राजनीति से साहित्य में आए बहुजन चिंतक और विचारक श्री मोतीराम शास्त्री ने पिछली सदी के नवें दशक में 13 सर्गों में एक लघु खंड काव्य लिखा था – ‘राव न लंका’। विचार की दृष्टि से यह अद्भुत काव्य है। उसके ‘तथागत’ सर्ग में उन्होंने लिखा है :
रावन का पुतला मत फूंको, ये रावन नहीं तथागत हैं।
दस पारमिता दस बलधारी, हैं यही अतीत अनागत हैं।।
प्रज्ञा दाता हैं प्रभा पुंज, कोटिक जन मन के नायक हैं।
मानवता के अविरल प्रतीक, पूजा अर्चन के लायक हैं।।
तप, यज्ञ, ब्रह्म हारे जिससे, विषयी हैं भू पति न्यारे हैं।
है यही कथा यदि रावन की, तो बोलो किसने मारे हैं?
चलने पर धरा हिली किसकी, था त्राहि-त्राहि घनघोर कहाँ?
कितना अटपटा मुकदमा है, जब माल नहीं तब चोर कहाँ?
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