कुल आठ अध्यायों में विभाजित इस किताब में पाठक उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों में सामाजिक न्याय आंदोलनों के इतिहास, वर्तमान और भविष्य में इसकी दशा-दिशा जान सकेंगे। इसके अलावा असम सहित...
सावित्रीबाई फुले की कुशाग्रता का परिचय इतिहास की उनकी गहरी समझ से मिलती है। उन्होंने शूद्र शब्द का अर्थ ‘मूलवासी’ बताया है। वह कहती हैं कि शूद्र भारत के मूलवासी हैं, जिन्होंने प्रारंभ में ईरानी-ब्राह्मणों...
तेलुगु-भाषी क्षेत्र के अपने अध्ययन पर आधारित कांचा आइलैय्या शेपर्ड की यह मूल अंग्रेजी कृति ‘पोस्ट-हिन्दू इंडिया : अ डिस्कोर्स ऑन दलित-बहुजन, सोशियो-स्पिरिचुअल एंड साइंटिफिक रेवोलुशन’ के हिंदी अनुवाद का हिंदी भाषी दलित-बहुजन पाठकों के...
सावित्रीबाई फुले के साहित्य का यह संकलन ‘काव्यफुले’ (1854) से शुरू होता है, जिसके प्रकाशन के समय वे मात्र 23 वर्ष की थीं और इसका अंत ‘बावन्नकशी सुबोध रत्नाकर’ (1892) से होता है। इन दो...