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आईआईएम में आरक्षण : ऐलान और लागू होने के बीच अभी भी लंबा फासला

प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े के मुताबिक़, सरकार का यह आदेश महज़ दिखावा है। इनका कहना है कि योग्यता के बहाने तमाम सरकारी संस्थान आरक्षण लागू करने से बचते रहे हैं। योग्य व्यक्ति न मिलना अपने आप में बेकार बहाना है

भारत सरकार ने फैसला किया है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) में शिक्षकों की भर्ती में जाति आधारित आरक्षण को लागू कराया जाएगा। इसके मद्देनज़र मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने वरिष्ठ पदों सहित शिक्षण भर्तियों में आरक्षण लागू करने के लिए एक निर्देश जारी किया है।

केंद्र सरकार के सभी तकनीकी संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईएम और आईआईएसईआर में अभी तक फैकल्टी की नियुक्ति में संवैधानिक प्रावधानों के तहत आरक्षण मापदंडों का पालन नहीं किया जाता है। इस मुद्दे पर लंबे समय से विवाद है। दरअसल 1975 में एक सरकारी आदेश जारी करके आईआईएम में फैकल्टी नियुक्ति के लिए कोटा लागू करने से छूट दे दी गई थी। इसके बाद से आईआईएम फैकल्टी की नियुक्तियों में एससी/एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण नहीं दिया गया। हालांकि आईआईएम पर ये छूट लागू नहीं होती क्योंकि वह कोई तकनीकी या शोध संस्थान नहीं है।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक व प्रो. आनंद तेलतुंबड़े

इसके बाद 2016 में भी मानव संसाधन मंत्रालय ने इन संस्थानों में आरक्षण लागू करने की बात कही। तब कहा गया कि जिन विश्वविद्यालयों और संस्थानों को केंद्र सरकार से फंड मिलता है, उनको आरक्षण के नियमों का पालन करना चाहिए। लेकिन तब भी तमाम आईआईएम संस्थानों ने तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की कोशिशों की अनदेखी कर दी थी।

संविधान के मुताबिक़ सभी सरकारी संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिए 15% आरक्षण, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देना अनिवार्य है। इसके अलावा हाल ही में आर्थिक रुप से पिछड़ों (ईडब्लूएस) के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।


लेकिन 2018 के आख़िर में जारी सरकार के आंकड़े बताते हैं कि आईआईएम अहमदाबाद, बेंगलुरु, कोलकाता, लखनऊ, इंदौर और कोज़िकोड में शिक्षकों के कुल 699 स्वीकृत पदों में से 545 पर सामान्य श्रेणी के लोग नियुक्त हैं। इन छह आईआईएम में सिर्फ 10 शिक्षक ओबीसी और महज़ तीन एससी हैं जबकि इनमें अनुसूचित जाति का एक भी नहीं है। इसके अलावा दो आईआईएम संस्थानों ने इस संबंध में यह कहकर जानकारी देने से इंकार कर दिया था कि उनके यहां ऐसा कोई आंकड़ा नहीं जुटाया जाता।

इसे लेकर हाल के दिनों में संसद में भी कई बार सवाल उठाए गए। पिछड़े और वंचित तबक़ों के लगातार बढ़ते दबाव के मद्देनज़र सरकार ने फैसला किया है कि सभी प्रीमियम संस्थानों में नियुक्ति के समय आरक्षण का पालन किया जाएगा।


हालांकि इसके लागू होने को लेकर अभी भी तमाम तरह की शंकाएं हैं। दलित और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े के मुताबिक़ सरकार का यह आदेश महज़ दिखावा है। इनका कहना है कि योग्यता के बहाने तमाम सरकारी संस्थान आरक्षण लागू करने से बचते रहे हैं। योग्य व्यक्ति न मिलना अपने आप में बेकार बहाना है। उनका कहना है कि आईआईएम विशेष वर्ग का संस्थान हैं जहां  पिछड़े और वंचितों को सामाजिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है। सरकार अगर वाक़ई इस आदेश को लागू करने में दिलचस्पी रखती है तो फिर क़ाबिलियत और योग्यता जैसे शब्दों की आड़ लेकर वंचितों को अधिकारविहीन करने पर रोक लगाए। वरना सरकार की ऐसी तमाम कोशिशें महज़ बयानबाज़ी और दिखावे तक सीमित रहेंगी।

(संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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