केंद्र सरकार ने भले ही एससी-एसटी एक्ट को कथित तौर पर और सुदृढ़ कर दिया है, लेकिन इसका अनुपालन जस का तस है। आज भी इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों में पुलिस उस तत्परता से कार्रवाई नहीं करती है, जिस तत्परता का जिक्र एक्ट में किया गया है। इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश की गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दर्शन शास्त्र विभाग के रिसर्च स्कॉलर दीपक कुमार द्वारा खुदकुशी का किया गया प्रयास है। दीपक दलित वर्ग से संबंध रखते हैं। बीते 20 सितंबर 2018 को उन्होंने जहर खाकर जान देने की कोशिश की थी।
खुदकुशी के प्रयास से पहले दीपक ने सुसाइड नोट लिखा और वीडियो भी बनाया, ताकि वह दुनिया को वह कारण बता सके, जिस कारण उसे खुदकुशी करनी पड़ रही है। दीपक ने अपने सुसाइड लेटर और वीडियो में यूनिवर्सिटी के डीन प्रो. चंद्र प्रकाश श्रीवास्तव व दर्शन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष द्वारिका नाथ श्रीवास्तव का नाम लिया था। दीपक का कहना है कि उसे दलित होने के कारण इस हद तक प्रताड़ित किया गया कि उसके पास खुदकुशी के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
किसी को खुदकुशी के लिए प्रेरित करना संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। दीपक के मामले पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया, लेकिन आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं विश्वविद्यालय प्रशासन भी इस मामले में बिलकुल खामोश है, मानो कोई घटना ही घटित नहीं हुई।
दीपक द्वारा डीन और विभागाध्यक्ष के खिलाफ आरोप लगाए जाने के बाद नियम के अनुसार कुलपति वीके सिंह को जांच करवानी चाहिए थी और आरोप साबित होने पर दोषियों पर कार्रवाई की जानी चाहिए थी। लेकिन, कुलपति ने भी इस मामले काे कोई तवज्जो नहीं दी। सवाल उठता है कि यदि दीपक दलित की जगह ऊंची जाति का होता, तो क्या तब भी कुलपति हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते?
जाहिर तौर पर दीपक और उसके परिजनों में पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन के प्रति तीव्र क्षोभ और नाराजगी है। वे लगातार पुलिस प्रशासन के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके लगातार विरोध के मद्देनजर जांच के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एक जांच कमेटी गठित की गई है।
लेकिन दीपक और उसके पक्ष में उतरे छात्रों ने इस कथित जांच कमेटी की पोल खोल दी है। उन लोगों ने मीडिया के सामने कमेटी की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि जिस टीचर एसोसिएशन के लोग पीड़ित छात्र के खिलाफ और आरोपी प्रोफेसरों के पक्ष में धरने पर बैठे थे, उन्हीं काे अब जांच कमेटी का हिस्सा बना दिया गया है। ऐसे में जांच कमेटी से किस प्रकार से न्याय की उम्मीद बन सकती है।
जबकि जांच कमेटी का हिस्सा प्रो. चंदभूषण का कहना है कि हमारे ही कहने पर पुलिस ने केस में एससी/ एसटी की धारा को जोड़ा है। साथ ही उनका यह भी कहना है कि “अगर पीड़ित पक्ष जांच दल से ही असंतुष्ट है, तो जांच का कोई बहुत मतलब नहीं रह जाता।” बता दें कि प्रोफेसर चंद्रभूषण विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से गठित जांच कमेटी में एक मात्र दलित प्रतिनिधि हैं।
वहीं, इस बारे में जब गोरखपुर के प्रो. गोपाल प्रसाद से संपर्क साधा गया, तो उन्होंने कहा- “पूरी घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस घटना से शिक्षक-छात्र के संबंधों की बड़ी क्षति हुई है।” दीपक द्वारा जांच कमेटी के प्रति अविश्वास जताये जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि “जांच कमेटी में शिक्षकों के अलावा और कोई नहीं है। जांच छात्र की मांग के अनुरूप ही होनी चाहिए। और जांच कमेटी में शिक्षकों के अलावा दूसरे लोग व दलित समुदाय के लोग भी शामिल किए जाएं।”
इस पूरे मामले और जांच कमेटी के बाबत गोरखपुर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एस.सी. शर्मा ने बताया कि “केस की जांच पूरी हो चुकी है। जल्द ही रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंप दी जाएगी।” दीपक के द्वारा जांच कमेटी के प्रति अविश्वास के सवाल पर उन्होंने कहा कि “पीड़ित लड़के ने किससे कही है ये बात?” हालांकि, जब इस बारे में मीडिया में प्रकाशित खबरों के बारे उन्हें याद दिलाया गया, तब उन्होंने कहा कि, “मीडिया में बयान देने से क्या होता है? अगर पीड़ित लड़के को जांच कमेटी से कोई दिक्कत थी, तो उसे वीसी से मिलकर उनसे आग्रह करना चाहिए था। वीसी जांच कमेटी बदलवा देते।”
इस बाबत जब गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर एस.के. दीक्षित ने कहा कि “जब शिक्षकों ने धरना-प्रदर्शन किया था, तब जांच कमेटी नहीं बनी थी। विभागीय होने के नाते हमारा पहला कर्तव्य था कि हम अपने विभाग के शिक्षक के साथ खड़े होते।” जांच कमेटी के प्रति पीड़ित छात्र दीपक के अविश्वास के सवाल पर उन्होंने कहा, “जांच कमेटी में नाम आते ही हमने अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए शिक्षकों के उस विरोध-प्रदर्शन से खुद को अलग कर लिया। आपको ये भी समझना होगा कि जहां न्याय की बात आ जाती है, वहां व्यक्ति अपने आप निरपेक्ष हो जाता है।” प्रॉक्टर दीक्षित आगे कहते हैं कि “चूंकि विश्वविद्यालय ऑटोनॉमस बॉडी है, तो यहां कोई बाहर से तो आकर जांच करेगा नहीं। जांच विभागीय लोग ही करेंगे, ऐसे में हमें निष्पक्ष होना ही होगा।”
उन्होंने कहा, “जांच समिति गड़बड़ नहीं कर सकती। जांच कोई एक व्यक्ति नहीं कर रहा है, पूरी टीम कर रही है। कोई भी जांच टीम एकपक्षीय बात नहीं कर सकती। व्यक्ति गलती कर सकता है, टीम नहीं। पीड़ित छात्र भी विश्वविद्यालय का ही अंग है। हमारे मन में उसके प्रति अपनत्व का भाव है। गार्जियन भाव से ही विश्वविद्यलय के समस्त बच्चों को देखा जाता है। जांच टीम ने पीड़ित छात्र की बातों काे रिकॉर्ड किया है। रिपोर्ट तैयार हो गई है। इस बीच चार दिन की दशहरा की छुट्टी है। 22 अक्टूबर को विश्वविद्यालय के खुलने पर रिपोर्ट सौंप दी जाएगी।”
वहीं, दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय (गोरखपुर) के कुलपति वी.के. सिंह ने बताया कि रिपोर्ट तैयार है। हम इसे जल्द ही जिला प्रशासन को भेजेंगे। उन्होंने बताया कि यह रिपोर्ट फैक्ट फाइंडिंग की तरह है, जिसकी बुनियाद पर जिला प्रशासन आगे की कार्रवाई करेगा। दीपक के अविश्वास के सवाल पर उन्होंने कहा, “पीड़ित छात्र तो हर चीज से असंतुष्टि जाहिर कर रहा है। पूरे के पूरे मामले को पॉलिटिकलाइज कर दिया गया है, तो ऐसे कैसे चलेगा? धारा का दुरुपयोग किया जा रहा है। फॉरवर्ड विरोधी लॉबिंग चल रहा है। संविधान एक आदमी के बिल से तो नहीं चलेगा न। केस कोर्ट जाएगा, मामला वहीं तय होगा। हमारे लिए तो सभी छात्रों की एक ही जाति है- छात्र।”
जब हमने उनसे पूछा गया कि क्या पीड़ित छात्र ने आपके पास जांच कमेटी से असंतुष्टि जाहिर करते हुए कोई लिखित याचिका दी है, ताे कुलपति ने कहा, “नहीं, उसने हमें ऐसा कुछ भी नहीं दिया। उसको कोई और गाइड कर रहा है। मैंने उससे कहा भी कि वह अपने साथ बाहरी तत्त्वाें को न जोड़े। उसने आश्वासन भी दिया था, लेकिन फिर भी वह यूज हो रहा है। वह छात्र नेता बनना चाह रहा है। जबकि विश्वविद्यालय पठन-पाठन का केंद्र है।”
वे यही नहीं रुकते हैं। कहते हैं, “छात्र राजनीति लिए भी एक नियमावली बनी हुई है। लिंगदोह कमेटी रिकमेंड करती है । उसके बहुत कड़े नियम हैं। आप देखिए कि आज किसी भी स्टेट यूनिवर्सिटी में चुनाव और राजनीति नहीं हो रही है। राजनीति की आड़ में सिर्फ गुंडागर्दी होती है। बम फोड़े जाते हैं। शिक्षकों को मारा-पीटा जाता है। इसके लिए बाहर से पैसा आता है। आज 15 छात्रों को छोड़कर सभी छात्र पढ़ना चाहते हैं, लेकिन एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है।”
जहां एक ओर कुलपति स्वयं कहते हैं कि जांच रिपोर्ट अभी आयी नहीं है और आने के बाद वे कार्रवाई करेंगे। वहीं, दूसरी ओर दीपक के आरोपों को खारिज भी करते हैं। उन्होंने कहा, ”दीपक खुद दो महीने पहले ही इनरोल हुआ है। जिनके खिलाफ शिकायत दी है, उन लोगाें ने भी एक डेढ़ महीने पहले ही अपने वर्तमान पदों डीन और विभागाध्यक्ष पर चार्ज लिया है। ऐसे में वे क्या प्रताड़ित करेंगे? दीपक अगस्त में आया और सितंबर में आरोप लगा दिया। तो यह थोड़े ही है कि उसके आरोप लगाते ही एक दिन में जांच हो जाएगी। दूसरी बात कि डीन को जांच का जिम्मा नहीं दिया गया था। उनसे मैंने छात्र की शिकायत के बाबत पूछताछ करके उनकी एक्सप्लैनेशन जमा करने को कहा था। जब तक उनका एक्सप्लैनेशन आता, यूनिवर्सिटी में चुनाव थे। सब बंद था। ऐसे में कोई कार्रवाई होने से पहले ही कॉलेज बंद हो गया। हम एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग नहीं होने देंगे। हमको तो दोनों पक्षाें काे देखना है। लेकिन, वह लड़का (दीपक) यूज हो रहा है। किसी को सजा देना विश्वविद्यालय के हाथ में नहीं है। लेकिन, फिर भी हम वही करेंगे, जो न्यायसंंगत है।”
बहरहाल, इस पूरे मामले में पीड़ित दलित छात्र दीपक कुमार ने कहा, “मुझे मेरी बातें सही ढंग से नहीं रखने दी गईं। पांचों लोगों ने घेरकर मुझ पर दबाव बनाया। उन्होंने मुझसे कहा कि आंबेडकर के साथ भी तो ऐसा हुआ था, तो उन्होंने तो आत्महत्या नहीं कर ली थी।” दीपक ने आरोप लगाया कि “जांच कमेटी के पांचों सदस्य आरएसएस से जुड़े हुए हैं। वो बस दिखाने भर के लिए दलित और ओबीसी रखे गए हैं।” उसने यह भी कहा कि यदि उसे न्याय नहीं मिला, तो वह कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएगा।
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/एफपी डेस्क)
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