जोतीराव फुले के जीवन पर उपन्यास लिखना एक जटिल काम है, लेकिन इसे अपनी कल्पनाशीलता से संजीव ने आसान बना दिया है। हालांकि कई जगहों पर वे अतिरेक भी कह जाते हैं। पढ़ें, यह समीक्षा
अगर कोई राजनीतिक दल दलित साहित्य का समर्थन करे तो इसमें बुराई क्या है? हां, लेकिन दलित साहित्य को किसी भी राजनीतिक दल का घोषणापत्र बनने से जरूर बचना चाहिए। साहित्य की सत्ता शाश्वत होती...
कथित मुख्य धारा के सौंदर्य बोध के बरअक्स राही डूमरचीर आदिवासी सौंदर्य बोध के कवि हैं। वे अपनी कविताओं में आदिवासी समाज से जुड़े बिंबों का प्रयोग करते हैं। वे खुलकर अपनी कविताओं में जंगल,...
ब्राह्मण या ऊंची जातियों के जैसे अपनी जाति को श्रेष्ठ बताने की अनावश्यक कोशिशों को छोड़ दें तो हरिनारायण ठाकुर की यह कृति स्वतंत्र भारत में दलित-ओबीसी समुदायों में बढ़ती शिक्षा और उसके कारण बढ़ती...