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देश में सामाजिक न्याय का थर्मामीटर है जातिगत जनगणना : नाना पटोले

मुट्ठी भर लोग आज तक पिछड़े समाज को पीछे करते आ रहे हैं और वे आगे भी करते रहेंगे। लेकिन जिस दिन सामाजिक न्याय के आधार पर जातिगत जनगणना का आंकड़ा सामने आ जाय तो यह सवाल और मजबूती से उठेगा। पढ़ें, महाराष्ट्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष नानाभाऊ पटोले से यह बातचीत

[नानाभाऊ पटोले महाराष्ट्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। इससे इतर उनकी पहचान ओबीसी के लिए संघर्षरत रहनेवाले वाले सामाजिक कार्यकर्ता की रही है। उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्रित्व काल में विधानसभा अध्यक्ष रहे नानाभाऊ पटोले ने देश में जातिगत जनगणना और विभिन्न राजनीतिक सवालों के संदर्भ में बातचीत की।]

जातिगत जनगणना को लेकर आज पूरे देश में चर्चा है। आपकी अपनी राय क्या है?

देखिए, जातिगत जनगणना का सवाल इस देश के तमाम पिछड़े लोगों को न्याय की प्रक्रिया में लाने का तरीका है, जो संवैधानिक व्यवस्था में लिखा गया है। जिस दिन हमने देश में संविधान को स्वीकृत किया, और उसमें ‘हम भारत के लोग’ का उल्लेख किया तो मतलब साफ था कि इस देश के सभी लोगों को न्याय की प्रक्रिया में शामिल किया जाय और सभी बराबर के हिस्सेदार हों। यह भूमिका संविधान में दी गई है। लेकिन इसका थर्मामीटर क्या रहेगा? जाहिर तौर पर इसका थर्मामीटर तो जातिगत जनगणना ही है। वजह यह कि इसके तहत सामाजिक, आर्थिक और शिक्षा के सतर पर सर्वे किया जाता है। जो सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से समृद्ध है, वह शक्तिशाली समाज है। लेकिन मुट्ठी भर लोग आज तक पिछड़े समाज को पीछे करते आ रहे हैं और वे आगे भी करते रहेंगे। लेकिन जिस दिन सामाजिक न्याय के आधार पर जातिगत जनगणना का आंकड़ा सामने आ जाय तो यह सवाल और मजबूती से उठेगा, क्योंकि इस देश में 1931 के बाद से जातिगत जनगणना कराई ही नहीं गई। हमारे देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की गणना होती है, लेकन अन्यों की गणना नहीं की जाती है। तो इस देश में गरीब कौन है, यह पता ही नहीं चल रहा। हमारे यहां अमीरों का श्रेणीकरण किया जाता है कि आज देश में कितने अमीर हैं और कौन विश्व में कितना अमीर हुआ है, लेकिन गरीबों का श्रेणीकरण कहां है। इसका एक ही रास्ता है और वह जातिगत जनगणना कराना है। 

यह देखा जा रहा है कि देश में जातिगत जनगणना का सवाल मुखर होकर सामने आ रहा है और दूसरी तरफ भाजपा हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है। इस संबंध में आप क्या कहेंगे?

देखिए, प्रधानमंत्री इस देश में केवल दो जातियों की बात करते हैं – एक अमीर और दूसरा गरीब – और वे देश को धार्मिक भावनाओं के आधार पर तोड़ना चाहते हैं। तो यह उनकी प्राथमिकता है। वह अपनी प्राथमिकता को महत्व दे रहे हैं और हमारी प्राथमिकता सामाजिक न्याय है और हम अपनी प्राथमिकता को अमल में ला रहे हैं। देश में सभी लोगों को न्याय मिले, यही कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकता है।

अभी जिस तरह से बिहार में नीतीश कुमार ने पाला बदल लिया है तो इस संबंध में आप क्या कहेंगे?

देखिए, यह सब चलता रहेगा। जबतक इनके पास ईडी और सीबीआई जैसे कार्यकर्ता हैं, यह सब चलता रहेगा। लेकिन यह याद रखा जाना चाहिए तानाशाही और अहंकारी राजनीति को हिंदुस्तान ने कभी स्वीकार नहीं किया। 

नानाभाऊ पटोले

तो आपको क्या लगता है कि नीतीश कुमार के पाला बदलने से ‘इंडिया’ गठबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा? 

कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यहां तक कि बिहार में भी जो वोट नीतीश कुमार को मिलते थे, वे भी अब लालू प्रसाद और कांग्रेस को मिलेगा। 

एक सवाल मराठा आरक्षण को लेकर है। जिस तरह से एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठों को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण देने का निर्णय लिया है, उसके बारे में आप क्या कहेंगे?

वह तो सरकार ने फंसाया है। उसने ओबीसी और मराठों दोनों को फंसाया है। सरकार वास्तविकता सामने नहीं ला रही है। एक तरफ वह कह रहे थे कि ओबीसी कोटे के तहत मराठों को आरक्षण नहीं देंगे और अब मराठों को जो आरक्षण दे रहे हैं तो किस कोटे के तहत दे रहे हैं, यह तो उन्हें बताना चाहिए। यह तो फंसाने वाली बात हो गई। 

तो क्या आप इसे लेकर कोई आंदोलन करेंगे?

देखिए, यह कोई आंदोलन का मुद्दा नहीं है। यह भाजपा का ट्रैप है, क्योंकि वह चाहती है कि महंगाई पर चर्चा न हो, बेरोजगारी और किसानों के ऊपर चर्चा न हो, गरीबों के ऊपर चर्चा न हो तो इसके लिए वह इस तरह के जाल बुनती है और अब वह खुद के जाल में फंस रही है तो हमें क्या तकलीफ है। 

क्या आपको लगता है कि इंडिया गठबंधन जातिगत जनगणना के सवाल पर आगे बढ़ता रहेगा?

बिल्कुल, हमारी पार्टी पहले ही अपने अधिवेशन में इस बारे में प्रस्ताव पारित कर चुकी है। हमारे नेता राहुल गांधी इसे देश के विभिन्न राज्यों में उठा भी रहे हैं। राहुल जी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जब हमारी सरकार थी, हम नहीं कर पाए तो वह हमारी गलती थी, लेकिन हम अपनी गलती सुधारना चाहते हैं, तभी इस देश में सामाजिक न्याय स्थापित हो सकेगा।

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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