लेखक : डॉ. बी. आर. आंबेडकर
संपादक : सिद्धार्थ व अलख निरंजन
मूल्य : 200 रुपए (अजिल्द)
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गांधी के दो अनोखे हथियारों का उल्लेख करना ठीक होगा जिनसे मानवीय गलतियों को सुधारा जा सकता है। गांधी इन हथियारों के आविष्कार और उनके इस्तेमाल में महारत का दावा करते रहे हैं। पहला हथियार है, सत्याग्रह। गांधी ने ब्रिटिश सरकार की राजनीतिक विसंगतियों को दूर करने के लिए उसके विरुद्ध कई बार सत्याग्रह किया। परंतु गांधी ने अछूतों के लिए सार्वजनिक कुएं और मंदिर खुलवाने के लिए हिंदुओं के विरुद्ध कभी सत्याग्रह का अस्त्र नहीं छोड़ा। आमरण अनशन गांधी का दूसरा हथियार है। ऐसा कहा जाता है कि गांधी ने अभी तक कुल मिलाकर 21 अनशन किए हैं। इनमें से कुछ हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए और अधिकांश अपने आश्रम में रहने वालों द्वारा किए गए अनैतिक आचरण का प्रायश्चित करने के लिए किए गए थे। एक सत्याग्रह बम्बई की सरकार के उस आदेश के विरोध में भी था, जिसमें बम्बई सरकार ने जेल के एक कैदी श्री पटवर्धन द्वारा मांग करने पर भी उसे झाड़ू लगाने का काम देने से इंकार कर दिया गया था। इन 21 अनशनों में एक भी अनशन छुआछूत निवारण के लिए नहीं किया गया। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है।
(पुस्तक में संकलित डॉ. आंबेडकर के आलेख ‘अछूत क्या कहते हैं? गांधी से सावधान!’ से उद्धूत)
आधुनिक भारत के इतिहास में ‘पूना पैक्ट’ उतनी ही बड़ी घटना है, जितनी प्राचीन भारत के इतिहास में मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर पुष्यमित्र शुंग द्वारा राजगद्दी पर कब्जा करना, जिसे डॉ. आंबेडकर प्रतिक्रांति कहते हैं। इसी प्रकार कम्युनल अवार्ड आधुनिक भारत के इतिहास में क्रांति थी, जिसे गांधी ने पूना पैक्ट द्वारा प्रतिक्रांति में बदल दिया। लेकिन गांधी की ‘महात्मा’ की जो छवि सन् 1920 तक बन चुकी थी, वह एक सदी बीत जाने के बाद आज भी न केवल बनी हुई है, बल्कि उसकी चमक बढ़ती जा रही है तथा उसमें नित नये-नये रत्न जुड़ते चले जा रहे हैं। इसी प्रकार गांधीवाद की भी नित नयी-नयी व्याख्याएं की जा रही हैं तथा न केवल भारत की, बल्कि सभी वैश्विक समस्याओं का हल गांधीवाद में खोजा जा रहा है। डॉ. भीमराव आंबेडकर, गांधी के समकालीन थे, तथा दोनों के विचारों के बीच अंतर्विरोधों की तीखी अभिव्यक्ति भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हुई थी। इसलिए आंबेडकर द्वारा किया गया गांधी का मूल्यांकन महत्वपूर्ण हो जाता है।
(पुस्तक में संकलित भूमिका से उद्धूत )
डॉ. आंबेडकर भले ही गुमनामी के अंधेरे से कुछ बाहर निकल आए हों, परंतु आज भी उन्हें केवल दलितों का नेता माना जाता है। गांधी की यादें कुछ धुंधली तो हुईं हैं, परंतु महात्मा का मुकुट धारण करने को आतुर कई और लोग देश के क्षितिज पर उभर आए हैं। जितनी जल्दी हम यह समझेंगे कि गांधी के सिद्धांत और सोच क्या थी, जितनी जल्दी हम यह जानेंगे कि क्या कारण है कि हम अपने मिथकीय सुनहरे अतीत की ओर खींचे चले जाते हैं और क्यों हम लड़ने के लिए एक मिथकीय शत्रु की खोज में हैं, उतना ही हमारे लिए बेहतर होगा, क्योंकि तब हम एक गौरवशाली भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकेंगे।
(पुस्तक में संकलित प्रकाशकीय से उद्धूत )
समीक्षात्मक टिप्पणियां
यह पुस्तक मेरे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गांधी और आंबेडकर के बीच हुए वाद-विवाद का कोई प्रामाणिक दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध नहीं था। इसके लिए फारवर्ड प्रेस का आभार तथा दोनों संपादकों– सिद्धार्थ व अलख निरंजन को हार्दिक बधाई! इसमें कई एक ऐसे जरूरी लेख हैं जो गांधी पर आंबेडकर के बेबाक विचारों को समझने के लिए जरूरी हैं। – चौथीराम यादव, प्रसिद्ध हिंदी समालोचक
यह पुस्तक आंबेडकर-गांधी डिबेट के कुछ दस्तावेज व इस संदर्भ में डॉ. आंबेडकर द्वारा लिखे गए लेखों का संकलन है। … गांधी-आंबेडकर बहस को दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ समझने में यह पुस्तक सहायक है। इसे पढ़ा और संदर्भित किया जाना चाहिए। – वीरेंद्र यादव, प्रसिद्ध हिंदी समालोचक
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