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अयोध्या में राम के नाम पर जमीन की लूट

अयोध्या के सुरेश पासी बताते हैं कि “सारा धंधा नेताओं, अफसरों, और बड़े लोगों की मिलीभगत से चल रहा है। ग़रीब की कहीं कोई सुनवाई नहीं है। यहां तक कि कई ज़मीनें फर्ज़ी खतौनी बनाकर बेच दी गईं।” पढ़ें, सैयद जै़ग़म मुर्तजा की यह रपट

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में ज़मीन घोटाले का मामला काफी चर्चा में है। मीडिया रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद अयोध्या और आसपास के इलाक़ों में ज़मीनों के दाम तेज़ी से बढ़े हैं। इसका फायदा उठाने के लिए बाहरी लोगों ने पहले से ही यहां सस्ते दामों पर ज़मीनें ख़रीद ली थीं और फिर करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे कर लिए। आरोप है कि अयोध्या में ज़मीनों की ख़रीद-फरोख़्त में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस घोटाले में कई बड़े नेता, बिल्डर, डेवलपर, भूमाफिया और सरकारी अधिकारी तक शामिल हैं।

अयोध्या में ज़मीनों की ख़रीद और बिक्री में फर्ज़ीवाड़े के आरोप थम नहीं रहे हैं। हालांकि ये आरोप लंबे समय से लगाए जा रहे हैं, लेकिन हाल के दिनों में इन मामलों को लेकर सियासत तेज़ हो गई है। विपक्षी दलों का कहना है कि अयोध्या में स्थानीय लोगों को उनकी ज़मीनों की वाजिब क़ीमत नहीं मिली जबकि उसी ज़मीन से बाहरी लोग करोड़ों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं। इस बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासन में भूमि की ख़रीद और बिक्री में बड़े पैमाने पर घोटाले हुए हैं। उनका कहना है कि अयोध्या में बाहरी लोगों ने आकर ज़मीन ख़रीदी है, जिसका लाभ स्थानीय लोगों को बिल्कुल भी नहीं मिला है। यह ज़मीनें सिर्फ अयोध्या ही नहीं, बल्कि गोंडा, बस्ती, और आसपास के दूसरे ज़िलों में भी ख़रीदी गई हैं। हाल यह है कि अयोध्या से गुज़रने वाले हाइवे के किनारे दोनों तरफ बीस-तीस किलोमीटर के भीतर किसी गांव में शायद ही कोई कामर्शियल भूखंड अब उपलब्ध हो।

मंदिर निर्माण के बाद ज़मीनों के दाम आसमान पर

दरअसल हुआ यह है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होने के बाद से न सिर्फ श्रद्धालुओं की आवाजाही बढ़ी है, बल्कि कारोबार के नए रास्ते भी खुले हैं। इस बीच सरकार ने अयोध्या के अलावा आसपास के इलाक़ों का विकास धार्मिक पर्यटन के लिहाज़ से करने का ऐलान किया। निजी कॉलोनियां बनाने वालों के अलावा यूपी आवास विकास परिषद भी यहां 1800 एकड़ में एक टाउनशिप बना रहा है। इन तमाम वजहों से अयोध्या कई बड़े उद्योगपतियों और कारोबारियों के अलावा भूमाफिया, और दलालों की नज़र में भी चढ़ गया। होटल, आवासीय योजना, और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के लिए मांग बढ़ी तो ज़मीनों के दाम आसमान छूने लगे। इसका फायदा उठाकर कई भू-माफियाओं और बाहरी लोगों ने सस्ते दामों पर ज़मीनें ख़रीदकर यहां से मोटा मुनाफा कमाने की कोशिश की, और कामयाब भी रहे।

इस संबंध में हाल ही में अंग्रेज़ी अख़बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक खोजी रपट का प्रकाशन किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ अयोध्या में भूमि घोटाले का मामला बेहद गंभीर है और इसमें कई प्रमुख लोग और समूह शामिल हैं। इस ख़बर के अनुसार अरूणाचल प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री, यूपी एसटीएफ के मुखिया अमिताभ यश, यूपी के गृह विभाग में सचिव संजीव गुप्ता, और पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के सांसद पुत्र करण भूषण समेत कई बड़े नेता अयोध्या में ज़मीन ख़रीदकर मुनाफा कमाने वालों में शामिल हैं। इसके अलावा अख़बार ने कई बड़े बिल्डरों और निजी कालोनियां बनाने वालों पर भी आरोप लगाए हैं। अख़बार के मुताबिक़ इस मामले की निष्पक्ष जांच बेहद ज़रूरी है ताकि भविष्य में ऐसे घोटाले फिर न हों।

घोटाले को लेकर सियासत

अखिलेश यादव के अलावा कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी भी इस मामले की गहन जांच की मांग कर चुकी हैं। विपक्षी नेताओं का कहना है कि ग़रीबों और किसानों से औने-पौने दाम पर ज़मीन लेना एक तरह से जमीन हड़पना है। जिस ज़मीन का लाभ उन्हें होना चाहिए था, वह नेता, अफसर, बिचौलिए, और भू-माफिया हड़प गए। राम मंदिर निर्माण के बाद से ही अयोध्या में ज़मीनें ख़रीदने की होड़ मची है। पैसे वाले हर परिवार से लेकर हर बड़ा नेता और अधिकारी यहां ज़मीन ख़रीदने में लगा हुआ है। विपक्ष का आरोप है कि इसका स्थानीय लोगों को धेला (करीब एक पैसे का आधा) बराबर भी फायदा नहीं हुआ। उल्टा उनको जबरन औने-पौने दामों पर ज़मीनें बेचने के लिए मजबूर किया गया है।

अयोध्या, गोंडा सहित आसपास के इलाके में जमीन खरीदने की होड़

इलाहाबाद हाइकोर्ट में वकील अजय मिश्रा के मुताबिक़, “घोटाले के आरोप ऐसे ही नहीं लग रहे हैं। अयोध्या समेत आसपास के कई ज़िलों में पिछले सात साल से ज़मीनों का सर्किल रेट (सरकारी मूल्य) नहीं बढ़ा है। इस संबंध में अयोध्या के कुछ लोगों ने हाई कोर्ट में एक याचिका भी दायर की थी। लेकिन इस मामले में अभी तक कुछ नहीं हुआ है। ज़ाहिर है ज़मीनों के सर्किल रेट और बाज़ार दरों में कई गुना का फर्क़ आ चुका है। ऐसे में किसने कितने में ज़मीन ख़रीदी और कितने में बेची, भला कौन बता पाएगा।” अब अगर सर्किल रेट नहीं बढ़ा है तो इसका असर न सिर्फ ज़मीन की क़ीमत बल्कि उसके लिए मिलने वाले सरकारी मुआवज़े पर भी पड़ेगा। भूमि अधिग्रहण के दौरान उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्र में सर्किल रेट का चार गुना मुआवज़ा मिलता है। शहरी इलाकों में मुआवज़े की दर सर्किल रेट का दोगुना ज़्यादा है। ऐसे में स्थानीय निवासियों को नुक़सान होना ही है।

पहली बार नहीं लगे हैं आरोप

अयोध्या में ज़मीन घोटाले के आरोप नए नहीं हैं। इससे पहले मंदिर ट्रस्ट से जुड़े लोगों पर आरोप लगा था कि उन्होंने स्थानीय लोगों से सस्ती ज़मीनें ख़रीदकर मंदिर ट्रस्ट को कई गुना अधिक दाम पर बेच दीं। तब सुल्तान अंसारी नाम के एक प्रॉपर्टी डीलर का भी नाम सामने आया था, जिसके ज़रिए इस तरह के खेल किए गए थे। तब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस मामले में जांच की मांग की थी। लेकिन कुछ ख़ास हुआ नहीं और मामला वक़्त के साथ रफा-दफा हो गया। इसके अलावा कमज़ोर लोगों की ज़मीनों पर अवैध क़ब्ज़ों के आरोप भी लगे।

अयोध्या निवासी कृष्ण नारायण पांडेय के मुताबिक़, “लोग अपनी ज़मीनों की खसरा-खतौनी लेकर दफ्तर-दफ्तर भटक रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।” पांडेय के मुताबिक़, तमाम ज़मीनों पर माफिया का क़ब्ज़ा है। अवैध क़ब्ज़ेदार ज़मीन बेच देते हैं। जब बैनामे की बारी आती है तो मूल भूस्वामी को कुछ रक़म देकर मामला निबटा लेते हैं। कुल मिलाकर मामला जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला है।

अयोध्या के ही सुरेश पासी बताते हैं कि “सारा धंधा नेताओं, अफसरों, और बड़े लोगों की मिलीभगत से चल रहा है। ग़रीब की कहीं कोई सुनवाई नहीं है। यहां तक कि कई ज़मीनें फर्ज़ी खतौनी बनाकर बेच दी गईं।”

लेकिन यह “बाहरी लोगों” वाला आरोप क्या है? इसपर नंदपुर निवारी राकेश सिंह कहते हैं कि राम मंदिर निर्माण के बाद से ही तमाम काम-धंधों में बाहरी लोगों का दख़ल बढ़ गया है। अयोध्या में अगर ठीक से जांच हो जाए तो लखनऊ, गोरखपुर, दिल्ली और गुजरात तक के लोग निर्माण, ठेकेदारी, कालोनी बनाने, ज़मीनें ख़रीदने, होटल बनाने, सड़क बनाने और दूसरे कारोबार में घुस आए हैं। स्थानीय लोगों के पास इतना पैसा है भी नहीं कि उनका मुक़ाबला कर सकें। हाल यह है कि एक-एक कर ट्रस्ट, नगर निगम, और दूसरे सरकारी ठेके भी “बाहरी लोगों” के पास जा रहे हैं। इस कथित विकास का स्थानीय लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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