लेखक : फ्रैंक अर्नेस्ट केइ
अनुवादक : कंवल भारती
मूल्य : 250 रुपए (अजिल्द)
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… जानकारियां अनेक स्थानों से एकत्रित की गई हैं। कुछ अन्य विषय भी हैं, जिनके बारे में मुझे जानकारी प्राप्त करनी चाहिए थीं, लेकिन कबीरपंथी केंद्र एक बड़े क्षेत्र में बिखरे हुए हैं और उनमें से अनेक सुलभ स्थानों में नहीं हैं, इसलिए मैं उनमें से कुछ तक ही पहुंच सका हूं।
(पुस्तक में संकलित लेखक एफ. ई. केइ द्वारा लिखित प्राक्कथन से उद्धूत)
अभी तक हमने कबीर को हिंदू दृष्टिकोण से देखा, मुस्लिम दृष्टिकोण से देखा और दलित चिंतकों की दृष्टि से भी देखा; लेकिन ईसाई चिंतन-दृष्टि से कबीर साहेब का मूल्यांकन शायद पहली बार ब्रिटिश विद्वान एफ. ई. केइ (फ्रैंक अर्नेस्ट केइ) ने किया है, जो एक पादरी थे, और जिन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से अपनी ‘डाक्ट्रेट’ के लिए कबीर को विषय के रूप में चुना था। यह थीसिस उन्होंने 1920 के दशक में लिखी थी। बाद में इस थीसिस को उन्होंने कुछ संशोधनों के साथ ‘कबीर एंड हिज़ फ़ाॅलोअर्स’ शीर्षक से प्रकाशित किया। यह कबीर के जीवन और सिद्धांतों पर अंग्रेजी में लिखा गया सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है, जिसका हिंदी में पहली बार अनुवाद किया गया है।
(पुस्तक में संकलित कंवल भारती के अनुवादकीय से उद्धूत )
कुल ग्यारह अध्यायों में बंटी यह पुस्तक कबीर के जन्म से लेकर उनके साहित्य, कबीरपंथ के संस्कारों, परंपराओं और कर्मकांडों आदि का प्रामाणिक ब्यौरा तो प्रस्तुत करती ही है, कबीर से प्रेरित अन्य संप्रदायों की जानकारी भी देती है, जिनमें से कुछ संप्रदाय कबीरपंथ से भी ज़्यादा चर्चा बटोरते हुए देखे जाते हैं। इनमें ‘राधास्वामी’ संप्रदाय की चर्चा मैंने पूर्व में की है। ऐसे 13 संप्रदायों की सूची केइ ने प्रस्तुत की है, जो कबीर की विचारधारा से प्रेरित हैं। इनमें पंजाब के सिक्ख संप्रदाय का नाम सबसे ऊपर रखा गया है।
(पुस्तक में संकलित द्वारका भारती की भूमिका से उद्धूत)
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