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Savita Pathak
‘कन्तारा’ : हिंदूवादी शिकंजे में आदिवासियत
सविता पाठक
आदिवासी समाज को रहस्यात्मक अनुष्ठानों तक सीमित करके समझना या उनका अति महिमामंडन करना कोई नई बात नहीं...
सहजीवन : बदलते समाज के अंतर्द्वंद्व के निहितार्थ
सविता पाठक
विवाह संस्था जाति-धर्म की शुद्धता को बनाये रखने का एक तरीका मात्र है, इसलिए समाज उसका हामी है...
यात्रा संस्मरण : वैशाली में भारत के महान अतीत की उपेक्षा
सविता पाठक
मैं सबसे पहले कोल्हुआ गांव गयी, जहां दुनिया के सबसे प्राचीन गणतंत्र में से एक राजा विशाल की...
Book review: ‘The Common Man Speaks Out’
Savita Pathak
Premkumar Mani’s book inspires its readers to develop independent thinking and a new way of looking at things,...
नये सिरे से सोचने को विवश करती किताब : चिंतन के जनसरोकार
सविता पाठक
प्रेमकुमार मणि की किताब, ‘चिंतन के जनसरोकार’ किस तरह, अपने पाठकों को आजाद खयाल व्यक्ति के रूप में...