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ईडब्ल्यूएस आरक्षण : सुनवाई पूरी, दलित-बहुजन पक्षकारों के तर्क से संविधान पीठ दिखी सहमत, फैसला सुरक्षित

सुनवाई के अंतिम दिन डॉ. मोहन गोपाल ने रिज्वांडर पेश करते हुए कहा कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग एक ऐसी श्रेणी है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े सभी श्रेणियों को एकजुट करती है। पढ़ें, सात दिवसीय सुनवाई के महत्वपूर्ण अंश

गत 26 सितंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आर्थिक आधार पर कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 2019 में भारत सरकार द्वारा किये गये 103वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली 33 याचिकाओं की सुनवाई पूरी कर ली और फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले को जनहित अभियान व 32 अन्य याचिकाकर्ता बनाम भारत सरकार (डब्ल्यू.पी.(सी) सं. 55/2019) कहा गया है। इसकी सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने हालांकि यह टिप्पणी अवश्य की है कि आरक्षण के बारे में पारंपरिक अवधारणा आर्थिक सशक्तीकरण की नहीं, बल्कि सामाजिक सशक्तीकरण है। इसका मकसद आर्थिक स्तर उठाने के लिए नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि आर्थिक स्थिति स्थायी नहीं होती, वह बदलती रहती है। पीठ ने यह भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि सामाजिक स्थिति कई बार पीढ़ी दर पीढ़ी भेदभाव के कारण होती है।

संविधान पीठ की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने की। वहीं अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला शामिल रहे। इस संविधान पीठ ने सात दिनों तक सुनवाई की। 

तीन पहलुओं पर रहा पीठ का जोर

ध्यातव्य है कि जब 13 सितंबर, 2022 को सुनवाई शुरू हुई तब संविधान पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह संशोधन जुड़े तीन पहलुओं की कानूनी वैधता की जांच करेगी। ये तीन पहलू थे–

  1. क्या यह संशोधन राज्य को आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने की अनुमति देना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?
  2. क्या गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थानों में प्रवेश के संबंध में विशेष प्रावधान करना राज्य के लिए कानूनी रूप से वैध है?
  3. क्या सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (अन्य पिछड़ा वर्ग), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का बहिष्कार संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?

डॉ. मोहन गोपाल ने पहले दिन कहा– 103वां संशोधन संविधान के साथ धोखाधड़ी

पहले दिन यानी 13 सितंबर, 2022 को मुख्य याचिकाकर्ता जनहित अभियान की ओर से पक्ष रखते हुए प्राख्यात विधि विशेषज्ञ डॉ. मोहन गोपाल ने कहा कि 103वां संशोधन संविधान के साथ धोखाधड़ी है और जमीनी स्तर की हकीकत यह है कि यह देश को जाति के आधार पर बांट रहा है। उन्होंने कहा कि यह संशोधन लोगों के दिमाग में संविधान की पहचान को बदल देगा, जो कमजोरों के बजाय विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की रक्षा करता है।

डॉ. गोपाल ने कहा कि 103वां संविधान संशोधन सामाजिक न्याय की संवैधानिक दृष्टि पर हमला है। उन्होंने तर्क यह दिया कि आरक्षण केवल प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए जरुरी है ताकि यह ‘अवसर की समानता’ को न खत्म करे जो कि पिछड़े वर्गों की चिंता का विषय है।

सुप्रीम कोर्ट व संविधान पीठ के सदस्यगण

गत 26 सितंबर, 2022 को सुनवाई के अंतिम दिन डॉ. मोहन गोपाल ने रिज्वांडर पेश करते हुए कहा कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग एक ऐसी श्रेणी है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े सभी श्रेणियों को एकजुट करती है। आगे उन्होंने कहा कि वर्गों का विभाजन, आरक्षण देने के लिए पूर्व-आवश्यकता के रूप में गुणवत्ता (सामाजिक )और समाज में एक सौम्य कल्याणकारी गतिविधि के रूप में आरक्षण को ढीला करना बुनियादी ढांचे का हिंसक विरोध करता है। उन्होंने संविधान पीठ से संवैधानिक दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह करते हुए कहा कि संशोधन की व्याख्या ऐसी होनी चाहिए जहां “इसके अलावा” का अर्थ यह हो कि मानदंड अलग होंगे। 

एसजी तुषार मेहता के तर्कों का प्रो. रवि वर्मा कुमार ने किया खंडन

अंतिम दिन रिज्वाइंडर तर्क की शुरुआत याचिकाकर्ता जी. करुणानिधि की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रो. रवि वर्मा कुमार ने की। उन्होंने पहाड़ों, गहरी घाटियों और आधुनिक सभ्यता से दूर क्षेत्रों में रहने वाली विभिन्न अनुसूचित जनजातियों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये जनजातियां कोकेशियान (भारोपीय नस्ल) नहीं हैं। इन जनजातियों को उनकी जाति के आधार पर बाहर रखा जा रहा था और नस्ल के आधार पर भेदभाव करके समानता संहिता को नष्ट किया गया। उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक आरक्षण और गरीबी के बीच गठजोड़ प्रदान नहीं किया है और ना ही यह स्पष्ट किया है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण के बजाय अन्य लाभ क्यों नहीं दिए जा सकते हैं।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के एक समरूप समूह होने और शिक्षा का अधिकार प्रदान करने में पहले से उपयोग किए जा रहे आर्थिक मानदंडों के संबंध में साॅलिसीटर जनरल तुषार मेहता द्वारा पेश राज्य के तर्कों का खंडन करते हुए प्रो. रवि ने कहा कि अदालत ने स्वयं नोट किया है कि ये वर्ग समरूप समूह नहीं हैं और अनुच्छेद 21ए (शिक्षा का अधिकार कानून) ने कभी भी पिछड़े वर्गों को अपने दायरे से बाहर नहीं किया।

सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन ने अंतिम दिन अपने रिज्वाइंडर में तर्क दिया कि सरकार द्वारा प्रस्तुत डेटा प्रकृति में अनुभवजन्य नहीं है और इस तरह सिंहो आयोग के डेटा और एनएसएसओ डेटा पर निर्भरता सरकार को कोई आरक्षण स्थापित करने में मदद नहीं करेगी।

गौरतलब है कि भारत सरकार ने ईडब्ल्यूएस के लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु दस फीसदी आरक्षण का आधार सिंहो आयोग और एनएसएसओ से प्राप्त आंकड़ों को बताया है।

सवर्ण आरक्षण के पक्ष में खड़ी रही सरकार

इससे पहले सुनवाई के पांचवें दिन केंद्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा का नियम ऐसा नहीं है जिसे बदला न जा सके। 50 प्रतिशत का सामान्य नियम है, लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में इसे बदला जा सकता है और जो नियम बदला जा सकता हो, लचीला हो, उसे संविधान का मूल ढांचा नहीं कहा जा सकता।

मेहता ने केंद्र सरकार ईडब्ल्यूएस को नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के संबंध में 103वें संविधान संशोधन को सही ठहराते हुए कहा कि यह आर्थिक न्याय की अवधारणा के अनुकूल है। आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता, बल्कि उसे मजबूती प्रदान करता है। उन्होंने तर्क दिया कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है और उसकी उसी तरह से व्याख्या होनी चाहिए। संसद ने अगर महसूस किया कि अनुच्छेद 15(4) और 15(5) (ये अनुच्छेद एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण का प्रविधान करते हैं) के अलावा भी आकांक्षी वर्ग है, युवा हैं (ईडब्ल्यूएस) जिन्हें जरूरत है और उनके लिए अगर सकारात्मक कदम उठाया गया है और प्रविधान किया गया है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। संविधान की प्रस्तावना आर्थिक मजबूती देने की बात करती है।

सवर्ण पक्षकार ने पचास प्रतिशत की सीमा को बताया पवित्र

वहीं सवर्ण जाति के एक याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखते हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने वर्गों के विभाजन के खिलाफ तर्क दिया और यह भी प्रस्तुत किया कि 50 प्रतिशत की सीमा पवित्र है और इसका उल्लंघन करना मूल संरचना का उल्लंघन होगा। इस संबंध में उन्होंने यह भी कहा कि कुछ अनम्य बुनियादी ढांचा भी हो सकता है। 

सामाजिक न्याय के पक्ष में संविधान पीठ की टिप्पणी 

बहरहाल, संविधान पीठ ने सुनवाई के छठे दिन ही कहा कि 103वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाले भी मानते हैं कि सामान्य वर्ग में भी गरीब लोग हैं, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें छात्रवृत्ति या फीस में छूट देकर अन्य तरह से मदद दी जा सकती है ताकि वे अपनी पढ़ाई कर सकें। पर आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए आरक्षण की शायद जरूरत नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि आरक्षण के बारे में पारंपरिक अवधारणा आर्थिक सशक्तीकरण की नहीं, बल्कि सामाजिक सशक्तीकरण है। यह आर्थिक स्तर उठाने के लिए नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि आर्थिक स्थिति स्थायी नहीं होती, वह बदलती रहती है। जो चीज अस्थायी है, उसे स्थायी नहीं कहा जा सकता जबकि सामाजिक स्थिति कई बार पीढ़ी दर पीढ़ी भेदभाव के कारण होती है।

(संपादन : अनिल, इनपुट : लाइव लॉ डॉट कॉम, दैनिक जनसत्ता)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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