छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला का एक मामला प्रकाश में आया है। महिला एवं बाल विकास विभाग, छत्तीसगढ़ सरकार की देखरेख में विशेष दत्तक ग्रहण अभिकरण केंद्र में दो मासूम आदिवासी बच्चियों को बुरी तरह पीटे जाने व उन्हें उठाकर पटके जाने का वीडियो वायरल हुआ है। प्रतिज्ञा विकास संस्थान नामक एक एनजीओ के द्वारा संचालित केंद्र का यह वीडियो देख कर किसी का भी दिल दहल जाएगा।
वीडियो में मासूम बच्चियों के साथ हैवानियत व्यवहार करती दिख रही महिला एनजीओकर्मी का नाम सीमा द्विवेदी बताया जा रहा है। यह मामला तब सामने आया जब मारपीट का साोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ। यहां यह बताना जरूरी है कि कांकेर एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है और बताया जा रहा है कि जिन बच्चियों के साथ मारपीट हुई है, वे आदिवासी दलित बच्चियां हैं, जिनकी उम्र 3 वर्ष के आसपास है।
कांकेर की जिलाधिकारी डॉ. प्रियंका शुक्ला ने प्रतिज्ञा विकास संस्थान, विशेषीकृत दत्तक ग्रहण अभिकरण कांकेर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। उल्लेखनीय है कि उक्त अभिकरण के विरुद्ध शिकायत मिलने पर संचालनालय महिला एवं बाल विकास विभाग की टीम द्वारा गत 4 जून, 2023 को अभिकरण का औचक निरीक्षण किया गया। जांच में शिकायत की सत्यता की पुष्टि हुई। उक्त शिकायतों की पुष्टि के बाद जिलाधिकारी ने कांकेर में विशेषीकृत दत्तक ग्रहण अभिकरण का संचालन करने वाली संस्था प्रतिज्ञा विकास संस्थान दुर्ग का रजिस्ट्रेशन निरस्त करने हेतु संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग को अनुशंसा की है।
डॉ. प्रियंका शुक्ला के निर्देश पर बच्चों से मारपीट की आरोपी सीमा द्विवेदी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323, 75 किशोर न्याय (बालकों के देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 3(2) वी (क) अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत अपराध दर्ज कर लिया गया है। इसके बाद पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया है।
मामला यहीं तक रुका नहीं। बताया जा रहा है कि एनजीओ की ओर से कार्यरत सीमा द्विवेदी की पहले भी शिकायत हो चुकी हैं। लेकिन महिला बाल विकास विभाग के अधीन कांकेर में पदस्थापित जिला कार्यक्रम अधिकारी, जिसका नाम चंद्रशेखर मिश्रा है, उसके ऊपर आरोप लगाया जा रहा है कि उसने 50,000 रुपए रिश्वत लेकर मासूमों पर बेरहमी का लाइसेंस सीमा द्विवेदी को दे दिया। जब वीडियो वायरल हुआ तो चंद्रशेखर मिश्रा को विभाग द्वारा निलंबित कर दिया गया है।
बताते चलें कि दत्तक ग्रहण केंद्र में 0 से 6 साल तक के बच्चे रहते हैं। ये बच्चे या तो अनाथ होते हैं या फिर अपने माता-पिता से बिछड़े हुए। इन बच्चों की गतिविधियों की निगरानी हो सके, इसलिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं।
आदिवासी और दलित बहुल क्षेत्रों में स्थापित छात्रावास एवं इस तरह के केंद्रों में अत्याचार का होना कोई नई घटना नहीं है। प्रश्न उठता है कि आखिर आरोपी महिला को तीन साल की बच्चियों से क्या परेशानी थी कि उनके साथ इतनी बेरहमी से मारपीट की गई?
अक्सर यह देखा जाता है कि आदिवासी और दलित बच्चों की सुविधा हेतु सरकार का प्रयास अक्सर जातिवादियों के लिए वैमनस्य का कारण बनता है। सवर्ण जाति के लोग पिछड़ी जाति के बच्चों को ऊपर उठते नहीं देख सकते। इसीलिए वह किसी-न-किसी प्रकार से इन्हें प्रताड़ित करते रहते हैं। फिर चाहे बात इंद्र मेघवाल की हो या फिर मनीषा वाल्मीकि की, मामला सब जगह एक-सा है। अगर सीसीटीवी का वीडियो वायरल नहीं होता तो यह प्रताड़ना ना जाने कब तक चलती रहती। और न जाने कितने ऐसे केंद्रों के छात्रावासों में ऐसी प्रताड़ना चल रही होगी।
कहना अतिरेक नहीं कि इस प्रकार की घटना के पीछे कुछ और नहीं, बल्कि जातिवाद है, जो कि एक सवर्ण महिला को यह हिम्मत देता है कि वह शोषण करे। एनजीओं का अध्यक्ष विजय मिश्रा एवं संचालक महिला एवं बाल विकास दिव्या उमेश मिश्रा है। सवाल यह भी है कि इस तरह क्रूर आचरण करने का दुस्सासह सीमा जैसे लोगों को स्वजातियों के कारण मिलता है?
इन सवालों के जवाब के लिए पूरे मामले की जमीनी जांच किए जाने की आवश्यकता है। फिलहाल यह घटना इतना तो बताती ही है कि हमारे देश में जाति आधारित समुचित प्रतिनिधित्व की कितनी जरूरत है।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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