हम पढ़ेंगे लिखेंगे, हम पढ़ेंगे
जब पढ़ेंगे लिखेंगे, हम बढ़ेंगे
मेरी क़िस्मत के द्वार खुद खुल जाएंगे, हम जब पढ़ेंगे।
हम पढ़ेंगे तो डॉक्टर बन पाएंगे
अच्छे अच्छे हॉस्पिटल बनवाएंगे
दुखियों के सारे दुख मिट जाएंगे, जब हम पढ़ेंगे।
हम पढ़ेंगे तो वैज्ञानिक बन पाएंगे
हम जब पढ़ेंगे तो शासन चलाएंगे
अऩहोनी को होनी कर दिखाएंगे
जीवन की राह सुगम कर पाएंगे
खुद पढ़ेंगे तो बच्चों को पढ़ाएंगे
बेटा-बेटी में फर्क़ न कर पाएंगे
ऊंच-नीच के भेद सारे मिट जाएंगे, जब हम पढ़ेंगे।
देश में शिक्षा की ज्योंति जलाएंगे
घर घर ज्ञान की अलख जगाएंगे, जब हम पढ़ेंगे।
यह उस जागरुकता गीत के बोल हैं, जिसे बिहार के कटिहार में एक स्कूली बच्चे द्वारा स्कूल की कक्षा में गाये जाने का वीडियो वायरल हुआ है। इस जागरुकता गीत को झारखंड के पलामू जिले के रेहला गांव की निवासी और दलित-बहुजन समाज (चमार जाति) की सीमा भारती ने लिखा है। इसकी तर्ज हाल ही में स्वाति मिश्रा द्वारा गाये गये राम भजन पर आधारित है। सीमा भारती ने अपनी आवाज़ में इस गीत को गाकर बीते 20 जनवरी, 2024 को फेसबुक पर अपलोड किया था।
बताते चलें कि 1980-90 के दशक के मशहूर भजन गायक श्याम सुंदर शर्मा (पालम वाले) ने अपने देवता खाटू श्याम के लिए एक भजन लिखा था, जिसके बोल थे– ‘मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे, श्याम आएंगे…. । बाद में यही गीत प्रेम भूषण के चैनल पर फेरबदल (श्याम की जगह राम) करके गाया गया।इसके बाद स्वाति मिश्रा ने वह भजन गाया, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था।
कवयित्री व लोक गायिका सीमा भारती कहती हैं कि मेरे लिए यह खुशी की बात है कि बच्चे ने इस गीत को गाया। इसे एक नहीं, अऩेकानेक बच्चे गायें और उसी राह पर चलें। यही मेरी दिली इच्छा है और यही सोचकर तो मैंने यह लिखा था। पढ़ें सीमा भारती का सुशील मानव द्वारा दूरभाष पर किए गए साक्षात्कार का संपादित अंश।
एक भाववादी भजन की धुन पर भौतिकवादी जागरुकता गीत लिखने के पीछे आपकी क्या सोच थी?
देखिए, जिस गीत को स्वाति मिश्रा ने अपनी आवाज दी, उसकी तर्ज अच्छी लगी। वैसे भी जब कोई नया धुन आता है तो लोग ज़्यादा आकर्षित होते हैं। एक दिन मैं भी हारमोनियम लेकर बैठ गई और सोचा कि क्यों न इस धुन का इस्तेमाल जागरुकता और शिक्षाप्रद उद्देश्य के लिए किया जाए। इसे सुनकर बच्चे आकर्षित होंगे और उस राह पर चलने की कोशिश करेंगे। यही मक़सद था।
सीमा जी, कृपया अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताइये।
मेरा जन्म बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। मेरे पिता जी सरकारी शिक्षक थे। पिछले साल नवंबर में उनका निधन हो गया। माताजी का भी साल 2022 में निधन हो गया। वह गृहिणी थीं। मैंने बीए तक की पढ़ाई की है। मैंने प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर का छह वर्षीय कोर्स भी किया है। शादी और बच्चे हो गये तो आगे कुछ कर नहीं पाई। मेरे पति सरकारी शिक्षक हैं। मेरे तीन बच्चे हैं। बड़ी बेटी रिम्स, रांची में एमबीबीएस कर रही है। बड़ा बेटा रांची में रहकर कंप्यूटर साइंस से बीटेक कर रहा है और छोटा बेटा आईआईटी, गुवाहाटी से कंप्यूटर साइंस से बीटेक कर रहा है।
अच्छा, यदि गाने की बात कहूं तो आप किस तरह के गीत गाना पसंद करती हैं?
वैसे तो मैं लोकगीत – जिनमें विवाह गीत शामिल हैं – गाती रही हूं। पर मुख्य तौर पर मिशन (फुले-आंबेडकरवादी) गीत और शिक्षाप्रद जागरुकता गीत ही गाती हूं, जिन्हें मैं खुद ही लिखती भी हूं। जागरुकता गीत दलित बहुजन-समाज के लिए काम करने वाले जोतीराव फुले, सावित्रीबाई फुले, पेरियार और बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर आदि को केंद्र में रखकर गीत लिखती व गाती हूं। मैंने दूरदर्शन में भी लोकगीतों पर प्रोग्राम किया है।
एक बात यह भी कि मेरा प्रयास हमारे दलित-बहुजन नायक-नायिकाओं के योगदानों को गीतों के जरिए जन-जन तक ले जाना है। घर-परिवार से, समाज से, रोज़गार से, जाति से, बिरादरी-समाज में किसी भी बात को लेकर कभी-कभी हम विचलित हो जाते हैं। लेकिन जब महापुरुषों की जीवनी पढ़ते -सुनते हैं तो उससे एक राह मिलती है। उनके जीवन वृतांतों को देखकर-सुनकर उनकी राह पर चलें, जिनके साथ बहुत सारी परेशानियां आईं, लेकिन उन सभी ने परिस्थितयों को झेलते हुए तमाम बाधाएं पार की। तभी तो आज हम उनका अनुसरण कर रहे हैं। बच्चे उनसे सीख लें और अच्छी राह पर चलें।
कभी संगीत शिक्षिका बनने का ख्याल नहीं आया आपको?
नहीं। शादी के बाद मेरी ज़िंदग़ी बहुत अस्त-व्यस्त रही। शारीरिक और मानसिक रूप से ज़्यादा कष्टमय जीवन रहा है। बच्चे छोटे-छोटे थे तो पूरा फोकस परिवार और बच्चों पर रहा। संगीत प्रभाकर का कोर्स करने के बाद दो बार कंपीटिशन परीक्षा में बैठी हूं। किताबों से मेरा मन कभी नहीं हटा। झारखंड में संगीत शिक्षक की भर्ती जल्दी नहीं निकलती। बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की परीक्षा में भी मैं शामिल हुई, लेकिन अब नियमों में संशोधन के चलते मुझे छांट दिया गया। लेकिन कोई अफ़सोस नहीं है। अगर मेरा फोकस अपना कैरियर बनाने पर रहता तो मेरे बच्चे इतना अच्छा नहीं कर पाते। अब बच्चों का कैरियर बन गया तब अपने गीत-संगीत को समय दे रही हूं। सोचा कि अब कुछ करते हैं। “हुआ सबेर जागो मज़दूर किसानवा, पूरा करो बाबा साहेब के सपनवा।”
इन दिनों देखा जा रहा है कि अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में गीत-संगीत का बाजार बढ़ा है। क्या आपको गाने के प्रस्ताव मिले हैं,?
हां, भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से चार-पांच प्रस्ताव मिले हैं। लेकिन मुझे लगता है कि जिस तरह के अश्लील गीत वहां गाये जाते हैं, मैं उस तरह के गीत नहीं गा सकूंगी। इसीलिए मैंने उन प्रस्तावों को नज़रअंजाज़ कर दिया। मुझे इस तरह से अपना कैरियर नहीं बनाना है। मैं जो भी काम करूंगी, अपने विचारों के आधार पर करूंगी। अपने समाज और परिवार के प्रति मेरे सरोकार हैं। इसलिए पूरा फोकस अभी मिशन गीतों और दहेज विरोधी गीतों पर है।
क्या आप मानती हैं कि गीत-संगीत से समाज में बदलाव लाया जा सकता है?
एकदम लाया जा सकता है। ताजा उदाहरण मेरा वायरल गीत है। मेरे गीतों को जब बच्चे गाते हैं तो वे सिर्फ़ गीत ही नहीं गाते, बल्कि उसमें निहित भाव भी वे अपने भीतर उतारते हैं। मात्र डेढ़ मिनट के गीत से कितने लोग प्रभावित हुए हैं। वे समझ रहे हैं कि राम के आने से किस्मत के भाग्य नहीं खुलेंगे बल्कि पढ़ने से क़िस्मत के द्वार खुद खुल जाएंगे।
(संपादन : नवल/अनिल)