एक और वर्ष ख़त्म होने की कगार पर है। हम नए वर्ष 2025 में प्रवेश करने जा रहे हैं। महामारी से कदाचित हमें पूरी तरह से छुटकारा मिल गया है। कोविड-19 वायरस अब नियंत्रण में है। लेकिन हमारी दुनिया एक और महामारी के चंगुल में फंस गई है। दो वायरस बहुत तेजी से फैल रहे हैं – पहला डर का और दूसरा नफरत का। हो सकता है कि वे एक दूसरे पर पलते हों। जो हमसे अलग हैं, उनसे डरना, उनसे नफरत करना शायद आसान है। उन्हें समझने की कोशिश करना, उनकी जगह अपने को रखकर सोचना, उनसे प्यार करना – ये शायद कठिन हैं। बेहद कठिन।
‘चिरस्थायी शांति’ लेख लिखे मुझे एक साल बीत गया है, मगर तब जो दो भीषण युद्ध चल रहे थे, वे अब भी जारी हैं। लाखों जानें जा चुकी हैं। माता-पिता को अपनी बेटियों और बेटों की लाशों पर रोना पड़ा है। पुरुषों और महिलाओं को अपने जीवनसाथी खोने पड़े हैं। बच्चे अनाथ हो गए हैं। और एक नई पीढ़ी अपने माता-पिता और भाई-बहनों के हत्यारों के प्रति नफरत से उबलते हुए बड़ी होगी।
जो देश युद्ध का मैदान नहीं भी बने, वहां भी सामाजिक विभाजन और नफरत बढ़ती जा रही है। जिन देशों में बाइबिल का प्रभाव है, वहां भी ‘दूसरे’ के प्रति करुणा का अभाव महसूस किया जा सकता है। मनुष्य समुदाय को आखिर क्या हो गया है? क्या डिजिटल मीडिया के कारण हम हमारे साथी मनुष्यों के बर्बर व्यवहार के बारे ज्यादा जान पा रहे हैं? या, क्या हम हमेशा से ही ऐसे थे?
बाइबिल में मत्त्ति के सुसमाचार 1:21 में यह घोषणा की गई है कि मरियम, यीशु को जन्म देगी, जो अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा। ऐसा लगता है कि हमारा निर्माता, जो हमारी खुदगर्ज़ी से वाकिफ था, हमें बचाने का रास्ता बना रहा था। उसने एक स्पष्ट उद्देश्य के साथ मनुष्य जीवन में प्रवेश किया था – हमारे पापों को अपने सिर पर लेने के लिए, हमारी जगह अपनी जान देने के लिए।
क्रिसमस, दरअसल, इसलिए आया क्योंकि अगर वह न होता, तो गुड फ्राइडे और ईस्टर संडे भी नहीं हो सकता था। जन्म इसलिए हुआ ताकि मृत्यु के बाद अमरता का जीवन हो सके। और सबसे अद्भुत बात यह कि वह [ईसा मसीह] सिद्ध लोगों के लिए नहीं मरा। बाइबिल में ही प्रचारक पॉल द्वारा रोमयो के लिए लिखा गए एक पत्र 5:28 हमें बताता है कि वह [ईसा मसीह] हमारे लिए तब मरे, जब हम उनके दुश्मन थे। अपने दोष के लिए अपनी जान गंवा देना संभव हो सकता है। मगर अपने शत्रु के लिए अपनी जान दे देना अलौकिक है। मानव हृदय इस तरह के सर्वोच्च प्रेम के लिए सक्षम नहीं है। केवल ईसा मसीह का हमारे प्रति प्रेम ही हमें यह शक्ति दे सकता है कि हम उनसे प्रेम करें, जिनसे नफरत करना हमारे लिए स्वाभाविक है।
तो इसलिए, जो लोग स्वयं को ईसा मसीह का अनुयायी कहते हैं, उन्हें अपने मन को टटोलना चाहिए। अगर हमारे मन में दूसरी जाति, दूसरे धर्म या दूसरी नस्ल के व्यक्तियों के प्रति पूर्वाग्रह का भाव है, तो हममें कुछ न कुछ ठीक नहीं है। और जो लोग ईसा के अनुयायी नहीं हैं, यदि उनके जीवन में व्याप्त भय पर विजय पाना चाहते हैं, तो उनके लिए एकमात्र राह ईसा की जीवंत सोच को अपनाना है।
मैं 1993 में ईसा मसीह की अनुयायी बनी थी। पिछले 31 साल की अपनी जीवन यात्रा में मुझमें बहुत बदलाव आए हैं। क्या मैं सिद्ध बन गईं हूं। एकदम नहीं! मैं आज भी उस दिशा में कदम बढ़ा ही रही हूं। उसने मुझसे वायदा किया है कि मैं परिपूर्ण तभी होंगी, जब उससे मेरा साक्षात्कार होगा, जब मैं उसके जैसी बन जाऊंगीं।
मगर मैं साक्ष्य के साथ यह तो कह ही सकती हूं कि जब मैं 2025 में प्रवेश करूंगी, तब मेरे दिल में न डर होगा और ना ही नफरत। मैं 2025 में उसके प्रेम, उसके आनंद और उसकी शांति की साथ प्रवेश करूंगी।
मैं भारत के अपने भाईयों और बहनों ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए यह कामना करना चाहती हूं कि वर्ष 2025 हम सबके लिए सचमुच एक आनंद और शांति का वर्ष हो!
(मूल अंग्रेजी से अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, संपादन : राजन/नवल/अनिल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, संस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in