मैं आदमी हूं यानी पुरुष, मर्द स्वामी, देवता, मंत्री, संतरी, सामंत, राजा, मठाधीश और न्यायाधीश -सब कुछ मैं हूं और मेरे लिए ही सब कुछ है या सब कुछ मैंने अपने सुख-सुविधा, भोग-विलास और अय्याशी के लिए बनाया है। सारी दुनिया की धरती और (स्त्री) देह यानी उत्पादन और पुनरुत्पादन के सभी साधनों पर मेरा ‘सर्वाधिकार सुरिक्षत’ है और रहेगा। धरती पर कब्जे के लिए उत्तराधिकार कानून और देह पर स्वामित्व के लिए विवाह संस्था की स्थापना मैंने बहुत सोच-समझकर की है। सारे धर्मों के धर्मग्रंथ मैंने ही रचे हैं। धर्म, अर्थ, समाज, न्याय और राजनीति के सारे कायदे-कानून मैंने बनाए हैं और मैं ही समय-समय पर उन्हें परिभाषित और परिवर्तित करता हूं। घर, खेत, खलिहान, दुकान, कारखाने, धन, दौलत, सम्पत्ति, साहित्य, कला, शिक्षा, सत्ता और न्याय-सब पर मेरे अधिकार हैं। सभी धर्मों का भगवान मैं ही हूं और सारी दुनिया मेरी ही पूजा करती है।
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