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साहित्‍य

‘ज्योति कलश’ रचने में चूक गए संजीव
जोतीराव फुले के जीवन पर उपन्यास लिखना एक जटिल काम है, लेकिन इसे अपनी कल्पनाशीलता से संजीव ने आसान बना दिया है। हालांकि कई जगहों पर वे अतिरेक भी कह जाते हैं। पढ़ें, यह समीक्षा
दलित साहित्य को किसी भी राजनीतिक दल का घोषणापत्र बनने से जरूर बचना चाहिए : प्रो. नामदेव
अगर कोई राजनीतिक दल दलित साहित्य का समर्थन करे तो इसमें बुराई क्या है? हां, लेकिन दलित साहित्य को किसी भी राजनीतिक दल का घोषणापत्र बनने से जरूर बचना चाहिए। साहित्य की सत्ता शाश्वत होती...
‘गाडा टोला’ : आदिवासी सौंदर्य बोध और प्रतिमान की कविताएं
कथित मुख्य धारा के सौंदर्य बोध के बरअक्स राही डूमरचीर आदिवासी सौंदर्य बोध के कवि हैं। वे अपनी कविताओं में आदिवासी समाज से जुड़े बिंबों का प्रयोग करते हैं। वे खुलकर अपनी कविताओं में जंगल,...
स्वतंत्र भारत में पिछड़ा वर्ग के संघर्ष को बयां करती आत्मकथा
ब्राह्मण या ऊंची जातियों के जैसे अपनी जाति को श्रेष्ठ बताने की अनावश्यक कोशिशों को छोड़ दें तो हरिनारायण ठाकुर की यह कृति स्वतंत्र भारत में दलित-ओबीसी समुदायों में बढ़ती शिक्षा और उसके कारण बढ़ती...
दलित साहित्य में समालोचना विधा को बहुत आगे जाना चाहिए : बी.आर. विप्लवी
कोई कुछ भी लिख रहा है तो उसका नाम दलित साहित्य दे दे रहा है। हर साहित्य का...
जब मैंने ठान लिया कि जहां अपमान मिले, वहां जाना ही नहीं है : बी.आर. विप्लवी
“किसी के यहां बच्चे की पैदाइश होती थी तो वहां नर्सिंग का काम हमारे घर की औरतें करती...
पेरियार पर केंद्रित एक अलग छाप छोड़नेवाली पुस्तक
यह किताब वस्तुनिष्ठ स्वरूप में पेरियार के जीवन दर्शन के वृहतर आयाम के कई अनछुए सवालों को दर्ज...
साहित्य का आकलन लिखे के आधार पर हो, इसमें गतिरोध कहां है : कर्मेंदु शिशिर
‘लेखक के लिखे से आप उसकी जाति, धर्म या रंग-रूप तक जरूर जा सकते हैं। अगर धूर्ततापूर्ण लेखन...
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