भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर की 131वीं जयंती के मौके पर बीते 14-15 अप्रैल को लोकरंग-2022 का दो दिवसीय आयोजन संपन्न हो गया। लोकरंग सांस्कृतिक समिति, जोगिया जनूबी पट्टी, फाजिलनगर, उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित इस समारोह में विविध लोकनृत्य, लोकगायकी और लोक वाद्यों का प्रदर्शन हुआ। इस दौरान पहली बार महाराष्ट्र से आए कलाकारों ने लावणी, गोंधल और कोली लोकनृत्यों की प्रस्तुति की। साथ ही, इस मौके पर ‘लोक संस्कृति का जन-जागरूकता से रिश्ता’ विषय पर विचार गोष्ठी भी हुई।
विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रो. राम पुनियानी ने कहा कि “सरकारें आम आदमी से बहुत भयभीत रहती हैं। इसलिये सत्ता मे बने रहने के लिए वे चाहती हैं कि देश का एक बड़ा वर्ग शिक्षित होते हुये भी अशिक्षित रहे और उनकी भक्ति में लीन रहे, क्योंकि बुद्धिजीवी लोग सरकारों की चालाकी समझ लेते हैं।”
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के छात्र रहे और लोकगायक डॉ. बृजेश यादव ने कहा कि “जो भक्ति भजन का गाना है, वो बंद बुद्धि तैयार करने के लिए और औरतों को मानसिक गुलाम बनाने के लिए है। उन्होंने कार्यक्रमों की शुरुआत भक्ति वंदना से नहीं करने का आह्वान करते हुए कहा कि यह दुखद है कि हमारे खुद के साथी ऐसा करते हैं। अगर वे वंदना न गायें तो उनके मुंह से बकार ही नहीं फूटती। उन्हें लगता है कि शुरुआत ही गड़बड़ हो गई। इस तरह की बातें कलाकारों के दिमाग में घर कर गई हैं और यही बातें श्रोताओं के दिमाग में भी बैठ गई हैं। यह जो वंदना संबंधी चेतना है, आत्मघाती चेतना है।”
आगे उन्होंने कहा कि “प्रो. रामशरण शर्मा के शब्दों में यही बंद बुद्धि है। यह बंद बुद्धि पूरे समाज के स्तर पर काम कर रही है। इसी बंद बुद्धि की वजह से आत्मघात हो रहा है कि हम अपने ही चेतना के खिलाफ खड़े हो गये हैं और अपने ही पतन का जश्न मना रहे हैं। इसिलिए हिंसा, हत्या और विभाजन की शक्तियों को वोट देकर विजयी बना दे रहे हैं।”
गोष्ठी की अध्यक्षता प्राख्यात साहित्य आलोचक प्रो. चौथीराम यादव ने की। उन्होंने प्रो. तुलसीराम की आत्मकथा ‘मुर्दहिया’ का जिक्र किया और कबीर तथा बुद्ध की परंपरा को मिटाने वाले फर्जी आचार्य की उपाधि लिये उन साहित्यकार व लेखकों की ओर इशारा किया जो मनुवादी तंत्र के प्रचारक रहे हैं।
लोकरंग-2022 हर बार की तरह इस बार भी लोगों को अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के कारण आकर्षण का केंद्र बना रहा। संभावना कला मंच के चित्रकारों ने गांव को अपनी कला से कुछ ऐसा सजाया कि लोग देखते ही रह गए। दरअसल, लाकरंग एक ऐसा मंच है, जहां लोक कलाकारों को खुला आकाश मिलता है। यह मंच कलाकारों को प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर उभारने मे सहायक होता है।
कार्यक्रम में नीदरलैंड के मशहूर भोजपुरी पॉप गायक राजमोहन भी प्रस्तुतियां दी। उन्होंने बताया कि सरनामी गांव से गिरमिटिया मजदूर के रूप में अंग्रेजों द्वारा उनके पूर्वज बस्ती जनपद से सूरीनाम ले जाए गए थे। उन्होंने ‘रेलिया बैरन पिया को लिये जाय रे’ जैसे गीत गाये। उनके अलावा लोकरंग 2022 में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक टीमें भाग लेने आईं थीं। राजस्थान के बाड़मेर से भुंगरखान मंगणियार एवं साथी कलाकार विविध राजस्थानी लोकनृत्य व संगीत प्रस्तुत किया।
वहीं, ‘ताल’ नृत्य संस्थान, भागलपुर, बिहार द्वारा झिझिया, गोदना और जट-जटिन लोकनृत्य, बिदेसिया और डोमकच नृत्य नाटिकाओं की प्रस्तुतियां देखने को मिलीं, जिसमें श्वेता भारती और उनकी टीम ने प्रस्तुतियां दी।आयोजक गांव जोगिया जनूबी पट्टी की महिला कलाकारों ने इस मौके झूमर गीत प्रस्तुत किया। जबकि. बलिया की संस्था संकल्प द्वारा परंपरागत भोजपुरी लोकगीतों व जनगीतों की प्रस्तुति की गई। कार्यक्रमों में रामकोला की टीम द्वारा बांसुरी वादन ने सभी का मन मोहा।
इस दो दिवसीय आयोजन में 14 अप्रैल की रात आजमगढ़ की सूत्रधार संस्था द्वारा 1857 विद्रोह के गुमनाम नायक बोधू सिंह अहीर के जीवन पर नाटक प्रस्तुत किया गया। इस नाटक के निर्माता व निर्देशक अभिषेक पंडित रहे। कार्यक्रम की दूसरी रात नाद, पटना द्वारा भोजपुरी लोकगीतों की प्रस्तुति हुई। इप्टा, आजमगढ़ द्वारा जांघिया और पंवरिया लोकनृत्यों की प्रस्तुति हुई। वहीं, नाद पटना द्वारा ‘मृदंगिया’ नाटक प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवि प्रो दिनेश कुशवाह (रीवा विश्वविद्यालय) ने किया।
कार्यक्रम का समापन सुभाषचंद्र कुशवाहा के संबोधन से हुआ। उन्होंने आए अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया और कहा कि मौजूदा समय विषम परिस्थितियों का समय है। यदि इससे मुकाबला करना है तो गांवों और लोक संस्कृतियों को सहेजना ही होगा।
(संपादन : नवल/अनिल)
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