एक बार फिर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की हकमारी की कोशिशें नाकाम हुईं। कल यानी 28 अप्रैल, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि यदि ओबीसी अभ्यर्थी मेरिट के मामले में सामान्य श्रेणी उम्मीदवारों से बेहतर व समतुल्य हैं तो उनका नियोजन सामान्य श्रेणी कोटे के तहत ही होगा। इसके अलावा ओबीसी कोटे की सीटें इसी वर्ग के अन्य सफल अभ्यर्थियों से भरी जाएंगीं। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की खंडपीठ ने बीएसएनएल से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया।
दरअसल, बीएसएनएल में इंजीनियर के पद पर नियोजन के मामले में आलोक कुमार यादव व दिनेश कुमार नामक दो अभ्यर्थियों की तरफ से यह याचिका दायर की गई थी। बीएसएनएल ने ओबीसी के इन दोनों सफल अभ्यर्थियों को तब भी सामान्य श्रेणी के कोटे के तहत नियोजन से इंकार कर दिया था, जबकि दोनों ने सामान्य श्रेणी के लिए निर्धारित मेधा मानदंडों से अधिक प्राप्तांक हासिल किये थे। बीएसएनएल का तर्क रहा कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को योग्यता के आधार पर चुना जाता है और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की सूची में रखा जाता है, उन्हें सेवा आवंटन के समय प्राथमिकता के आधार पर सेवा प्राप्त करने के लिए आरक्षित श्रेणी की रिक्तियों के आधार पर समायोजित किया जा सकता है।
आलोक और दिनेश ने बीएसएनएल के इस तर्क को खारिज करने हेतु केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल, जोधपुर में अपील दायर की। ट्रिब्यूनल ने भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1993 में इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में दिये गये न्यायादेश के मुताबिक ही बीएसएनएल को कहा कि यदि ओबीसी श्रेणी के अभ्यर्थी सामान्य श्रेणी के लिए निर्धारित मेधा मानदंडों को पूरा करते हैं तो उन्हें सामान्य श्रेणी के कोटे के तहत ही नियोजित किया जाय। लेकिन बीएसएनएल ने ट्रिब्यूनल के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। वहां भी बीएसएनएल को हार मिली। लेकिन उसने हार न मानते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता राजीव धवन ने उपरोक्त दोनों अभ्यर्थियों की तरफ तर्क रखते हुए न्यायाधीशद्वय के समक्ष इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिये गये आदेश को रखा। इसके बाद न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की खंडपीठ ने बीएसएनएल की याचिका खारिज करते हुए उसे आदेश दिया कि किसी भी स्थिति में मेधावी सूची में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के समतुल्य या बेहतर प्रदर्शन करनेवाले ओबीसी अभ्यर्थियों का नियोजन आरक्षित श्रेणी के तहत नहीं किया जा सकता है। उनका नियोजन सामान्य श्रेणी के कोटै के तहत ही हो।
बिहार : बढ़ीं नीतीश-तेजस्वी की नजदीकियां, अमित शाह ने किया प्रदेश भाजपा के नेताओं को दिल्ली तलब
सियासत के हिसाब से महत्वपूर्ण राज्यों में शुमार बिहार में एक बार फिर सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। इसकी वजह यह है कि इन दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं। वहीं इस बीच 28 अप्रैल, 2022 को लालू प्रसाद के जेल से रिहा होने के बाद यह कयासबाजी तेज हो गई है कि आनेवाले समय में बिहार में सियासी बदलाव देखने को मिलेंगे। वहीं इन सबके बीच भाजपा ने अपने कान खड़े कर लिये हैं।
दरअसल, बीते एक सप्ताह में कल दूसरी बार नीतीश और तेजस्वी के बीच नजदीकियां सामने आयीं। गत 28 अप्रैल, 2022 को हुआ यह कि जदयू के निमंत्रण पर तेजस्वी यादव सहित अनेक राजद नेता इफ्तार दावत में शरीक होने पहुंचे। जदयू कार्यालय में उनका स्वागत जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने किया। इफ्तार के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव साथ-साथ नजर आए। हालांकि इस मौके पर भाजपा कोटे के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद सहित अनेक भाजपा नेता भी मौजूद रहे। इसके पहले तेजस्वी यादव के द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में शामिल होने नीतीश कुमार पांच साल के बाद राबड़ी देवी के सरकारी आवास पहुंचे थे।
बहरहाल, नीतीश-तेजस्वी के बीच बढ़ती नजदीकियों को लेकर भाजपा चौकन्नी हो गई है। मिली जानकारी के अनुसार, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आगामी रविवार को प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी सहित अनेक नेताओं को तलब किया है।
हम आदिवासी हिंदू नहीं, पृथक धर्म कॉलम के लिए आंदोलन करेंगे तेज
गत 28 अप्रैल, 2022 को देश के अनेक राज्यों से आए आदिवासी दिल्ली के जंतर-मंतर पर जुटे थे। वे केंद्र सरकार से मांग कर रहे थे कि जनगणना प्रपत्र में उनके लिए पृथक धर्म का कॉलम हो, क्योंकि वे स्वयं को हिंदू नहीं मानते। इस मांग को लेकर आयोजित धरने में झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, गुजरात, राजस्थान, आसाम, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और मेघालय आदि प्रदेशों के आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए। धरने के बाद एक ज्ञापन गृह मंत्री और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को एक ज्ञापन सौंपा गया। धरने में शामिल आदिवासी नेताओं ने कहा कि आदिवासी धर्म कॉलम कोड पर अब आर-पार की लड़ाई शुरू हो चुकी है। यह धरना अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद के बैनर तले आयोजित किया गया।
इस मौके पर झारखंड की पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने कहा कि आदिवासी धर्म कॉलम कोड लेना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। भारत सरकार आदिवासियों के धर्म कोड कि मामले पर अनदेखा कर रही है। यदि मोदी सरकार आदिवासियों के धर्म कोड पर संज्ञान नहीं लेती है तो पूरे देश भर में सरकार के खिलाफ जन आंदोलन तेज किया जाएगा।
अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद के राष्ट्रीय महासचिव प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि भारतवर्ष में आदिवासी समाज प्राकृतिक पूजक है और आदिवासियों की जनसंख्या हिंदू और मुस्लिम की जनसंख्या के बाद ततीय स्थान पाया जाता है। जबकि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि लोगों का अपना धर्म कोड है। इस देश में 781 प्रकार के जनजातियां पाई जाती है। सभी समुदाय अपने अपने क्षेत्र में कोई सरना, आदि, भीली, कुकना-कोकणी, गोंडी, बिरसाईत, गारो, खासी, कोयापुनेम, साफा होड़, डोनीपोलो, सनमाही, खासी, प्रकृतिवादी आदि पर आस्था रखते हैं। फिर भी 15 करोड़ आदिवासियों का इस देश में धर्मकोड के नाम पर वंचित किया गया है।
सीयूईटी का तमिलनाडु में विरोध
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए अब छात्र-छात्राओं को भारत सरकार के द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित एक परीक्षा में सफलता हासिल करनी होगी। इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी इंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) की संज्ञा दी गई है। इस आशय के आदेश पहले ही भारत सरकार द्वारा जारी किये जा चुके हैं। इस संबंध में विरोध के स्वर तमिलनाडु में उठे हैं। ऑल इंडिया बैकवर्ड्स इम्प्लॉयज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी. करुणानिधि ने कहा है कि ऐसा करना राज्यों के बोर्ड की अहमियत को कम करना है। बताते चलें कि पूर्व में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए अभ्यर्थियों के राज्य बोर्ड के दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में प्राप्त अंकों को आधार बनाया जाता था। इस संदर्भ में करुणानिधि ने कहा है कि यह मेडिकल संस्थानों में दाखिले के लिए ली जानेवाली नीट परीक्षा के जैसा है, जो राज्यों के अधिकारों को सीमित करता है।
(संपादन : अनिल)
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