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दलित मजदूर शिव कुमार के साथ यातना की बात मजिस्ट्रेट ने मानी

बीते 21 दिसंबर, 2022 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को सौंपी गई एक जांच रपट में इस बात को स्वीकार किया गया कि शिव कुमार को 16 जनवरी, 2021 से 23 जनवरी, 2021 तक न सिर्फ गैरकानूनी हिरासत में रखा गया, बल्कि उन्हें बुरी तरह यातनाएं भी दी गईं। बता रही हैं सीमा आजाद

दलित मजदूर शिव कुमार याद है आपको? शायद नहीं याद होगा। बीते साल 2021 की जनवरी में किसान आंदोलन के दौरान शिव कुमार का नाम नोदीप कौर के साथ सामने आया था, जिन्हें हरियाणा की वर्णवादी पुलिस ने अवैध हिरासत में रखकर थर्ड डिग्री यातनाएं दी थीं, क्योंकि इन्होंने कारखाने में मजदूरों की बकाया मजदूरी दिलाने के लिए प्रदर्शन किया था। अधिकार मांगना इस देश में जुर्म हो गया है, उसमें भी जब कोई दलित इस अधिकार की मांग कर रहा हो तो पुलिस वालों का व्यक्तिगत अहंकार उफन पड़ता है। इसी कारण पुलिस ने दोनों को न सिर्फ गिरफ्तार किया उन्हें जातिगत गालियां भी दीं, दलित के आगे दबंग जाति के होने के दंभ में बुरी तरह मारा-पीटा और प्रताड़ित किया। उसमें भी शिव कुमार के मामले में तो उन्होंने सारी सीमाएं पार कर दीं।

अब इस मामले में एक सुखद बात यह हुई है कि बीते 21 दिसंबर, 2022 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को सौंपी गई एक जांच रपट में इस बात को स्वीकार किया गया कि शिव कुमार को 16 जनवरी, 2021 से 23 जनवरी, 2021 तक न सिर्फ गैरकानूनी हिरासत में रखा गया, बल्कि उन्हें बुरी तरह यातनाएं भी दी गईं। यह दुखद है कि इस सबसे बड़े लोकतंत्र में जुल्म हुआ है, इसे स्वीकार करा देना ही एक जीत लगती है। शिव कुमार के केस में मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे एक जीत की तरह ही देख रहे हैं।

शिवकुमार और नोदीप कौर दोनो कुंडली की एक फैक्ट्री में मजदूर थे, दोनों ही मजदूर अधिकार संगठन नाम के एक संगठन से जुड़े हैं। 12 जनवरी, 2021 को उन्होंने फैक्ट्री मालिकों द्वारा रोकी गई मजदूरी की मांग को लेकर फैक्ट्री गेट पर प्रदर्शन किया था। जिसके बाद नोदीप को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। उन्हें जो यातना दी गई, उसकी अलग कहानी है। शिव कुमार को हरियाणा पुलिस ने किसान आंदोलन के सिंघु बॉर्डर के पास से 16 जनवरी, 2021 को अपहरण की तरह गिरफ्तार किया था, और 23 जनवरी, 2021 तक उन्हें गैरकानूनी हिरासत में रखकर यातना देते रहे। फिर इसी तारीख की रात शिवकुमार की गिरफ्तारी घोषित कर उन्हें फिर से 2 फरवरी, 2021 तक पुलिस रिमांड में ले लिया गया। और यहां कानूनी हिरासत में भी उनका फिर से बुरी तरह टॉर्चर किया गया। इसका पूरा ब्योरा उन्होंने एक प्रकाशित डायरी में दिया है, जिसे पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। डायरी का नाम है ‘मजदूरी : थर्ड डिग्री, कहानी शिव कुमार की’।

शिव कुमार

अगर आपने अबु गरेब और ग्वांतानामो की जेल में दी जाने वाली यातनाओं के बारे में कुछ पढ़ा है, तो समझ लीजिए ये हमारे अपने देश में भी घटित हो रहा है। शिव कुमार की इस डायरी को पढ़कर, भारतीय लोकतंत्र की धज्जियां उड़ जाती हैं। गन्दी गाली, जातीय घृणा दिखाना, मारना, नाखून उखाड़ना से लेकर ‘वाटर बोर्डिंग’ तक सब कुछ पुलिस वालों ने शिव कुमार के साथ किया। बता दें कि ‘वाटर बोर्डिंग’ अमेरिकी इंटेलिजेंस CIA का इज़ाद किया गया टॉर्चर का ऐसा तरीका है, जिसमें व्यक्ति के चेहरे पर पानी की बौछार इस तरह से डाली जाती है कि उसे लगता है वह डूब रहा है। कमजोर इंसान इस यातना के बाद कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। यह तरीका भारतीय पुलिस भी आंदोलनकारियों पर इस्तेमाल कर रही है। इन यातनाओं के बाद भी शिव कुमार मानसिक बीमारियों का शिकार हो गया। लगभग चार महीने बाद जब वो जेल से बाहर आया तो उसका इलाज शुरू हुआ, जो कि आज भी जारी है। टॉर्चर का यह तरीका निश्चित ही कॉरपोरेट के साथ ही यहां पहुंचा है। इस देश में अपनी दिहाड़ी के लिए लड़ना भी अपराध हो गया है, वो भी इतना बड़ा अपराध कि लड़ने वाले का ‘वाटर बोर्डिंग’ वाला साम्राज्यवादी टॉर्चर किया जाय। 

शिवकुमार की छोटी सी टॉर्चर डायरी दरअसल उस मनुवादी विकास की नंगी कहानी है, जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था और साम्राज्यवादी पूंजी दोनों मिलजुल गए हैं और अलगाए नहीं जा सकते। पुलिस इन दोनों की रक्षक सेना की तरह काम कर रही है। लेकिन खुद इसी व्यवस्था में इन सबकी शिकायत करना आसान नहीं था।

जेल भेजे जाने के बाद जब शिव ने अपने साथ हुई मारपीट की कहानी अपने मजदूर पिता राजबीर को बताई, तो उन्होंने अदालत में आवेदन देकर इसकी शिकायत की और स्वतंत्र जांच की मांग की। अदालत में एडवोकेट आरएस चीमा, अर्शदीप चीमा और हरिंदर बैंस ने उनकी बात रखी। मार्च 2021 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने उस वक्त फरीदाबाद के जिला व सत्र न्यायाधीश दीपक गुप्ता को जांच की जिम्मेदारी दी, जिन्होंने जेल में शिवकुमार और 15 गवाहों से पूछताछ के बाद 21 दिसंबर, 2022 को अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट में यह माना गया है कि शिवकुमार को 16 जनवरी से 23 जनवरी तक गैरकानूनी हिरासत में रखा गया, और 16 जनवरी से 2 फरवरी तक उन्हें कानूनी और गैरकानूनी दोनों हिरासत में मारा-पीटा गया और यातनाएं दी गईं। 

गौर तलब है कि शिवकुमार को आंखों से काफी कम दिखाई देता है। पुलिस वालों ने इसका खयाल भी नहीं रखा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 23 जनवरी से 2 फरवरी की पुलिस रिमांड के दौरान उन्हें कुल 5 बार डाक्टर के पास ले जाया गया, लेकिन डाक्टर उनकी चोटें देखकर भी पुलिस के इशारे पर नाचते रहे। रिपोर्ट में शिवकुमार को दी जाने वाली यातना के लिए सीधे कुंडली थाने के दारोगा शमशेर सिंह को जिम्मेदार ठहराया गया है, साथ ही एसएचओ रवि और सीआईए सोनीपत के इंचार्ज रविंदर को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जहां शिवकुमार को गैरकानूनी हिरासत में रखा गया था।

शिवकुमार ने जब यातना की इस कहानी को अदालत में कहना चाहा, लेकिन उसे नहीं माना गया। उम्मीद है अब सरकार अपने ही अधिकारी द्वारा की गई इस जांच रिपोर्ट को नहीं नकारेगी। इसके साथ ही वह स्वीकार करेगी कि पुलिस विभाग हद दर्जे की सामंती और कॉरपोरेट मानसिकता के साथ कार्य करता है। उम्मीद यह भी है दोषियों को न सिर्फ दंड मिलेगा, बल्कि सरकारी महकमों को वर्णवादी मानसिकता से मुक्त करने का प्रयास भी किया जाएगा हालांकि इसकी उम्मीद कम है क्योंकि सरकार खुद इसी मानसिकता से कार्य करती है।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सीमा आजाद

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल से सम्बद्ध लेखिका सीमा आजाद जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकता हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में ‘ज़िंदांनामा’, ‘चांद तारों के बगैर एक दुनिया’ (जेल डायरी), ‘सरोगेट कन्ट्री’ (कहानी संग्रह), ‘औरत का सफर, जेल से जेल तक’ (कहानी संग्रह) शामिल हैं। संपति द्वैमासिक पत्रिका ‘दस्तक’ की संपादक हैं।

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