बिहार के शाहाबाद (वर्तमान में भोजपुर) की धरती पर पैदा हुए सपूतों ने अपनी कर्मठता से इतिहास के पन्नों पर हमेशा से अपनी गौरव गाथा दर्ज करवाते रहें हैं। यह धरती अपनी कोख से ऐसे सपूतों को जन्म देती रही है जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर बीसवीं सदी तक न सिर्फ बिहार राज्य बल्कि सम्पूर्ण देश-समाज को एक नई राह दिखाते रहें हैं। इसी धरती पर गड़हनी प्रखंड के एक पिछड़े गांव पिपरा दुलारपुर में 18 जून, 1937 को धनेश्वरी देवी एवं मनराखन यादव के घर एक ऐसे बालक का जन्म होता है जो बड़ा होकर डाॅ. राममनोहर लोहिया के उस कथन को हू-ब-हू चरितार्थ करते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था- “कानून खेत में बनते हैं, खलिहान में बनते हैं, संसद तो मात्र उस पर मोहर लगाती है, इसलिए सड़कों पर उतरो और बोलो।” लोहिया के विचारों के अनुरूप वंचित वर्गों को उनका हक दिलाने के लिए आजीवन संघर्षरत रहने वाले, औसत कदकाठी और मृदुल स्वभाव के धनी, वैचारिक कठोरता से पगा व्यक्तित्व, भाषणों से विरोधियों को भी कायल बना लेने की जादूई शक्ति से लैस, वैचारिक अंतर्धारा के अजस्र स्रोत, शांत और सौम्य आभायुक्त सामाजिक योद्धा का नाम था- राम अवधेश सिंह।