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चिरस्थायी शांति

मेहरबानी करके ईसा मसीह को देखें, उनके पतित अनुयायियों को नहीं। यह बिलकुल सही है कि कुछ पथभ्रष्ट मिशनरियों ने, उनके नेक इरादों के बावजूद, ईसाई धर्म अपनाने वालों पर अपनी संस्कृति लादी। मगर हमारा निर्माता ईश्वर किसी संस्कृति या भाषा का पक्षपाती नहीं है। बता रही हैं डॉ सिल्विया कोस्का

हम एक अंधकारमय दौर में जी रहे हैं। ऐसा लगता है कि हमारी दुनिया में बुराई का बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है। हम कोविड महामारी से मुक्त हुए ही थे कि रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध छिड़ गया। दुनिया के अन्य क्षेत्रों में भी छोटे पैमाने पर हिंसक टकराव हो रहे हैं। प्राकृतिक विपदाएं भी बढ़ रही हैं। दुनिया के कई इलाके भूकंप, बाढ़, सूखा, तूफ़ान और जंगलों में लगी आग से पीड़ित हैं। मनुष्य अकल्पनीय कष्ट भोग रहा है।   

इस समय पूरी दुनिया में विस्थापितों की संख्या करीब 7.1 करोड़ है। इनमें से 2.6 करोड़ शरणार्थी हैं, जिन्हें अपना देश छोड़ कर किसी अन्य देश में शरण लेनी पड़ी है। दुनिया के शरणार्थियों में से करीब आधे 18 साल से कम उम्र के बच्चे हैं। शरणार्थियों में से 60 प्रतिशत से अधिक शहरों में रहते हैं और एक-तिहाई से कुछ कम कैंपों में। दुनिया की कुल आबादी की लगभग 3.5 प्रतिशत आबादी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्थापित हैं।  

अपने घर में चैन की बंसी बजाते हुए हमारे लिए यह अहसास करना मुश्किल है कि युद्धों और आपदाओं ने किस तरह की तबाही मचाई है। हम विस्थापितों की जगह स्वयं को रख कर सोचें। उन पर क्या गुज़रती होगी जब उन्हें उनके प्रियजनों, उनके घर, उनके देश, उनकी भाषा और संस्कृति से जुदा होकर शरणार्थी शिविरों में परेशानियों से भरा जीवन जीना पड़ता होगा, या किसी सुदूर और अनजान मंजिल की ओर कूच करना होता होगा। हम देख रहे हैं कि कई देशों में तानाशाह सरकारें सत्ता में आ रही हैं और लोकतंत्र खतरे में हैं। हमारी अपनी जिंदगी में हमें बीमारी, मौत और बच्चों का हमारे खिलाफ विद्रोह का सामना करना पड़ता है। हमारी नौकरियां चली जाती हैं और हमें आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया एक तरह के पागलपन की गिरफ्त में हैं। हम इन सबको कैसे समझें? 

हम एक बार फिर क्रिसमस मना रहे हैं। हम उसके जन्म का उत्सव मना रहे हैं, जो यह दावा करता था कि वही हमारा निर्माता ईश्वर है। बाइबिल कहती हैं कि ईश्वर न तो कभी ऊंघता है और ना ही सोता है। वह हमेशा ख़बरदार रहता है। मगर फिर क्या कारण है कि बहुत से भले कामों के साथ-साथ, वह बुरे और गलत काम भी होने देता है? अंग्रेज़ धर्मोपदेशक चार्ल्स स्पर्जन लिखते हैं– “वेदना की रात, प्रेम के खुदा की मर्ज़ी और नियंत्रण में उतनी ही होती है, जितने कि गर्मी के उजास भरे दिन, जब सब कुछ भला और खुशनुमा होता है। तूफ़ान में भी ईसा होते हैं। वे रात को एक लबादे की तरह अपने आसपास लपेट लेते हैं मगर अपने विश्वासियों की आंखों से वे छुप नहीं पाते। रात की पहली पहर से लेकर पौ फटने तक हमेशा सजग रहनेवाला यह पहरेदार, अपने विश्वासियों की देखभाल करता है और अपने लोगों की भलाई के लिए अर्द्धरात्रि की छाया और ठंडी ओस तक को उनसे दूर रखता है। हम लोग अच्छाई और बुराई के प्रतिद्वंदी देवों के एक-दूसरे पर विजय हासिल करने के संघर्ष में विश्वास नहीं करते। हम ईश्वर को यह कहते सुन सकते हैं कि ‘मैं ही एकमात्र परमेश्वर हूं। मैंने प्रकाश को बनाया और मैंने ही अंधकार को रचा … मैं ही यह सब परिघटनाएं करता हूं।’ (यशायाह 45: 6-7) उदास मौसम का भी दैवीय उद्देश्य होता है।” 

चाहे हमें इसका उद्देश्य समझ में न आए, मगर हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि जो हमें बेमतलब की पीड़ा प्रतीत हो रही है, वह भी अपने उद्देश्यों को पूरा करने का ईश्वर का तरीका है।  

सन् 1996 में एक इतवार की सुबह मैं इजराइल के तेल अवीव के एक चर्च में थी। वहां यहूदी और फिलिस्तीनी, दोनों पृष्ठभूमियों के अनुयायी एक साथ ईसा मसीह की वंदना कर रहे थे। वे एक-दूसरे के प्रति प्रेम और बंधुता भाव रखते थे। ईश्वर ने उन्हें क्षमा करना और प्रेम करना सिखाया था और इसी कारण वे पीढ़ियों से चले आ रहे टकराव और नफरत को परे रखकर, एक-दूसरे से प्रेम कर पा रहे थी। आज 2023 में भी मेरी यह दृढ मान्यता है कि स्थाई शांति के लिए वही एकमात्र आशा है। मगर यह तभी हो सकेगा जब उसके अनुयायी सच्चे अर्थों में उसके आदेशों का पालन करें।

पिछले साल क्रिसमस पर प्रकाशित मेरे लेख, ‘क्रिसमस : सभी प्रकार के दमन के प्रतिकार का उत्सव’ पर एक पाठक ने टिप्पणी की थी। उनसे मैं कहना चाहती हूं कि मेहरबानी करके ईसा मसीह को देखें, उसके पतित अनुयायियों को नहीं। यह बिलकुल सही है कि कुछ पथभ्रष्ट मिशनरियों, भले ही उनके इरादे नेक रहे हों, ने ईसाई धर्म अपनाने वालों पर अपनी संस्कृति लादी। मगर हमारा निर्माता ईश्वर किसी संस्कृति या भाषा का पक्षपाती नहीं है। वह हिंदी उतने ही अच्छे से समझता है, जितने अच्छे से उसे हिब्रू, अरबी, फ्रेंच या अंग्रेजी समझ आती है।

वह अफ्रीका में एक झोपड़े में बने चर्च से की गई प्रार्थना को भी उतनी ही शिद्दत से स्वीकार करता है, जितनी ख़ुशी से वो रोम के भव्य कैथेड्रल की प्रार्थना को कबूल करता है। मिशनरीज ने गलतियां की तो भला भी किया। इंडोनेशिया में ईसा का भक्त बनने के बाद मानवभक्षी कबीलों ने एक-दूसरे को खाना बंद कर दिया। भारत में मिशनरी विलियम कैरी के प्रयासों से सती प्रथा का उन्मूलन हुआ। यह एक बड़ा विषय है, जिस पर चर्चा फिर कभी। कुल मिलकर बात यह है कि चर्च परिपूर्ण लोगों के लिए नहीं है, बल्कि वह मेरे और आपके टूटे-बिखरे हुए लोगों के लिए है।  

प्रिय पाठकों, 2024 शुरू होने वाला है और मैं आप सबको शुभकामनाएं देती हूं कि ईसा मसीह आपको प्रेम, आनंद और शांति से परिपूर्ण करें।                  

(मूल अंग्रेजी से अनुवाद : अमरीश, संपादन : नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

डा. सिल्विया कोस्का

डा. सिल्विया कोस्का सेवानिव‍ृत्त प्लास्टिक सर्जन व फारवर्ड प्रेस की सह-संस्थापिका हैं

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