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यूपी : नगीना लोकसभा सीट आख़िर क्यों है इतनी ख़ास?

इस सीट का महत्व इस बात से समझिए कि इस सीट पर उम्मीदवारी की लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, बसपा नेता आकाश आनंद समेत कई और बड़े नामों पर चर्चा हुई। ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ से आज़ाद समाज पार्टी नेता चंद्रशेखर आज़ाद तक के चुनाव लड़ने की चर्चा छिड़ी। पढ़ें, सैयद जै़गम मुर्तजा की रपट

उत्तर प्रदेश में दलित-बहुजन राजनीति की दिशा और दशा जाननी है तो एक बार नगीना लोकसभा क्षेत्र ज़रुर घूम आना चाहिए। नगीना अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित उत्तर प्रदेश की 17 सीटों में से एक है। लेकिन इस सीट का जातीय समीकरण ऐसा है कि राज्य में विपक्षी दलों की सबसे मज़बूत उम्मीदें इसी सीट से हैं। लेकिन हालात ऐसे हैं कि विपक्षी दलों के उम्मीदवारों की अत्यधिक उम्मीदें भाजपा के लिए साज़गार (मन-मुताबिक) साबित हो सकती हैं।

नगीना सीट का महत्व इस बात से समझिए कि इस सीट पर उम्मीदवारी की लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, बसपा नेता आकाश आनंद समेत कई और बड़े नामों पर चर्चा हुई। ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ से आज़ाद समाज पार्टी नेता चंद्रशेखर आज़ाद तक के चुनाव लड़ने की चर्चा छिड़ी। आख़िर में भाजपा और समाजवादी पार्टी ने स्थानीय उम्मीदवारों पर दांव लगाया तो लगा कि इन चर्चाओं पर अब विराम लग चुका है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद आज़ाद समाज पार्टी कार्यकर्ताओं ने अखिलेश यादव के ख़िलाफ मोर्चा खोल दिया। 

ऐसे में सवाल यह है कि नगीना में ऐसा क्या है कि हर कोई वहां से चुनाव लड़ना चाहता है? इस सवाल का जवाब इस सीट पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या में छिपा है। नगीना बिजनौर ज़िले का क़स्बा है। 2009 में नए परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई। इससे पहले नगीना विधानसभा सीट बिजनौर लोकसभा सीट का हिस्सा थी। नई सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए। इनमें नगीना के अलावा नजीबाबाद, धामपुर, नहटौर और नूरपुर शामिल हैं। परिसीमन में ज़िले की दूसरी सीट बिजनौर में सदर और चांदपुर विधान सभा सीट के अलावा मुज़फ्फरनगर की पुरक़ाज़ी और मीरापुर शामिल की गईं। इसके अलावा मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट भी बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में शामिल हैं।

चंद्रशेखर आजाद

इस लिहाज़ से नगीना बिजनौर ज़िले की प्रमुख सीट है। वर्ष 2009 के परिसीमन में बिजनौर को आरक्षित श्रेणी से हटाकर सामान्य कर दिया गया जबकि नवसृजित नगीना को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। मौजूदा समय में नगीना सीट पर मतदाताओं की संख्या पंद्रह लाख के क़रीब है। इनमें 50 फीसदी से ज़्यादा मुसलमान मतदाता हैं। इस वजह से परिसीमन को लेकर भी तमाम तरह के विवाद हुए। अल्पसंख्यक समूहों का आरोप था कि इस सीट का सृजन ही मुसलमान मतदाताओं को दो हिस्सों में बांटने और इन मतदाताओं की बड़ी तादाद को आरक्षित सीट में बांध देने की साज़िश की गई। बहरहाल वह एक अलग मुद्दा है।

मौजूदा दौर में अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं की संख्या इस सीट पर तक़रीबन 70 फीसदी है। इस लिहाज़ से यह भाजपा विरोधी राजनीति करने वाले दलित-बहुजन नेताओं के लिए सर्वाधिक सुरक्षित सीट मानी जाती है। पिछले चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी और बसपा गठबंधन के उम्मीदवार गिरीश चंद्र की जीत हुई थी।

ज़ाहिर है मुसलमान मतदाताओं के बूते जीत की उम्मीद में तमाम दलों के बड़े दलित चेहरों की निगाह नगीना सीट पर थी। समाजवादी पार्टी से गठबंधन के तहत सीटें अंतिम रूप से तय होने तक इस सीट से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा थी। अगर ऐसा होता तो पश्चिम यूपी में कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने में मदद मिलती। लेकिन गठबंधन में यह सीट समाजवादी पार्टी के पास चली गई तो इस चर्चा ने दम तोड़ दिया। हालांकि निजी बातचीत में समाजवादी पार्टी के नेता स्वीकार करते रहे कि खड़गे इस सीट से लडने का मन बनाएं तो सीट छोड़ दी जाएगी। लेकिन खड़गे भाजपा द्वारा शासित प्रदेश से चुनाव लड़ने की हिम्मत शायद नहीं जुटा पाए।

इसके बाद अफवाह उड़ी कि आज़ाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आज़ाद यहां से ‘इंडिया’ गठबंधन के उम्मीदवार होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां से समाजवादी पार्टी ने पूर्व जज मनोज कुमार को टिकट दे दिया। वहीं भाजपा नहटौर सीट से तीन बार के विधायक ओम कुमार को पहले ही उम्मीदवार बना चुकी है। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मनोज कुमार बिजनौर में ही अपर न्यायिक जज रह चुके हैं। उन्होंने सितंबर 2023 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। मज़ेदार बात यह है कि जिस वक़्त मनोज कुमार के नाम का ऐलान हुआ, उस वक़्त चंद्रशेखर आज़ाद नगीना में अपने समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे।

चंद्रशेखर समर्थकों ने इसके बाद सोशल मीडिया पर काफी बवाल काटा। हालांकि समाजवादी पार्टी नेताओं का साफ कहना है चंद्रशेखर ने न उनकी पार्टी से टिकट मांगा और न आज़ाद समाज पार्टी से गठबंधन की कोई चर्चा हुई। चंद्रशेखर जयंत चौधरी की पैरवी पर बहुत पहले अखिलेश यादव से मिले ज़रुर थे, मगर जयंत ख़ुद ही भाजपा के साथ चले गए। दरअसल राष्ट्रीय लोकदल के साथ खतौली उपचुनाव के दौरान चंद्रशेखर की कैमिस्ट्री बनी थी। लेकिन अब पैरोकार ही गठबंधन से बाहर है तो टिकट भला कौन दिलाए। इस बीच बिना बात किए, बिना किसी से मिले चंद्रशेखर ने ख़ुद को नगीना से उम्मीदवार घोषित कर दिया।

इधर बसपा से निवर्तमान सांसद गिरीश चंद्र के टिकट को लेकर स्थिति साफ नहीं है। इस सीट पर बसपा नेता आकाश आनंद के चुनाव लड़ने की भी चर्चा थी। कुल मिलाकर हालात ऐसे हैं कि हर दलित नेता को नगीना से टिकट चाहिए। इसकी वजह यक़ीनन अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या है। हर पार्टी का दावा है कि मुसलमान वोटर उसको मिलेंगे, लेकिन कोई यह बता पाने कि स्थिति में नहीं है कि दलित वोटर किस तरफ जाएंगे। अगर दलित वोटर भाजपा की तरफ जाते हैं तो यह तय है कि अल्पसंख्यक बहुल इस सीट पर भाजपा की उम्मीदों का कमल खिल सकता है। फिलहाल तो नतीजो को लेकर क़यास ही लगाए जा सकते हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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