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संसद मार्ग में आंबेडकर मेला : दिखी सरकारी उपेक्षा और नजर आया मीडिया का पक्षपात

स्थानीय प्रशासन इस मेले को संसद मार्ग के बजाय पंत मार्ग पर आयोजित कराने के पक्ष में था ताकि इस मेले से ‘संसद मार्ग मेला’ का टैग छीन लिया जाए। इसकी वजह बताते हुए अनिल चमड़िया ने कहा कि केंद्र सरकार इस मेले और डॉ. आंबेडकर के महत्व को कम कर देना चाहती है। पढ़ें, यह रपट

दिल्ली के संसद मार्ग पर आंबेडकर जयंती के मौके पर लगने वाले मेले को संसद मार्ग मेला भी कहा जाता है। इस बार के आयोजन में लोग सुबह होने के साथ ही आने लगे। और यह सिलसिला शाम तक चला। एक अनुमान के मुताबिक इस बार के मेले में एक लाख से अधिक लोग आए। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी शामिल रहे। हर बार की तरह इस बार भी मेला मार्ग पर जश्न का माहौल रहा और लोग अपने महानायक को याद करते दिखे।

इतना सबकुछ हुआ लेकिन इस बार भी सरकार और मीडिया की उपेक्षा साफ-साफ दिखी। पहले सरकार की उपेक्षा की बात करते हैं। इस बार के मेले में दिखा कि लाखों की संख्या में लोगों के आने के बावजूद स्थानीय प्रशासन द्वारा पेयजल हेतु पानी का महज एक टैंकर उपलब्ध कराया गया था, जो कि नीति आयोग और आकाशवाणी के गेट के बीच रखा गया था। वहीं मूत्र त्याग करने अथवा शौच करने के लिए अलग से कोई इंतजाम नहीं किया गया था। एक सार्वजनिक शौचालय पहले से वहां स्थायी रूप से जरूर है, लेकिन मेले के दिन इसमें पानी की आपूर्ति को बाधित कर दिया गया था। इसके कारण लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। हालांकि मेले में स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं और संगठनों द्वारा पानी की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी, जिसके कारण कड़ी धूप के बावजूद लोग मेले में बने रहे।

संसद मार्ग पर बुद्ध, फुले और आंबेडकर से जुड़ी सामग्रियों को बेचतीं निशा कटेरिया

अब मीडिया की उपेक्षा की बात। दिल्ली के लुटियंस जोन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है संसद मार्ग। इसके नजदीक में आईएएनएस बिल्डिंग है, जिसे मीडिया जगत में विशेष स्थान प्राप्त है। पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) का कार्यालय भी यही हैं। लेकिन इसके बावजूद गत 14 अप्रैल, 2025 को डॉ. आंबेडकर की जयंती के मौके पर लाखों लोगों की जुटान की खबर दिल्ली से प्रकाशित अधिकांश बड़े अखबारों में नदारद रही। हालांकि ऐसा नहीं कि डॉ. आंबेडकर की जयंती से जुड़ी खबरें नहीं थीं। लेकिन खबरों के स्थान व शीर्षक से यह समझा जा सकता है कि भारतीय मीडिया, खासकर हिंदी मीडिया के लिए डॉ. आंबेडकर क्या मायने रखते हैं।

मेले में आंबेडकरवादी प्रतीक चिह्न आदि बेचते अपने पोती व पोते के साथ एक पसमांदा वृद्ध

उदाहरण के लिए दिल्ली से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ को देखते हैं। गत 15 अप्रैल को प्रकाशित इस अखबार ने पहले तीन पृष्ठों में डॉ. आंबेडकर से संबंधित न तो किसी खबर को जगह दी और न ही उनसे संबंधित किसी तस्वीर को। चौथे पृष्ठ पर एक खबर छापी गई, जिसका शीर्षक है– “बाबा साहेब ने कमजोर व पिछड़े वर्ग के लोगों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई : नड्डा”। इसी खबर के बीच में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल का बयान भी प्रकाशित है– “दोनों बड़ी पार्टियों को बाबा साहेब से प्यार नहीं : केजरीवाल”। इसके साथ ही एक कॉलम की छोटी सी खबर, जिसका शीर्षक है– “विश्वविद्यालयों में ‘आंबेडकर शिक्षा केंद्र’ खोलने की मांग”। यह खबर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के हवाले से प्रकाशित है।

‘जनसत्ता’ ने पृष्ठ संख्या 8 पर एक खबर प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है– “भाजपा-आरएसएस के नेता करते हैं आंबेडकर का अपमान : खरगे”। इस खबर के अलावा एक तस्वीर प्रकाशित की गई है, जिसका कैप्शन है– “नमन : बीआर आंबेडकर की जयंती पर संसद भवन में उन्हें नमन करने पहुंचे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे व सोनिया गांधी।” इसके अलावा पेज नंबर 9 पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा श्रद्धांजलि देने की तस्वीर प्रकाशित है तथा इसके ठीक बगल में मोहन भागवत का एक बयान, जिसका शीर्षक है– “आंबेडकर ने हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए जीवन समर्पित किया : भागवत”।

संसद मार्ग पर मेले का एक दृश्य

हिंदी मीडिया में ‘जनसत्ता’ का अहम स्थान है और बाजदफा इसे प्रगतिशील ‘अखबार’ की श्रेणी में रख दिया जाता है।

यह तो हुई मीडिया के पक्षपाती रवैये की बात। इस बार संसद मार्ग पर आयोजित मेले की बात करते हैं, जिसकी कोई भी सूचना अखबारों में नहीं दी गई। अनुमान के मुताबिक इस बार भी एक लाख से अधिक लोगों का आना हुआ। हालांकि कई लोगों का यह कहना भी रहा कि इस बार मेले में अपेक्षाकृत कम संख्या में लोग आए। इसकी वजह क्या रही, पूछने पर वरिष्ठ पत्रकार व लेखक अनिल चमड़िया ने कहा कि इस बार मेले को लेकर भ्रम की स्थिति को जानबुझकर बनाकर रखा गया। अंतिम दो दिनों में स्थानीय प्रशासन द्वारा यह तय किया गया कि मेले का आयोजन संसद मार्ग पर पूर्ववत किया जाएगा।

अनिल चमड़िया के मुताबिक, स्थानीय प्रशासन इस मेले को संसद मार्ग के बजाय पंत मार्ग पर आयोजित कराने के पक्ष में था ताकि इस मेले से ‘संसद मार्ग मेला’ का टैग छीन लिया जाए। इसकी वजह बताते हुए अनिल चमड़िया ने कहा कि केंद्र सरकार इस मेले और डॉ. आंबेडकर के महत्व को कम कर देना चाहती है। उनके मुताबिक, संसद परिसर में डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा को स्थानांतरित भी इसी मकसद से किया गया है। एक तो प्रतिमा के आधार की ऊंचाई को कम कर दिया गया है। पहले इसके आधार की ऊंचाई अधिक थी और यह ऐसे स्थान पर थी, जहां से यह हर आने-जानेवाले को साफ-साफ दिखती थी। यहां तक कि न्यूज चैनलों के दृश्यों में भी यह प्रतिमा दिख जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होता।

अनिल चमड़िया इस मेले का संक्षिप्त इतिहास भी बताते हैं। उनके मुताबिक, वे 1989 में दिल्ली रहने के लिए आ गए थे। उस साल मेले का आयोजन नहीं हुआ था। मेले का आयोजन 1990 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में होना प्रारंभ हुआ। तब जब डॉ. आंबेडकर को भारत रत्न का सम्मान दिया गया। तब उनकी जयंती के मौके पर लोगों को संसद परिसर में जाने की अनुमति दी गई थी। लोग बाबा साहब को श्रद्धांजलि देने आते थे और इस कारण मेले के आयोजन का सिलसिला शुरू हुआ।

बहरहाल, इस बार के आयोजन में दिखी सरकारी उपेक्षा के बावजूद अनिल चमड़िया काे विश्वास है कि सरकारें चाहे लाख उपेक्षा करें, लेकिन वे मेले के आयोजन को रोक नहीं पाएंगीं। अब इस मेले से लोगों का विश्वास जुड़ गया है।

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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