गत 2 अक्टूबर, 2023 को बिहार सरकार द्वारा जातिगत जनगणना सर्वेक्षण रिपोर्ट की पहली किश्त जारी कर दी गई। पहली किश्त में राज्य की विभिन्न जातियों की सूची, उनकी आबादी और प्रतिशत में उनकी हिस्सेदारी दी गई है। इस सूची में कुल 209 जातियां शामिल हैं। हालांकि जब सूबे में सर्वेक्षण का काम प्रारंभ किया गया था तब 215 जातियों की सूची जारी की गई थी। रपट में जातियों का वर्गीकरण नहीं किया गया है। हालांकि रपट से कुछ खास बातें स्पष्ट हो गई हैं। जैसे कि राज्य में सबसे बड़ा जाति समूह अति पिछड़ा वर्ग है, जिसकी कुल हिस्सेदारी 36.01 प्रतिशत है। दूसरा सबसे बड़ा समूह पिछड़ा वर्ग है, जिसकी हिस्सेदारी 27.12 प्रतिशत है। इस प्रकार पिछड़ा वर्ग (संयुक्त रूप से) की कुल आबादी 63.13 प्रतिशत है। इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी, वहीं अनारक्षित यानी सवर्ण वर्ग (अशराफ मुसलमान सहित) की आबादी 15.52 फीसदी है। जातीय गणना सर्वे में कुल 13,07,25,310 लोग शामिल हुए।
यदि हम पिछड़ा वर्ग की आबादी पर गौर करें तो यह आंकड़ा पूर्व के आकलनों से इतर नहीं है। बिहार के जानेमाने समाजशास्त्रीय अध्येता प्रसन्न कुमार चौधरी के मुताबिक राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ा वस्तुत: 1931 में हुए अंतिम राष्ट्रीय स्तरीय जातिगत जनगणना के आंकड़ों के समान ही हैं। उनका तर्क है कि पहले बिहार और उड़ीसा विभाजन (1936 में) और वर्ष 2000 में झारखंड के अलग होने के बाद कुछ जातियों की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
सबसे बड़ी आबादी वाली तीन जातियां
जाति | आबादी | हिस्सेदारी |
---|---|---|
यादव | 18650119 | 14.266 प्रतिशत |
पासवान (धारी, धरही सहित) | 6943000 | 5.3111 प्रतिशत |
चमार | 6869664 | 5.2550 प्रतिशत |
सनद रहे कि 1950 के दशक में डॉ. राममनोहर लोहिया ने नारा दिया था– “संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावें सौ में साठ”। प्रसन्न कुमार चौधरी के अनुसार, डॉ. लोहिया ने 1931 के आंकड़ों को ध्यान में रखकर ही पिछड़ों को साठ प्रतिशत हिस्सेदारी देने की मांग की थी। इसकी रूपरेखा काका कालेलकर आयोग की रपट में भी थी, जिसे लागू ही नहीं किया गया।
पिछड़ा वर्ग
जाति | आबादी | हिस्सेदारी |
---|---|---|
यादव | 18650119 | 14.266 प्रतिशत |
कोईरी | 5506113 | 4.2120 प्रतिशत |
कुर्मी | 3762969 | 2.8785 प्रतिश्त |
बनिया | 3026912 | 2.3155 प्रतिशत |
डॉ. लोहिया के बाद 1960 के उत्तरार्द्ध में शोषित दल के संस्थापक जगदेव प्रसाद ने जब ‘सौ में नब्बे शोषित हैं’ का नारा दिया तब इसके पीछे का जातिगत अंकगणित केवल पिछड़ा वर्ग तक सीमित नहीं था। प्रसन्न कुमार चौधरी के मुताबिक संयुक्त बिहार (जब झारखंड पृथक राज्य नहीं था) में पिछड़ों में यादव, कोईरी, कुर्मी और बनिया की आबादी कुल मिलाकर 19 प्रतिशत थी। वहीं अतिपिछड़ा वर्ग की आबादी 32 प्रतिशत। इस प्रकार तब बिहार में पिछड़ा वर्ग की कुल आबादी करीब 51 प्रतिशत था। यही आंकड़ा बीपी मंडल कमीशन की रिपोर्ट में भी आया जब आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी की कुल आबादी 52 प्रतिशत अनुमानित किया। जगदेव प्रसाद के आंकड़े में तब करीब 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 9 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति भी शामिल थे। इसके अलावा जगदेव प्रसाद ने मुसलमानों को भी शोषितों में शामिल किया था, जो अब सरकार की रपट के अनुसार 17.70 प्रतिशत हैं।
बिहार में विभिन्न धर्मावलंबी
धर्म | आबादी | हिस्सेदारी |
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हिंदू | 107182958 | 81.9986 प्रतिशत |
इस्लाम | 23149925 | 17.7088 प्रतिशत |
ईसाई | 75238 | 0.0576 प्रतिश्त |
सिख | 14753 | 0.0113 प्रतिशत |
बौद्ध | 111201 | 0.085 प्रतिशत |
जैन | 12523 | 0.0096 प्रतिशत |
अन्य | 166566 | 0.1274 प्रतिशत |
कोई धर्म नहीं | 2146 | 0.0016 प्रतिशत |
वंचितों की हिस्सेदारी काे लेकर कांशीराम ने 85 फीसदी बनाम 15 फीसदी की बात कही। उनका यह जातिगत गणित भी यथार्थपूर्ण था। हालांकि इसमें उन्होंने ऊंची जाति के मुसलमानों को शामिल नहीं किया था। इस संबंध में प्रसिद्ध दलित समालोचक कंवल भारती कहते हैं कि कांशीराम ने जब बामसेफ का गठन किया था तब वे मजलूम और पीड़ित मुसलमानों की बात करते थे तथा उनके आंदोलन में अंसारी व अन्य पिछड़े मुसलमान ही शामिल होते थे। भारती बताते हैं कि चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु ने अपनी किताब ‘भारत की आदिनिवासियों की सभ्यता’ में 80 प्रतिशत वंचितों की बात कही थी। उनका आशय उन समुदायों से था, जिन्हें आर्यों ने गुलाम बनाया था। इनमें बौद्ध, सिख, जैन शामिल थे। लेकिन उन्होंने मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं किया था।
अनुसूचित जातियों की आबादी में हिस्सेदारी
जाति | आंकड़ा | हिस्सेदारी (प्रतिशत में) |
---|---|---|
चौपाल | 748059 | 0.572 |
धोबी | 1096158 | 0.8385 |
नट | 105358 | 0.0806 |
नामशुद्र | 30501 | 0.0233 |
पासी | 1288031 | 0.9853 |
भूइया | 1174460 | 0.8984 |
भंगी/मेहतर | 255582 | 0.1955 |
चमार | 6869664 | 5.255 |
दुसाध | 6943000 | 5.3111 |
मुसहर | 4035787 | 3.087 |
बौरी | 3250 | 0.0025 |
बंतार | 187951 | 0.1438 |
डोम/धनगड़/बांसफोड़/धारीकर/धरकर/डोमरा | 263512 | 0.2016 |
दबगर | 7756 | 0.0059 |
तुरी | 67616 | 0.0517 |
कंजर | 7401 | 0.0057 |
भोक्ता | 22513 | 0.0172 |
घासी | 1462 | 0.0011 |
हलालखोर | 7611 | 0.0058 |
लालबेगी | 2720 | 0.0021 |
पान, सवासी, पानर | 2228343 | 1.7046 |
रजवार | 358256 | 0.2741 |
सवर्ण जातियां (अशराफ मुसलमान सहित)
जाति | आबादी | हिस्सेदारी |
---|---|---|
शेख | 4995897 | 3.82 प्रतिशत |
ब्राह्मण | 4781280 | 3.65 प्रतिशत |
राजपूत | 4510733 | 3.45 प्रतिशत |
भूमिहार | 3750886 | 2.86 प्रतिशत |
पठान | 986665 | 0.75 प्रतिशत |
कायस्थ | 785771 | 0.60 प्रतिशत |
सैयद | 297975 | 0.22 प्रतिशत |
बहरहाल, बिहार सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट एक तरफ यह तस्दीक करती है कि वंचितों की वंचना का ऐतिहासिक संदर्भ रहा है और दूसरी ओर दलित-बहुजनों की शासन-प्रशासन में भागीदारी की मांग की वैधता पर मुहर लगाती है। साथ ही, यह रिपोर्ट जातिप्रथा के आधार पर राजनीति और शासन-प्रशासन में भागीदारी के मामले में एकाधिकार को खारिज करती है। जाहिर तौर पर इससे एक नया रास्ता खुलेगा, जिसके जरिए भारत जातिविहीन समाज की ओर बढ़ेगा, जो कि दलित-बहुजन नायकों का सपना था।
(संपादन : राजन/अनिल)
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