्फ दशहरा वाले दिन रावण के पुतला दहन पर रोक लगाने की मांग की है, बल्कि यह भी मांग की है कि अगर रावण दहन होगा तो उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जाए। महाराष्ट्र में कई आदिवासी संगठनों ने भीम आर्मी की इस मांग को अपना समर्थन देते हुए कहा है कि आदिवासी–पिछड़े समुदाय के लोग रावण को आज भी अपना आराध्य मान उनकी पूजा करते हैं। रावण मानवतावादी संस्कृति के प्रतीक थे, जो न्याय और समानता में विश्वास रखते थे। इतिहास में छेड़छाड़ कर हजारों वर्षों से रावण को खलनायक के तौर पर पेश किया जाता रहा है। अगर रावण के पुतला दहन पर रोक नहीं लगाई जाती है तो इससे कानून व्यवस्था के लिए खतरा पैदा होगा।
ऐसा ही कुछ देखने में आया है बिहार के बक्सर जिले में। जाति जनगणना के लिए सरकार पर दबाव बनाने वाले बहुजन संगठन ‘जनहित अभियान‘, ‘दलित अधिकार मंच‘ और ‘भारत मुक्ति मोर्चा‘ ने प्रधानमंत्री मोदी समेत, मुख्यमंत्री बिहार, डीएम बक्सर, एसडीओ बक्सर और एसपी बक्सर को 10 अक्टूबर 2018 को संयुक्त रूप से एक ज्ञापन दिया है कि “इस बार की दुर्गा पूजा, विजयादशमी में हमारे नायकों को सामाजिक रूप से अपमानित न किया जाए, उनकी हत्या और दहन को पूर्णत: बंद किया जाय और इसके लिए शासन–प्रशासन की तरफ से पहलकदमी की जाए। सार्वजनिक रूप से मनुवादियों द्वारा महिषासुर वध, रावण दहन या ताड़का वध जिस तरह से दिखाया जाता है, वह बहुजनों के लिए असहनीय है, कृपया इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, और हमारे आदर्शों का सार्वजनिक अपमान बंद हो।”
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बहुजनों का कहना है कि भारत के मूल निवासियों के नायक रहे महिषासुर का वध, महाराजा रावण का दहन तथा महारानी ताड़का की हत्या हर साल आततायी वर्ग द्वारा सार्वजनिक रूप से चित्रित और नाट्य रूपांतरित की जाती है। यह मूलनिवासी नायकों का सरासर अपमान है। बहुजन नायकों को अब और ज्यादा अपमानित न किए जाने के लिए बीते दिनों बक्सर में कई संगठन एकजुटता के साथ आगे आए और एक बैठक कर तमाम संगठनों ने निर्णय लिया कि उनके नायक महिषासुर, महाराजा रावण तथा ताड़का के वध पर रोक लगाने के लिए जिले से लेकर राज्य और केंद्र सरकार को भी ज्ञापन सौंपा जाएगा।
‘जनहित अभियान‘ के संयोजक और वामसेफ के आनुशांगिक संगठन ‘दलित अधिकार मंच‘ से जुड़े पेरियार संतोष दुर्गा पूजा में महिषासुर वध और रावण दहन को बहुजन विरोधी बताते हुए कहते हैं, “बक्सर में पहली बार मनुवादियों द्वारा हमारे आदर्शों को नीचा दिखाने और उन्हें अपमानित करने वाले कृत्यों का शासन—प्रशासन के सामने विरोध हो रहा है। इस बार हमारे संगठन की योजना महिषासुर शहादत दिवस दशहरा के 5 दिन बाद मनाने की है। अभी हमारा संगठन और अन्य बहुजन संगठन बहुजनों के बीच इस बात को ले जाने का प्रयास कर रहे हैं कि जिन ब्राह्मणों–मनुवादियों द्वारा खुलेआम हमारे आदर्शों की खिल्ली उड़ाई जाती है, उन्हें अपमानित किया जाता है, हम उन्हें समर्थन देना बंद करें। यानी हमारी दुर्गा पूजा या रावण दहन में रत्ती भर भी भूमिका नहीं होनी चाहिए, हो सके तो इसके विरोध में जरूर लोग एकजुट हों। इस बार हमारे ज्ञापन देने के बावजूद अगर दुर्गा पूजा में महिषासुर वध और रावण दहन और ताड़का वध जैसे आयोजन होते हैं तो हम आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। रावण दहन और महिषासुर वध को दर्शाया जाना संवैधानिक तौर पर पूरी तरह गलत है। सवर्णों को अपने देवी–देवताओं का पूजन करना है तो करें, मगर हमारे महापुरुषों को अपमानित करने की जो परंपरा इन्होंने सदियों से डाली हुई है उसे तत्काल बंद करें।”
यादव जाति से ताल्लुक रखने वाले 44 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता पेरियार संतोष आगे कहते हैं, “हमारा संगठन लगातार बहुजनों में चेतना फैलाने का काम कर रहा है और हमारे आदर्शों—नायकों के अपमान की खिलाफत भी उसी की एक कड़ी है। हम सामाजिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम लिए हुए हैं। गांव—गांव तक फैल चुके रावण दहन और महिषासुर वध जैसे आयोजन शहरों की देखादेखी वहां पहुंचे हैं और हमारा समाज तो अज्ञानता के कारण इनमें शरीक हो रहा है। पूजा पंडाल तो पिछड़ों–दलितों–आदिवासियों से उगाहे गए चंदे से ही बनाए जाते हैं। हमारा समाज लिहाजी बहुत ज्यादा है, ब्राह्मणवादियों ने सदियों से जो मानसिक गुलामी उस पर लादी हुई है, उसे टूटने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा, मगर टूटेगा जरूर। उम्मीद बंध रही है कि लोग अपनी सांस्कृतिक मूल्य–मान्यताओं का अपमान अब और ज्यादा नहीं सहेंगे।”
चमार जाति से ताल्लुक रखने वाले ‘जनहित अभियान‘ के बक्सर जिला संयोजक विद्यासागर कहते हैं, “भारतीय संविधान ने हमें किसी भी धर्म, संस्कृति को मानने की स्वतंत्रता प्रदान की है। हम लोग मानते हैं कि महिषासुर, रावण, ताड़का हमारे पुरखे हैं, यानी हम उनके वंशज हैं। मगर संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के बावजूद जब आज हमारे पुरखों का सरेआम अपमान होता है, हमारी मूल्य–मान्यताओं की धज्जियां उड़ाई जाती हैं, तो जब महिषासुर, रावण या ताड़का रहे होंगे उस समय तो हमारे पास संविधान तक नहीं था, क्या गारंटी है कि बहुजनों के साथ तब भेदभाव नहीं होता था। हमारे साथ सदियों से अन्याय होता आया है। झारखंड में जब शिबू सोरेन सत्ता में थे तो उन्होंने कहा था कि रावण वध में मैं हिस्सा नहीं लूंगा क्योंकि हम उनके वंशज हैं। अगड़े अपनी लक्ष्मी, दुर्गा, राम या फिर जिसे मर्जी उसे पूजे, मगर हमारे पुरखों का अपमान करना बंद करें।”
पिछड़ों–बहुजनों द्वारा दुर्गा पूजा या रावण दहन के बारे में भागीदारी करने के सवाल पर विद्यासागर कहते हैं, “हमारा समाज सदियों से दबाया–सताया गया है। साक्षरता का प्रतिशत अभी भी नगण्य है। जब बहुजनों को इतना पीछे रखा गया है तो वो अपने आदर्शों–नायकों के बारे में जानेंगे कैसे। दूसरा ब्राह्मणों ने बहुजनों को जिस तरह से मानसिक गुलाम बनाकर और दबाकर सदियों से रखा हुआ है उसका असर जाते-जाते जाएगा। हम अभी भी मानसिक गुलाम हैं, हमें आजादी पूर्ण रूप से नहीं मिली है। लोग अब जागरुक हो रहे हैं तो अपने पक्ष में आवाज उठा रहे हैं। मनुवादियों के झूठ–पाखंड को पहचान उसका विरोध कर रहे हैं। महिषासुर वध और रावण दहन न किए जाने का आह्वान को भी इसी रूप में लेना चाहिए। संत कबीर और रविदास, फुले—आंबेडकर, बुद्ध ने जो आंदोलन चलाए थे फिर से हमारा समाज उसी तरह आंदोलित होगा और अपने हक की आवाज बुलंद करेगा। ये उन्हीं के आंदोलन का असर है कि हमारे समाज के तमाम साहित्यकार, इतिहासकार उभरकर सामने आए हैं। कहा जाता है आर्यों और अनार्यों के बीच युद्ध हुआ। अनार्यों के नेता शंकर और आर्यों के नेता ब्रह्मा, इंद्र, विष्णु थे। पाखंड न मान सच भी मान लिया जाए तो अनार्यों के नेता शंकर के जितने भी मंदिर हैं वहां आने वाला चढ़ावा या तो देशहित में जाना चाहिए या फिर अनार्यों के भले के लिए प्रयोग होना चाहिए।”
‘सत्य शोधक‘ संगठन के संयोजक शिव प्रसाद सिंह कुशवाहा की राय में, “पिछले 10 सालों से हमारा संगठन बहुजनों के बीच अपने मूल्यों, आदर्शों, गैर बराबरी, सांस्कृतिक चेतना को लेकर काम कर रहा है। अगर रामायण–महाभारत सत्य है तो देखना चाहिए कि इसमें महिषासुर का क्या दोष है। दुर्गा क्या थीं और महिषासुर को किस तरह फांसा गया था यह सबके सामने उजागर है। अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए ब्राह्मणवादियों–आर्यों ने दुर्गा से साजिशन अनार्य राजा महिषासुर का कत्ल करवाया था। कोलकाता से शुरू हुई है दुर्गापूजा और महिषासुर कोलकाता के ही राजा थे। इसी तरह ताड़का बक्सर की रानी थीं, यहां का बहुजन समाज आज भी उन्हें पूजता है। किसान खेतों में बीज डालने से पहले उन्हें पूजते हैं, वे मानते हैं कि ताड़का वध गलत तरीके से किया गया था। बेशक सवर्ण अपना त्यौहार सेलिब्रेट करें मगर हमारी आदर्श रानी रहीं ताड़का, महाराजा रावण और महिषासुर का अपमान करके नहीं।”
कुशवाहा कहते हैं, “मनु को आदर्श मानने वाले सवर्ण आज वृहद स्तर पर दुर्गा पूजा और रावण दहन इसीलिए कर रहे हैं ताकि इनका वर्चस्व बना रहे। मगर हमारी मांग है कि यह अन्याय दर्शाना बंद किया जाए और मानवता कायम रहे। लोगों के बीच से अंधविश्वास की पट्टी हटा इंसान को जाति–पाति के भेद से न पाटा जाए। हमारा संगठन ‘सत्य शोधक‘ इस कोशिश के लिए संघर्षरत है कि संविधान सही मायनों में लागू हो। बहुजनों को देश की आजादी के 7 दशकों से भी अधिक वक्त् बीत जाने के बावजूद अपने अधिकार नहीं मिल पाए हैं। अगर ऐसा हुआ होता तो अभी आरक्षण के विरोध और पक्ष में माहौल कायम नहीं होता।”
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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